Sunday, March 16, 2008

बीकानेर की राह में


हाल ही में मुझे एक कवरेज के सिलसिले में बीकानेर जाना पड़ा। जयपुर तक का सफ़र तो शताब्दी से पूरा हुआ। कोई अनुभव नही, अपने-अपने खोलों में सिमटे लोगों से मुलाकात हुई। जयपुर में दिन भर रूकना था। जपुर दूरदर्शन की निदेशक प्रज्ञा जी ने अगली सुबह ४ बजे बीकानेर के लिए निकलने का कार्यक्रम तय कर रखा था। अब मेरे पास पूरा दोपहर और शाम पड़ी थी। चाय-चुक्कड़ सुड़कने के बाद जयपुर के दोस्तों से मिलने का मन बना लिया।

जयपुर के अनेक दोस्तों में से एक हैं राम कुमार। राजस्थान पत्रिका के यशस्वी पत्रकार राम से मेरी मुलाकात एफटीटीआई पुणे में हुई थी। मेरे काल पर जनाब उछल पड़े। शाम को मैं दूरदर्शन के दफ्तर में था। वहां से निपट कर राम कुमार मुझे वहां जवाहर कला केंद्र ले गए।

सर्द शाम को यह अनुभव विलक्षण रहा। प्रह्लाद सिंह टिवाणिया की पुरकशिश आवाज़ में कबीर को सुनना, आह्लादकारी क्षण थे। कबीर की बात, मक्ताकाश मंच, राम का साथ... मजा़ आ गया। जहां पत्रकार जुटें, वहां भोजन की बात न हो तो पूरा वाकया अधूरा लगता है। वहां से फिर हम सवाई मानसिंह स्टेडियम गए। आग तापते हुए राजस्थानी धुनों पर थिरकते लोग, और मनपसंद तत्वसेवन की छूट। कुक्कुट मांस अलग-अलग स्वादों में। मिष्टान्न की भरपूर उपलब्धता।

जयपुर वाले वाकई अच्छे मेहमानवाज होते हैं। गर्म जलेबी... स्वीमिंग पूल के किनारे जलाई आग की सुकूनबख्श गरमाहट..।

मैं अपने सोने की आदतों से परिचित हूं, और एफटीटीआई के दिनों में राम भी अच्छी तरह जान गए थे। तो रात एक बजे वह मुझे होटल तक छोड़ गए, इस वादे के साथ कि अगली मुलाकात और बेहतर होगी। जयपुर के मित्रों की मीठी याद को दिल से लगा कर मैं सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन ईसी उपक्रम के दौरान हमारे साउँड ईंजीनियर का फोन आ गया। मैं तैयार होने लगा। जयपुर से बीकानेर का रास्ता तकरीबन चार सौ किलोमीटर है। सड़क के रास्ते  हमें वहां तक जाना था।

रेगिस्तान हमारा इंतजार कर रहा था। और मैंऽ जिंदगी में पहली बार मरुभूमि का दीदार करने के लिए खुद बेचैन था।

जारी

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