आजतक हिंदी का कोई 'सर्टिफाइड साहित्यकार' किताब की कमाई से लखपति नहीं बना है। तो ऐसे किसी भी भ्रमजाल में फंसना नहीं है। है कि नहीं.
Thursday, November 21, 2024
घर बैठे नॉवेल लिखकर लाखों कमाने का वादा फरेब है भाई!
कोई आपको बरगलाए कि हिंदी में लिखकर लाखों कमा सकते हो और वह भी घर बैठे तो उसके बहकावे में नहीं आना है। कुछ कथित आला दरजे के लेखकों ने हिंदी पाठकों को ऐसा दिक किया है कि लोगों ने पढ़ना ही छोड़ दिया है। वैसे भी हिंदी का लेखक लेखन का काम पार्टटाइम ही करता है। और अगर होल टाइमर है तो अमूमन दलिद्दर ही होता है।
Wednesday, November 20, 2024
फूहड़ हिंदी फिल्मों के दौर में सोंधी हवा का झोंकाः मेझियागन
मेइयाझागन में निर्देशक ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं जिनके जवाब आपको लगता है कि सदियों पहले मिल चुके हैं. मसलन, क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जन्मस्थान को आपका गृहनगर क्यों कहा जाता है?
ब्रोमांसः फिल्म मेझियागन के एक दृश्य में कार्ति और अरविंद स्वामी |
कुछ वक्त पहले मैंने तमिल फिल्म कदैसी विवासायी के बारे में लिखा था (इस फिल्म ने झकझोर दिया था) और मलयालम फिल्म भ्रमयुगम ने अपने बेहतरीन ट्रीटमेंट से दिल छू लिया था. इसमें मम्मूटी अपने सधे अभिनय से दिल जीत ले गए. वैसे भी मलयालम में अडूर गोपालकृष्णन की फिल्मों ने मेरे मन में अलग ही छाप छोड़ रखी है.
बहरहाल, कुछ वक्त हुआ जब मैंने एक और तमिल फिल्म देखी. नाम है मेयाझागन (या मेझियागन?).
बहरहाल, कुछ वक्त हुआ जब मैंने एक और तमिल फिल्म देखी. नाम है मेयाझागन (या मेझियागन?).
सिनेमा के मामले में अधिकांश फिल्मकार बड़े परदे के अनुभव की कहावत को सिद्ध करने के वास्ते कहानी के बड़े पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं. लेकिन मेझियागन फिल्म के निर्देशक सी प्रेम कुमार ने बारीक बातों और सूक्ष्म पलों को पकड़ा है. इस फिल्म ने जीवन के अंतरंग (ऊंह, वो वाला ‘अंतरंग’ नहीं) पल परदे पर उकेर दिए हैं. प्रेम कुमार पहले सिनेमैटोग्राफर थे और शायद इसी वजह से उनकी फिल्म के दृश्य एनिमेटेड स्टिल फोटोग्राफ्स की तरह दिखते हैं.
मेइयाझागन में निर्देशक ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं जिनके जवाब आपको लगता है कि सदियों पहले मिल चुके हैं. मसलन, क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जन्मस्थान को आपका गृहनगर क्यों कहा जाता है? मेइयाझागन की शुरुआत 1996 से होती है (ध्यान रहे, निर्देशक प्रेम कुमार की पहली फिल्म का नाम 96 था) जब एक युवा अरुणमोझी वर्मन उर्फ अरुल को एक ऐसे दर्द से गुजरना पड़ता है जिसे शायद ही कभी सेल्युलाइड पर कैद किया है. हिंदी तो छोड़ दीजिए, अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों में भी यह दर्द नहीं दिखेगा.
