Wednesday, November 21, 2007

प्रसन्नात्मक कविता

प्रसन्न कुमार ठाकुर निजी तौर पर कवि है। प्रसन्न की कलम ने सैकड़ों सन्न कर देने वाली कविताएं उलीच दी हैं। पेट के लिए एडवरटाइजिंग से जुड़े हैं, हालांकि हमारा मानना है कि पत्रकारिता से कहीं ज़्यादा एड के क्षेत्र में कविताई की ज़रूरत होती है। फिलहाल प्रह्लाद कक्कड़ के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन जो प्रश्न उन्हें मथते रहते हैं, उन्होंने उन प्रश्नों से हमें भी अवगत कराया है। कुछ सुर-कुछ साज़ो की बात करते हैं। प्रसन्न जी मिले सुर हमारा-तुम्हारा....गुस्ताख़




क्या कहूँ और कैसे ?
शब्दों के सहारे अपने व्योम
या व्योम के सहारे शब्द !
प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास में
उसका व्यक्तित्व ही जिम्मेदार होता है
.मैं कैसा हूँ?
क्या हूँ?
क्यूँ हूँ?
और न जाने क्या-क्या ...!
हजारों यक्ष प्रश्न....
इन्हीं प्रश्नो की तार से,
जीवन के साज़ पर
कोई अच्छी सी धुन बजाते हैं...

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