7 जुलाई 1896...टाइम्स ऑफ इंडिया...। भारत में प्रदर्शित होने वाली पहली फिल्म का प्रचार के लिए कुछ वैसा ही प्रकाशित हुआ था, जैसा आजकल अखबारों में वर्गीकृत विज्ञापनों का कॉलम छपता है। एक बॉक्स में
टाइपसैट मेसेज छपे थे---
उस वक्त में भारत अपने सामाजिक बदलावों के दौर से गुजर रहा था। इन विज्ञापनों को भी आधुनिकीकरण का जरिया और प्रतीक माना जाने लगा। बदलते भारत में आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास ने आधुनिकीकरण को नई परिभाषाएं और नए आयाम दिए। इऩ सभी क्षेत्रों के नए तौर-तरीके विज्ञापन कला और सौदर्यशास्त्र में भी दिखे।
बदलाव का वह दौर प्रचार सामग्रियों की कलात्मकता को ऩए तेवर देता रहा। विज्ञापन सिर्फ अखबारों तक सीमिच नही रहे और इसके लिए अलग से परचे प्रकाशित किए जाने लगे। जिनमें उस दौर के सांस्कृतिक वातावरण के विचारों, आस्थाओं, नजरियों और मूल्यों का कलात्मक पर्याय दिखता रहा।
अखबारों में विज्ञापन देने की प्रथा भारत में अखबारो के प्रकाशन के साथ ही शुरु हो गई थी। यानी 18वीं सदी में ही। इंगलैंड के अखबारों में छपे विज्ञापनों की तर्ज पर छपे ये विज्ञापन आखिरी पेज पर छापे जाते थे।
भारत में पहली फिल्म के प्रदर्शन से जुडी़ नोटिस भी अखबार में नए विज्ञापन कॉलम के तहत छपी थी। इस कॉलम में जहाजरानी और कार्गो से जुड़े विज्ञापन छपा करते थे।
उस दौर में टाइम्स ऑफ़ इंडिया सिर्फ विदेशी विज्ञापन ही छापा करता था, ऐसे में शुरुआती भारतीय फिल्मों को उस अखबार में जगह नहीं मिल पाई। 1913 में रिलीज हुई पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र का विज्ञापन बॉम्बे क्रॉनिकल में छपा था। -----
अबकी बार दादा साहेब फाल्के ने विज्ञापन में कुछ बदलाव किए। विज्ञापन में लिखा गया--" 57000 से भी अधिक तस्वीरों का प्रदर्शन, दो मील लंबी तस्वीर"......लंबाई पर दिया गया जोर 6 घंटे लंबा नाटक देखने वाले दर्शकों को अपने असर में लेने लगा।
जारी.....
टाइपसैट मेसेज छपे थे---
" The marvel of the century, The wonder of the world, Living Photographic pictures,...in life sized reproduction."
उस वक्त में भारत अपने सामाजिक बदलावों के दौर से गुजर रहा था। इन विज्ञापनों को भी आधुनिकीकरण का जरिया और प्रतीक माना जाने लगा। बदलते भारत में आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक विकास ने आधुनिकीकरण को नई परिभाषाएं और नए आयाम दिए। इऩ सभी क्षेत्रों के नए तौर-तरीके विज्ञापन कला और सौदर्यशास्त्र में भी दिखे।
पहली सवाक फिल्म 'आलमआरा' का विज्ञापन |
अखबारों में विज्ञापन देने की प्रथा भारत में अखबारो के प्रकाशन के साथ ही शुरु हो गई थी। यानी 18वीं सदी में ही। इंगलैंड के अखबारों में छपे विज्ञापनों की तर्ज पर छपे ये विज्ञापन आखिरी पेज पर छापे जाते थे।
भारत में पहली फिल्म के प्रदर्शन से जुडी़ नोटिस भी अखबार में नए विज्ञापन कॉलम के तहत छपी थी। इस कॉलम में जहाजरानी और कार्गो से जुड़े विज्ञापन छपा करते थे।
उस दौर में टाइम्स ऑफ़ इंडिया सिर्फ विदेशी विज्ञापन ही छापा करता था, ऐसे में शुरुआती भारतीय फिल्मों को उस अखबार में जगह नहीं मिल पाई। 1913 में रिलीज हुई पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र का विज्ञापन बॉम्बे क्रॉनिकल में छपा था। -----
"A Powerfully instructive subject from Indian mythology. first film Of Indian manufacture, Specially prepared at enormous cost. Original scenes from city of Banares. Sure to appeal to our Hindu patrons."बड़े शहरों मे तो इस विज्ञापन का असर ठीर रहा लेकिन प्रांतो में जब इसे प्रदर्शित किया गया, तो यह विज्ञापन बेअसर साबित हुआ।
अबकी बार दादा साहेब फाल्के ने विज्ञापन में कुछ बदलाव किए। विज्ञापन में लिखा गया--" 57000 से भी अधिक तस्वीरों का प्रदर्शन, दो मील लंबी तस्वीर"......लंबाई पर दिया गया जोर 6 घंटे लंबा नाटक देखने वाले दर्शकों को अपने असर में लेने लगा।
जारी.....
gustakh ji
ReplyDeleteaapmere blog par aaye iske liye aapki aabhari hun.
aapka ye sasmaran rochak laga ,aage ki post ka intjaar rahega.
han! aapki baina chasme ki tasveer jyaada behatar lagi.
dhanyvaad
poonam
अदभुद, आपके पास हमेशा कुछ नया और अप्रत्याशित रहता है पर पहुचेली को बीच मझधार में मत छोडिये, जारी रहिये गुरुदेव....
ReplyDeleteआलम आरा पर हमने एक कार्यक्रम किया था, शिवानंद कामड़े जी के सहयोग से, एक पुस्तिका भी प्रकशित की थी, कामड़े जी से संपर्क किया जा सकता है 09907408228 पर.
ReplyDeleteआपका मेल आइडी या फोन मिला नहीं और यहां लिखना प्रासंगिक नहीं होगा, इसलिए फिलहाल इतना ही.