फिल्म के नायक अरुल की पैतृक संपत्ति पर धोखे से किया उनके कुछ रिश्तेदारों के कब्जे की बैक स्टोरी है जिसकी वजह से अरुल का परिवार शहर में रहने लगा है और वह भूले से भी अपने गांव का रुख नहीं करते. 1996 में उनके साथ यह घटना होती है और 2018 में जाकर अरुल को अपनी ममेरी बहन की शादी में गांव जाना होता है. वह इस यात्रा को संक्षिप्त रखना चाहते हैं विवाह में बहन को आशीर्वाद देकर रात को लौट आना चाहते हैं. लेकिन, शादी की रात को उनका परिचय एक युवा रिश्तेदार से होता है, जो अपना नाम नहीं बताता और अरुल उसका नाम याद नहीं कर पाते. बहरहाल, एक शहरी आदमी गांव जाकर अपनी जड़ो की तलाश करे यह प्लॉट निर्देशक के लिए लुभावना हो सकता था, इसकी बजाए अरुल वहां दिलचस्पी नहीं दिखाता.
कहानी की शुरुआत में, कुछ ऐसे सूत्र छोड़े गए हैं जो बाद में आकर अपनी अहमियत साबित करते हैं. मसलन, अरुल गांव छोड़ते वक्त एक साइकिल छोड़ आते हैं, और कहते हैं कि कोई इसका इस्तेमाल कर लेगा. वह साइकिल वाकई एक जिंदगी को सिरे से बदल देता है.
निर्देशक ने फिल्म के सेकेंड लीड को कई दफा फ्रेम पर कब्जा करने की छूट दी है. फिल्म में अरुल बने अरविंद स्वानी और कार्ति के अलावा अन्य किरदार गौण ही हैं. लेकिन लेखक ने बाकी किरदार भी ऐसे रचे हैं कि उन पर लंबी चर्चा हो सकती है. इन किरदारों के संपाद ऐसे हैं कि सहज लगते हैं. चाहे वह शादी के दौरान मिली एक महिला, जो कहती है कि अगर उसकी अरुल के शादी होती तो उसकी जिंदगी अलग होती. ऐसे बहुत सारे किरदार हैं, जो अपनी अलग छाप लेकर चलते हैं. छोटे दृश्य हैं जो किरदारों को उभारते हैं.
मेझियागन में कई दफा बैल और सांप के सहज इस्तेमाल से लगता है कि कहीं निर्देशक शिव की तरफ तो इशारा नहीं कर रहे!
पर असल चीज है कि फिल्म में मानवीय संबंध उकेरे गए हैं. हर फिल्म में रोमांस ही हो यह जरूरी तो नहीं. इस फिल्म में दो दूर के रिश्ते के भाइयों के बीच के प्रेम को सहजता से उकेरा गया है.
अरविंद स्वामी और कार्ति के किरदारों के बीच के रिश्ते को खूबसूरत बनते देखना वाकई एक बेहतरीन अनुभव है. यह फिल्म यकीनन अरविंद स्वामी के करियर में सबसे उम्दा अभिनय के लिए जानी जाएगी.
कार्ति का किरदार—जिसका कोई नाम नहीं—उसके मासूम, शरारती व्यवहार में एक निरंतरता है, जबकि अरुल के किरदार में अपने रिश्तेदार को ख़तरा मानने से लेकर धीरे-धीरे उसके स्नेही स्वभाव को अपनाने तक का इमोशनल आर्क है.
तो अगर आप हिंदी फिल्मों में दोहराव भरे कथानकों (कथा तो खैर होती ही नहीं) से ऊब गए हैं, तो साउथ का रुख करिए. आप निराश नहीं होंगे.
Tuesday, November 5, 2024
वेब सीरीज- वाइल्ड वेस्टर्न सिनेमा के जॉनर में 1883 कविता सरीखा है
मुझे अमेरिकन काऊ बॉयज, वाइल्ड वेस्टर्न फिल्में पसंद हैं. खासकर, ऐसी फिल्में जिनमें अमेरिकन रेल बिछाने का या उसकी यात्राओं के दृश्य हों. काऊ बॉयज फिल्मों में तो बहुत-सी फिल्में देख रखी हैं. बस बी ग्रेड वाली ही बची होंगी.
