Wednesday, October 31, 2012

एक अच्छी कविता

दुर्गम वनों और ऊंचे पर्वतों को जीतते हुए,
जब तुम अंतिम ऊंचाई को भी जीत लोगे,

जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब,
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में,
जिन्हें तुमने जीता है।

जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे,
और कांपोगे नहीं...
जब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क नहीं
सब कुछ जीत लेने में..
और अंत तक हिम्मत न हारने में...


---कुंवर बेचैन

Tuesday, October 30, 2012

सुनो ! मृगांका:22: कौन ठगवा नगरिया लूटल हो

अभिजीत दालान पर लेटा हुआ था। चौकी (तख्त) पर। सर के ऊपर खपरैल की छत थी। सामने सांप की जीभ की तरह सड़क दो हिस्सों में बंटी थी। उसके दालान के आगे, आम का पेड़ था। छांहदार। दालान और सड़क के बीच एक चौड़ा-सा आंगन।

गरमी के मौसम...हवा बिलकुल बंद थी। कुछ माहौल ऐसा था मानो भरी देग खदबदा रही हो। पसीने छूट रहे थे। बिसेसर खजौली गया है। रिक्शा लेकर। अभिजीत की पेट में हल्की जलन अब भी थी।

खाने के बाद मन कर  रहा था, हल्की नींद ले। कई झोंके आए भी। बेचैन मन कभी मुज़फ़्फरनगर घूम आया, कभी फैज़ाबाद, कभी मेरठ में होता तो पल भर बाद ही, खान मार्किट के चक्कर काट रहा होता...कभी साकेत तो कभी कहीं और...।

उसे याद है एक बार वह कभी किसी सिलसिले में गया था, फैज़ाबाद से उसने कॉल किया था मृगांका को। तुम्हारे शहर में हूं...।

फैज़ाबाद....। अयोध्या। अवध। वह खुद मिथिला का था। वाह, इस बार सीता अयोध्या से थी, और राम...? उसे आजीवन ईश्वर से वैर रहा था। नहीं, वो राम नहीं था। फिर भी, परंपरा के हिसाब से, लड़का इसबार मिथिला से था, और कन्या कोसल से।

अभिजीत पेट के बल लेट गया। यह उसका पसंदीदा पोस्चर है।

मृगांका के पूर्वजों के राजमहलनुमा हवेलिया थीं...हवेलीनुमा मकान तो उनके दिल्ली में भी थे। मृगांका ने उसे एक बार अपने घर पर खाने के लिए बुलाया था। दोपहर भर अभिजीत यही तय करता रह गया था कि क्या पहनकर जाए।

आखिरकार, उसके लिए पोशाक प्रशांत ने तय की थी।

अभिजीत को पता था कि मृगांका का परिवार रईस है, और वह कुछ ऐसी लिबास पहनना चाहता था कि उनके बीच ऑड मैन आउट न लगे। हालांकि, इस मामले में थोड़ा अक्खड़ था अभिजीत। लेकिन यह जगह अक्खड़पन दिखाने की नहीं थी। यहां नफ़ासत तो चाहिए थी, लेकिन भड़कीला नहीं होना था वह सब।

अभिजीत के पास एक सूट था जरूर, लेकिन वह सालों पुराना था, और पहने जाने की बाट जोहता हुआ थक थका गया था। आखिरकार, प्रशांत ने सलाह दी। आजमाया हुआ नुस्खा काम आया। एक कलफ़दार सूती कुरते और जींस का बाना धारण किया था अभिजीत ने।

मृगांका का परिवार एक शानदार हवेलीनुमा मकान में रहता था। किसी सिक्योरिटी फर्म के गार्ड ने चेहरे पर बेहद नागवार गुजरने वाले भाव ओढ़ रखे थे। मानो अभिजीत के आने का उसको जरा भी परवाह न हो। लेकिन अभिजीत ने भी उतने ही ठसक  से--कुछ ऐसा जताते हुए कि उसे इस बात का बहुत बुरा लगा है--अपने आने का मकसद बताया।

