माननीय प्रधानमंत्री जी,
सुना आपने कुछ सुधार किए हैं।
कहते हैं कि सुधार बहुत जरूरी हैं, देश में सुधार लाने के लिए मंहगाई बढ़ानी जरूरी है। अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र अनर्थशास्त्र में बदल गया लगता है। कई बीट रिपोर्टर बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ती कीमतों के मद्देनजर डीज़ल के दाम बढ़ाने की मजबूरी थी।
किसको बेवकूफ समझ रहे हैं। अगर सरकार डीज़ल की सब्सिडी का बेजा फायदा उठाने वाले कार मालिकों से हलकान थी तो क्यों नहीं आपने डीज़ल कारों की कीमतें बढ़ी दीं? गांव का किसान तो डीज़ल वाली कार लेकर नहीं जाएगा ना? आपने डीज़ल कारों पर शेस क्यों नहीं लाद दिय़ा। आपको कीमत बढ़ानी थी आपने बढ़ा दी।
महंगाई, मुद्रास्फीति पर देसी मीडिया चीखता-चिल्लाता रहा, आपको कुछ नहीं सूझा। विदेशी मीडिया में आपकी आलोचना हुई, आपको अंडरअचीवर कहा गया, तो चुभ गया? पश्चिम जिन सुधारों की अपेक्षा आपसे कर रहा था, आपने किए नहीं थे। गठबंधन धर्म निभाने के नाम पर, या महज आलस्य के मारे होकर, तो पश्चिम की आलोचना कौन झेलेगा?
अब आपने ठान लिया कि सारे सुधार एकसाथ लागू कर दिए जाएं। एकाएक सिंह अवतार ले लिया आपने। मुझे एफडीआई से कोई दिक़्क़त नहीं है। हालांकि होनी चाहिए थी। लेकिन रसोई गैस की कीमत आपने यह सोचते हुए बढ़ा दी कि एक गरीब परिवार को सिर्फ छह सिलिंडर की जरूरत होगी साल भर में।
प्रधानमंत्री जी कहीं आपको यह पता तो नहीं चल गया कि गरीब लोग (यह मान लीजिए कि देश के आधे लोग गरीब है, और चौथाई लोग ऐसे हैं जो टेकेदार और नेता हैं, और नेता कभी गरीब नहीं हो सकते) एक ही सांझ खाते हैं। इसलिए पकाएंगे भी एक ही जून?
मनमोहन जी, आपने एक तरह से पर्यावरण को चुनौती दे दी है। रसोई गैस की बचत करने के लिए लोग अब सरकंडे-उपले और लकड़ियां जलाएंगे। वन काटे जाएंगे, तो आपको जो बाघ परियोजना बहुत प्यारी है, वे बाघ कहां रहेंगे।
आपकी घोषणा के बाद देख रहा हूं कि शेयर बाजार चार सौ अंक ऊपर खेल रहा है, अंबानी-टाटा-मुंजाल-बिड़ला-माल्या खुश होंगे,
इसलिए डरिए मत प्रधानमंत्री जी,
यह तय है कि आपने यह काम राष्ट्रहित-किसानहित-उपभोक्ताहित में किया है। डीज़ल का क्या है, पश्चिमी देशों में तो वो पेट्रोल से ज्यादा महंगा बिकता है। है कि नहीं, प्रधानमंत्री जी। देखिए मेरे पेट में बल पड़ रहे है, हंसाइए मत।
सुना आपने कुछ सुधार किए हैं।
कहते हैं कि सुधार बहुत जरूरी हैं, देश में सुधार लाने के लिए मंहगाई बढ़ानी जरूरी है। अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र अनर्थशास्त्र में बदल गया लगता है। कई बीट रिपोर्टर बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ती कीमतों के मद्देनजर डीज़ल के दाम बढ़ाने की मजबूरी थी।
किसको बेवकूफ समझ रहे हैं। अगर सरकार डीज़ल की सब्सिडी का बेजा फायदा उठाने वाले कार मालिकों से हलकान थी तो क्यों नहीं आपने डीज़ल कारों की कीमतें बढ़ी दीं? गांव का किसान तो डीज़ल वाली कार लेकर नहीं जाएगा ना? आपने डीज़ल कारों पर शेस क्यों नहीं लाद दिय़ा। आपको कीमत बढ़ानी थी आपने बढ़ा दी।
महंगाई, मुद्रास्फीति पर देसी मीडिया चीखता-चिल्लाता रहा, आपको कुछ नहीं सूझा। विदेशी मीडिया में आपकी आलोचना हुई, आपको अंडरअचीवर कहा गया, तो चुभ गया? पश्चिम जिन सुधारों की अपेक्षा आपसे कर रहा था, आपने किए नहीं थे। गठबंधन धर्म निभाने के नाम पर, या महज आलस्य के मारे होकर, तो पश्चिम की आलोचना कौन झेलेगा?
अब आपने ठान लिया कि सारे सुधार एकसाथ लागू कर दिए जाएं। एकाएक सिंह अवतार ले लिया आपने। मुझे एफडीआई से कोई दिक़्क़त नहीं है। हालांकि होनी चाहिए थी। लेकिन रसोई गैस की कीमत आपने यह सोचते हुए बढ़ा दी कि एक गरीब परिवार को सिर्फ छह सिलिंडर की जरूरत होगी साल भर में।
प्रधानमंत्री जी कहीं आपको यह पता तो नहीं चल गया कि गरीब लोग (यह मान लीजिए कि देश के आधे लोग गरीब है, और चौथाई लोग ऐसे हैं जो टेकेदार और नेता हैं, और नेता कभी गरीब नहीं हो सकते) एक ही सांझ खाते हैं। इसलिए पकाएंगे भी एक ही जून?
मनमोहन जी, आपने एक तरह से पर्यावरण को चुनौती दे दी है। रसोई गैस की बचत करने के लिए लोग अब सरकंडे-उपले और लकड़ियां जलाएंगे। वन काटे जाएंगे, तो आपको जो बाघ परियोजना बहुत प्यारी है, वे बाघ कहां रहेंगे।
आपकी घोषणा के बाद देख रहा हूं कि शेयर बाजार चार सौ अंक ऊपर खेल रहा है, अंबानी-टाटा-मुंजाल-बिड़ला-माल्या खुश होंगे,
इसलिए डरिए मत प्रधानमंत्री जी,
यह तय है कि आपने यह काम राष्ट्रहित-किसानहित-उपभोक्ताहित में किया है। डीज़ल का क्या है, पश्चिमी देशों में तो वो पेट्रोल से ज्यादा महंगा बिकता है। है कि नहीं, प्रधानमंत्री जी। देखिए मेरे पेट में बल पड़ रहे है, हंसाइए मत।
Bhaee aisa mat likho nhi to rajdroh ka mukadama chalaya ja sakta h sath hi tumne rastra chinho ka v apman nhi kiya sidhe pm ke .... bhaee hme tumhari fikr h desh ki aur deshwashiyo ki chhodo jaise swarg me swargawasi rahte waise hi nark me v mritak rahte aur tum jante ho murde bola ya kuch kara nhi karte!
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