कहने का गर्ज यह है कि मोटे तौर पर हॉलिवुड ने वेस्टर्न के नाम पर अच्छा और कूड़ा जो भी बनाया है, उससे मैं मोटे तौर पर परिचित हूं. चाहे वह 1930 के दशक में बनी स्टेजकोच हो या फिल्म संस्थानों में पाठ्यक्रम में शामिल ‘वन्स अपॉन ए टाइम इ द वेस्ट.’
यूरोपीय अप्रवासियों के पास अमेरिकी वेस्टर्न की दुनिय में उत्तरजीविता के बुनियादी कौशल नहीं हैं. न घुड़सवारी आती है, न बंदूक चलाना आता है. यहां तक कि शिकार को काटकर मांस पकाना भी नहीं. और फिर छुद्र निजी लालच भी हैं.
इसी तरह अमेरिकी गृहयुद्ध पर बनी, रेड इंडियन्स से झगड़ों पर बनी सीरीज और यहां तक कि वेस्ट वर्ल्ड नाम की साइ-फाइ वेब सीरीज भी देख डाली जो हॉटस्टार पर थी और अब वहां नहीं है.
1883 का एक दृश्य |
कहने का गर्ज यह है कि मोटे तौर पर हॉलिवुड ने वेस्टर्न के नाम पर अच्छा और कूड़ा जो भी बनाया है, उससे मैं मोटे तौर पर परिचित हूं. चाहे वह 1930 के दशक में बनी स्टेजकोच हो या फिल्म संस्थानों में पाठ्यक्रम में शामिल ‘वन्स अपॉन ए टाइम इ द वेस्ट.’
ऐसी ही एक सीरीज है येलोस्टोन. और इसका प्रीक्वल है 1883.
और आज मैं इसी 1883 की बात करने वाला हूं, क्योंकि सिनेमा अपने-आप में एक पेंटिंग और कविता भी होती है. वाइल्ड वेस्ट की कहानियों में कविता! यह खोजना ही मूर्खता है. क्या आप मिथुन की उन फिल्मों में कविता या बढ़िया सिनेमा की उम्मीद कर सकते हैं जो उन्होंने 2 साल में 40 रिलीज के दौर में बनाए थे?
एल्सा के किरदार में इशाबेल मे |
80 फीसद वाइल्ड वेस्टर्न और काउ बॉयज फिल्में लाउड और मेलोड्रैमेटिक होती हैं. और जो काऊ बॉय नायकत्व, लार्जर दैन लाइफ छवि हॉलीवुड ने गढ़ी है 1883 के दस एपिसोड उसको किरिच-किरिच तोड़ डालते हैं.
असल में, अमेरिकन वेस्ट के इतिहास को इतना रोमांटिसाइज किया गया और उसके नायक इतना खब्ती और रफ दिखाया गया कि उसकी नकल हिंदुस्तान में भी की गई. फिरोज खान का अपीयरेंस देख लें या फिर सत्ते पर सत्ता का अमिताभ बच्चन का रेंच.
असल में, अमेरिकन वेस्ट के इतिहास को इतना रोमांटिसाइज किया गया और उसके नायक इतना खब्ती और रफ दिखाया गया कि उसकी नकल हिंदुस्तान में भी की गई. फिरोज खान का अपीयरेंस देख लें या फिर सत्ते पर सत्ता का अमिताभ बच्चन का रेंच.
1883 के निर्देशक टेलर शेरिडन हैं. और 1883 में यूरोपीय अप्रवासियों की टेक्सास से ओरेगन की यात्रा की रुखड़े और क्रूर असलियत को सामने लाती है.
