Wednesday, July 9, 2008

संस्कृत की परीक्षा और मैं

मेरे जीवन में दो चीज़े बड़ी प्रॉमिनेंट रहीं हैं, मैं थियेटर में आगे और कक्षा में पीछे बैठना ही पसंद करता हूं। लोगों को थोड़ा स्ट्रेंज लग सकता है, लेकिन है ये सच ही। वजह ये कि दोनों ही जगह पर एक्शन होता है। कक्षा में आगे बैठने वाले विद्यार्थी चुपचाप एकटक मास्साब के मुखमंडल को निहारा करते थे। हमारा इन चीज़ों में कोई भरोसा नहीं था। मैं और हमारे तीन साथी साइंस की क्लास के सिवा हर क्लास में पिछली बेंचों पर बैठते थे।

मजा़ आता था। पिछली बेंच पर बैठकर हम आपस में इशारों में बातें करते। संस्कृत की किताब में भर कर इंद्रसभा और दफा ३०२ पढ़ते। दफा ३०२ में वैसे तो अपराध कथाएं होती थीं लेकिन हम खासतौर पर उन एकाध पैराग्राफ पर ध्यान जमाते जो ज़रा अश्लील होती थीँ। लेकिन वह अश्लीलता भी उतनी ही थोड़ी-सी थी, जितनी हमारे संस्कृत माटसा-ब की मूंछे। माटसा-ब की मूछें नाक के पास तो दस-बारह बालों वाली होती थी, लेकिन होठों के कोर तक पहुंचते-पहुंचते उसकी आबादी वैसे ही घट जाती जैसे कि जर्मनी में इंसानों की घट रही है। होठ जहां खत्म होते हैं वहा उनकी मूंछ में महज एक बाल बच पाता था. साइबेरिया निष्कासित सोवियत नागरिक-सा, या फिर किसी शापित एकांतवासी गंधर्व सरीखा। राजकुमार स्टाइल में मूंछें, करीने से तराशी हुई.

लेकिन संस्कृत वाले माट साब पूरे जल्लाद थे। कपड़े के थान के बीच में रहने वाली मोटी गोल लकडी़ की छड़ी या फिर सखुए की संटी लेकर क्लास में आते। ज़ोर-ज़ोर से बुलवाते- सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात॥ न ब्रूयात सत्यम् अप्रियम्.. जिसने लता शब्द रुप कंठस्थ नहीं किए.. उसकी हथेली में संटी के दाग़ उभर आते।

स्कूल में उर्दू-फारसी पढ़ाने वाले मौलवी साहब का स्वभाव नरम था। प्रायः अपनी क्लास मे मौलवी साहब भूगौल पढाते और हमसे पूछते स्पेन की राज़धानी का नाम बताओ, या फिर जाड़े के मौसम में मानसून अपने देश में किस हिस्से में आता है। पता नहीं क्यो ंहम भूगोल के सवालों के उत्तर जानते होते। और मौलवी साहब हमारी पीठ पर प्यार से धौल जमाते।

बहरहाल, उर्दू पढना नवीं या दसवीं में शुरु करना मुमकिन नहीं था। खासकर तब जब राम की जन्मभूमि को आजाद कराने और मंजिर वहीं बनाने का उन्माद छाया था, यह विचार मन में लाना भी घरवालो और दोस्तो के लिए पागलपन ही था।

दोस्तो के साथ हमने संस्कृत की परीक्षा मे बेहतर करने का नया नुस्खा निकाला। प्रश्नों के उत्र हिंदी में लिख दो, स्याही की कलम से लिखों और कलम की निब में एक प्यारी सी फूंक मार दो॥ जहां-जहां विसर्ग हलंत और बिंदु लगने हैं भगवत्कृपा से स्वयं चस्पां हो जाएँगे। लेकिन दसवीं की बोर्ड परीक्षा के लिए हमने तकरीबन पांच सात सौ अनुवाद रट लिए, पचीस-तीस संस्कृत के पैराग्राफ रट्टा मारे और राम का नाम लेकर परीक्षा में बैठे.. और गज़ब ये कि पास भी हो गए। आप भी आजमाएं, संस्कृत लिखने का नया तरीका कैसा है बताएँ।

5 comments:

  1. bahut sahi nuskha hai ji.. :)
    hamne bhi aajmaya tha..

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  2. sahi jankari,sab(60%) yahi karte hain.

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  3. सच कहूँ तो शायद ये बात किसी को बुरी लगे लेकिन आपको नही लगता कि इतनी मुश्किल भाषा पूरी तरह हम पर थोपी जारही है और सच्चाई तो ये कि इसका न हमें फायेदा हो रहा है न ही इस भाषा को....पता नही हम लोग कब इस बात को समझेंगे....

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  4. पी.डी. जी, लवली कुमारी जी और रक्क्षन्दाजी,

    तथा गुस्ताखजी,

    संस्कृत की शिक्षा बोरियत हुआ क्लरती थी, पर संस्कृत सीखने की सरल आजमाई विधि के लिए मेरे ब्लॉग http://tirhuta.blogspot.com/
    पर जाएँ और पहले लेशन से शुरू करेँ, बीसवे लेशन तक फर्राटेसे से संस्कृत नहीं बोलना सीख जाएँ तो फिर मुझे कहें।

    गुस्ताखजी के लिए-
    गुस्ताखजी अहाँसँ http://www.videha.co.in/ लेल मैथिलीमे लिखबाक अनुरोध अछि। अपन रचना ggajendra@videha.com पर पठाऊ। चिंता नहीं करू, किछु छोट-मोट जे मैथिली मानकीकरणक दृष्टिसँ आवश्यक परिवर्त्तन होयत से हम कए देल करब, ई-प्रकाशित होयबासँ पहिने। मैथिली मानकीकरण संबंधी हमर शोध केन्द्रीय भाषा अकादमी, मैसूरमे मैथिली स्टाइल मैनुअल केर परिचर्चा लेल स्वीकृत भेल अछि। ओ'लेख http://manak-maithili.blogspot.com पर सेहो उपलब्ध अछि, आ' 'विदेह' ई-पत्रिकाक रचना-लेखन स्तंभमे सेहो।

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  5. मंजीत जी,

    उपन्यास-महाकाव्य-कथा-कविता-संस्मरण-यात्रा-वृत्तान्त, सामाजिक समस्या, विज्ञान, भाषा-प्रौद्योगिकी, राजनीति ई सभ विदेहमे ई-प्रकाशित कएल जाइत अछि। अहाँ कोनो विषयपर अपन इच्छानुसार लिखि सकैत छी, "विदेह" http://www.videha.co.in/ पर मासक १ आऽ १५ तिथिकेँ ई-प्रकाशित कएल जाइत अछि। अपन रचना हमर ई-मेल ggajendra@videha.com पर पठाबी। अहाँक ई- कमेंट 22 जुलाइकेँ आयल चल मुदा संयोगसँ हमारा आइ पढ्लहु ताहि द्वारे यदि हमर ई-मेलपर सँदेश पठाबी तँ हमरा तत्काल भेटि जाएत। अहाँक प्रोफाइल पर ई-मेल पता नहि लिखल छल ताहि द्वारे टिप्पणीक माध्यमसँ सँदेश देलहुँ,प्रायः स्पैम द्वारे अहाँ ओतए ई-मेल पता नखि लिखने छी। अपन ई-मेल पता अवश्य पठाऊ।
    গজেন্দ্র ঠাকুব

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