इसके बाद तो शायद उस सिक्योरिटी गार्ड के पंख लग गए। झटपट दरवाजा खुल गया।

मृगांका ने मुस्कुराते हुए अभिजीत का स्वागत किया। उसकी रंगत दमक रही थी। अभिजीत को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि आखिर कोई इतना खूबसूरत हो भी कैसे सकता है।

वाउ, बहुत अच्छे लग रहे हो। मृगांका ने कुरते का छोर पकड़ते हुए कहा था।

हालांकि, वो हमेशा की तरह सलवार-कुरते-दुपट्टे में नहीं थी, और उसके बाल बेतरतीबी से बंधे थे और उसने जिस तरह से टीशर्ट पहनी थी, अभिजीत को नहीं लगा कि इस मौके के लिए कपड़े चुनने को लेकर वह ज्यादा परेशान हुई होगी।

वह हाथ पकड़ कर खींचती हुई अभिजीत को ले जाने लगी, यह कहते हुए वह उसे कुछ दिखाना चाहती है। अभिजीत भी खिंचता हुआ उसके पीछे चला गया। कमरा क्या था, बस किताबें, एक गुलाबी रंग का-जी हां गुलाबी- लैपटॉप, अभिजीत ने गौर से देखा आज मृग ने बहुत गहरे लाल रंग की लिपस्टिक भी लगाई थी। कपड़े सलीके से तह किए हुए थे, कुछ बिखरे भी थे...किताबे ज्यादा थीं...कुछ इसतरह मानों उनकी मृगांका के साथ दोस्ती हो।

अभिजीत को लगा कि यह कमरा जिंदा है, इसमें जिंदगी समाई हो।

अभिजीत ने अचानक एक कॉपी-सी उठा ली। डायरीनुमा कॉपी। मृग हंसने लगी..मत पढ़ो। कुछ कविताएं हैं...मैं दीवानी-सी हो रही हूं आजकल....कविताएं लिखने की जी करता है। पहले कभी नहीं हुआ था ऐसा....

अभि ने कहा, मुबारक हो।

फिर मृगांका अभिजीत को अपने रूफ टैरेस पर ले गई। जहां किसिम-किसम के पौधे थे, तुलसी समेत। तुलसी चौरा पर सांझ का दिया जल रहा था। पौधों में पानी दिया जा चुका था...गमलों की माटी से सोंधी खुशबू आ रही थी।

उसने वहीं पर अभिजीत को अपने पापा-मम्मी से मिलवाया। दीदी भी आई हुई थीं। मृगांका के पिता ने अभिजीत का हाथ थाम कर हौले से हलो कहा। मम्मी ने अभिजीत की तरफ ही देखते हुए मृगांका से कहा-वेरी नाइस।

मृगांका के पिता कामयाब बिजनेसमैन थे। अभिजीत किताबें लिखने वाला लिक्खाड़। लेकिन केमिस्ट्री सेट हो गई थी। मृगांका के पापा भी किताबों के शौकीन थे, जब वो दिल्ली आकर बसे थे तो उनने भी जिंदगी शून्य से शुरु की थी। बातों बातों में मृगांका की बड़ी बहन ने बता दिया कि अभिजीत की सभी प्रकाशित किताबें घर के सबी लोगों ने पढ़ रखी हैं, उसका साप्ताहिक कॉलम भी पापा को पसंद है...और अभिजीत जैसे सेल्फमेड मैन को पापा बहुत पसंद करते हैं।

पापा जी चुपचाप खा रहे थे, मु्स्कुराते हुए।

बड़ी बहन ने ये भी बताया कि अभिजीत के जीवन के बारे में भी सबको सब कुछ पता है...। खाने के बाद निकलते वक्त अभिजीत पापा के कदमों पर झुक गया था...पापा ने भी तकरीबन आलिंगन में भरते हुए उसे सौ का एक नोट दिया था। 'बेटे इतनी ही रकम मेरे पास थी, जब मैं दिल्ली आया था, इसे नेग समझ...'अभिजीत अभिभूत हो गया।

बड़े घरों के दिल हमेशा संकरे नहीं होते। जैसा कि अपनी मार्क्सवादी विचार के तहत अभिजीत सोचा करता था। कहानी की यह शुरुआत तो बड़ी शानदार थी...फिर चूक कहां हुई..।

अभिजीत की नींद खुल गई, आँधी के आसार बन रहे थे...।



...जारी

Sunday, October 28, 2012

क्या तरेगना ही है आर्यभट्ट की कर्मस्थली?