इसमें डटन परिवार के पूर्वजों की गाथा है (जिन्होंने यलोस्टोन सीरीज देखी है, वह जानते हैं कि वह डटन परिवार के रेंच की आधुनिक समय की कहानी है).
बहरहाल, यलोस्टोन सीरीज के नायक के परदादा जेम्स डटन की यह कहानी है.
असल में, डटन परिवार एक सपना लेकर टेक्सास से ओरेगन जा रहा है. और साथ में जर्मन और स्लोवाक भाषा बोलने वाले दो दर्जन परिवार भी साथ में चल रहे हैं. डटन ने अपनी पत्नी को वादा किया है कि वह उसके लिए इतना ब ड़ा घर बनाएगा कि वह उस घर में खो जाएगी.
लेकिन वह घर कहां बनेगा यह बड़ा प्रश्न है. इसके लिए डटन को पश्चिम की ओर की यात्रा करनी है. असल में डटन, अमेरिकन सिविल वार में कॉनफेडरेट आर्मी में कैप्टन रहा है. और इसलिए वह टेक्सास के मार-दंगे और क्रूर समाज से दूर निकल जाना चाहता है.
और इस यात्रा में वह एक कारवां के साथ जुड़ जाता है. वह यूरोपीय अप्रवासियों की मदद करने वाले दो एंजेट्स कैप्टन और थॉमस की ग्रुप के साथ बढ़ता है.
यूरोपीय अप्रवासियों के पास अमेरिकी वेस्टर्न की दुनिय में उत्तरजीविता के बुनियादी कौशल नहीं हैं. न घुड़सवारी आती है, न बंदूक चलाना आता है. यहां तक कि शिकार को काटकर मांस पकाना भी नहीं. और फिर छुद्र निजी लालच भी हैं.
डटन परिवार की बेटी किशोरी है. पूरी कहानी कई दफा उसके वॉइस ओवर से आगे बढ़ती है और उसके वॉइस ओवर ने इस सीरीज को सिनेमाई कविता में ढाल दिया है. अपने एक वॉइस ओवर में एल्सा (इशाबेल मे) कहती है, “डेथ इज एवरीवेयर इन प्रेयरी. इन एवरी फॉर्म यू कैन इमैजिन ऐंड फ्रॉम ए फ्यू योर नाइटमेयर्स कुडनॉट मस्टर.”
उदासियों, दुख, विषाद और पीड़ा से भरी यात्रा के बीच एल्सा का अपीयरेंस बादलों में बिजली का तरह होता है. वह खूबसूरत हैं और कई दफा आलिया भट्ट सरीखी दिखती हैं. उनके गालों में भी भट्ट की ही तरह डिंपल पड़ते हैं.
इस कथा क्रम में पीड़ा और मृत्यु के साथ, प्रेम है. एल्सा को प्रेम होता है. वह मुस्कुराती है. वह प्रेम को स्वीकार करती है.
उदासियों, दुख, विषाद और पीड़ा से भरी यात्रा के बीच एल्सा का अपीयरेंस बादलों में बिजली का तरह होता है. वह खूबसूरत हैं और कई दफा आलिया भट्ट सरीखी दिखती हैं. उनके गालों में भी भट्ट की ही तरह डिंपल पड़ते हैं.
इस कथा क्रम में पीड़ा और मृत्यु के साथ, प्रेम है. एल्सा को प्रेम होता है. वह मुस्कुराती है. वह प्रेम को स्वीकार करती है.
1883 में अपनी सेटिंग और इपने किरदारों के इमोशनल कर्व को कमाल तरीके से पेश करता है और इसमें पश्चिमी रुखाई के साथ साथ प्रेम के कोमल पल भी हैं.
मेरे जो मित्र अच्छा सिनेमा देखने के शौकीन हैं, और खासकर अगर अमेरिकन वेस्टर्न फिल्मे देखने में मजा आता है, उनके लिए 1883 सरप्राइज पैकेज की तरह है.
#cinema #wildwest #western #Webseries