कक्का जी के पोस्ट पर कमेंट आने शुरु हो गए हैं। लेकिन उनकी उदासी मिटी नहीं है। आज फिर दिल्ली में ज़ोरदार बारिश हुई। बरसात से पहले कसके हवा भी चली है। कई पेड़ जड़ से उखड़ गए। कईयों के डाल टूट गए। सड़कों पर पड़े हैं.. ट्रैफिक जाम का सबब हैं। आश्रम से लेकर (रवीश का मनपसंद जाम) मूलचंद के पाताली सड़क तक हर जगह जाम। कार वालों के लिए ये बारिश सुहानी रही.. मज़ा आया उनको..अगर जाम में फंसने का दुख को दरकिनार कर दें। बाईक वालों के लिए दुखदायी रहा। बरसात भी जाम भी। भींगी बिल्ली बने रहे। भगवान को गाली पड़ी। बाईक वालों ने जमके कोसा। कक्का जी ने दुख जताने की भरपूर कोशिश की।
कक्काजी कहने लगे हमारे बिहार-झारखंड में ऐसा नहीं होता। हवा-आंधी-पानी में पेड़ इसतरह से ज़मीन से नहीं, उखड़ते । वहां के पेड़ों की जड़ें मज़बूत होती हैं। वहां बिजली के खंभे ठीक से गड़े नहीं हैं। हवा चलती है तो बिजली के खंभे उखड़ते हैं, पेड़ नहीं। कक्का जी ने गहरी सांस ली।
गुस्ताख़ भी मानता है पेड़ों की जड़ें गहरी होनी चाहिए।
यार अप टू डेट हो..तुम सही कहते हो यहां पेड तो लगाये गये है लेकिन जडों के लिये मिट्टी ही नही..बढिया लिखा है ..साधुवाद
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