आमतौर पर गुप्तकाल के खगोलज्ञ आर्यभट्ट का रिश्ता उज्जैन से जोड़ा जाता है, लेकिन इस बात पर शोध चल रहा है कि कहीं उनकी वेधशाला पटना के पास मसौढ़ी के तरेगना गांव में तो नहीं। 

तरेगना नाम तारेगण या तारा गणना से जोड़ा जाता है।

वैसे सरकार द्वारा गठित आर्यभट्ट की वेधशालाओं के बारे में कुछ जगहों के प्राथमिक क्षेत्र सर्वेक्षण की प्राथमिक रिपोर्ट आ गई है। ये स्थान हैं पटना के नजदीक खगौल, तरेगना डीह और तरेगना टॉप।

20 सितंबर 2012 को हुई बैठक में चर्चा हुई थी कि इस संदर्भ में विशेषज्ञों के साथ विमर्श और जांच की जाए। 

डॉ अमिताभ घोष के नेतृत्व में बनी टीम ने इस बारे में डॉ जगदंबा पांडेय- पाटलिपुत्र के प्राचीन इतिहास के जानकार--और सिद्धेश्वर पांडेय़ से भी बातचीत की। 

सिद्धेश्वर पांडेय ने आर्यभट्ट और तरेगना के संबंधों पर कई आलेख लिखे हैं। 

तरेगना डीह मसौढ़ी राजमार्ग पर ही है और पटना से यहां तक एक घंटे में पहुंचा जा सकता है। लेकिन मसौढ़ी से तरेगना तक पहुंचना का रास्ता संकरी गलियों कि वजह से बाधित है। करीब 500 मीटर तक रास्ता धूल और पत्थरों से अंटा है।


इतिहास बताता है कि तरेगना डीह, कुसुमपुर से नालंदा के बीच पुराना व्यापार मार्ग था। दंतकथाओं के मुताबिक आर्यभट्ट की वेधशाला इसी गांव  के टीले पर है। सिद्धेश्वर नाथ पांडेय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, (उन्होंने आर्यभट्ट और तरेगाना के रिश्तों पर एक आलेख लिखा है) और स्थानीय लोग बताते हैं कि वहां का टीला ही वह जगह है जहां आर्यभट्ट की वेधशाला वहीं अवस्थित थी।

किताब और आलेख के मुताबिक, यह करीब 25 से 30 फीट ऊंचा था, और मिट्टी का बना हुआ मीनार था। मौजूदा वक्त में उसका महज 6 से 8 फीट ऊंची दीवार सी बची है, जिसकी त्रिज्या करीब 50 फीट की है। वहां करीब 10 मिट्टी के घर हैं, जिसकी छतें खपरैल की हैं, ये उसकी परिधि पर बसी हुई हैं। इस माउंड के बीचोंबीच एक दोमंजिला मकान भी बना हुआ है। 

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक ये घर पिछले 10 से 15 साल के भीतर बनी हैं, और जमीन को गैर मजरुआ मान कर बनाई गई हैं। वहां के एसडीओ ने वायदा किया है कि वो इस बारे में रिकॉर्ड्स देखेंगे और इस इलाके में आगे किसी भी निर्माण गतिविधि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाएंगे।

जब मानस रंजन और के एस जायसवाल रिसर्च इंस्टिट्यूट के संजीव सिन्हा ने माउंड का सर्वे किया तो उन्होंने पाया कि वहां ढलान पर उत्तरी काले पॉलिश्ड मृद्भांडों और भूरे मृद्भांडों के अवशेष भी पाए। 

उत्तरी काले पॉलिश्ड मृद्भांडों और भूरे मृद्भांडों का प्रयोग पुरातात्विक काल गणना के हिसाब से 700 से 200 ईसापूर्व में लौह युग में किया जाता था। इसका शिखर काल मौर्य युग में था। अतः उत्तरी काले पॉलिश्ड मृद्भांडों और भूरे मृद्भांडों के साक्ष्य बताते हैं कि इस इलाके में घनी बस्ती हुआ करती होगी और यह गुप्तकाल से पहले होगी। 

जब इस इलाके की और जांच की गई तो पाया गया कि माउंड में कुछ और बरतन थे। मिट्टी के घरों में बिना पकाए गए धूप में सुखाए गए ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था। और मिट्टी के बने टुकड़े उसमें ईंटो में पाए गए। इनमें से ज्यादातर टुकड़े सतह पर पाए गए और पाया गया कि मानवीय क्रियाओं की वजह से ये इधर-उधर हो चुके थे। 

जांच दल ने सरकार को सलाह दी है कि इस इलाके का कायदे से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराया जाए ताकि पता लग सके कि यहां गुप्त काल से पहले मानवीय बस्तियां किस तरह की थी। खासकर, बुद्ध और गुप्तकाल में क्योंकि आर्यभट्ट का यहा काल माना जाता है। 

इस स्थान की उर्ध्वाधर खुदाई की सिफारिश भी की गई है। ताकि काल खंडों का पता लगाया जा सके।

यहां सूर्य और बिष्णु का पूर्व मध्य़कालीन मंदिर भी है, जो कि स्थान से महज 500 मीटर दूर है। यहां गए। दोनों स्थल तरेगना डीह के टीले के पास ही पाए गए।

त्तरी काले पॉलिश्ड मृद्भांडों और भूरे मृद्भांडों का पाया जाना एक नई खोज मानी जा रही है।

जांच दल ने  इस स्थान पर आर्यभट्ट परियोजना के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिसके मुताबिक यहां पर आर्यभट्ट संग्रहालय बनाया जाएगा। इस संग्रहालय में आर्यभट्ट के जीवन और उनके भारतीय और विश्व खगोलिकी में योगदान को दिखाया जा सकता है।

Friday, October 26, 2012

सुनो ! मृगांका: 21: सहर

...सुनो मैंने तुम्हें सपने में देखा था।

झूठ..।

क़सम से।

नहीं..। नहीं बोलने की मृगांका की अदा गजब थी। अभिजीत अगर कोई शहंशाह होता तो इस अदा पर मोतियों की बौछार कर देता।

..अच्छा तो फिर बताओ, सपने में मैने क्या किया...। फिर शरारती मुस्कुराहट। अभिजीत मौन रह गया। उसके भदेस संस्कार उसे वह सब बताने से रोक रहे थे। लेकिन, अभिजीत जानता था वह कोई फ्रायडियन सपना नहीं था। उसमें शारीरिक उड़ाने नहीं थी...सच तो यह था कि जिसतरह दारू पीकर अभिजीत गुमसुम हो जाता था, वैसे ही सपने में भी चुप्पा ही था।

अभिजीत को लगा था, कि वह हवाई जहाज में उड़ रहा है। और उसे किसी ने वहां से फेंक दिया हो। मानो वह स्काई डाइविंग कर रहा हो।

ऊंचाइयों से गिरना तकलीफदेह होता है। सपनों का टूटना, उससे भी ज्यादा।

सीन चेंज, पता नहीं कहां, पता नहीं कौन से वक्त, पता नहीं किस तरह

अभिजीत इंतजार कर रहा है। मृगांका ने मिलने का वायदा किया है। जनपथ सीसीडी। एक घंटा लेट। आम तौर पर अभिजीत मृगांका के आए बगैर कॉफी नहीं पीता। सो, वायदे पर डटते हुए सात सिगरेंटे पी जा चुकी हैं। अकेले खाली बैठे देखकर, और सिगरेटें फूंकते देख, अगल बगल की मेज पर बैठे जोड़ो को यकीन हो गया, इसकी जोड़ीदार आई नहीं अभी तक।

घंटा भर बाद, जोड़ीदार आई। सोलमेट।

अभिजीत के पसंदीदा कपड़ो में आई थी, सो अभिजीत ने बिना भौं टेढ़ी किए, उसका मुस्कुराहट से स्वागत किया। उसके होंठ, उसके गाल, उसके बाल...अभिजीत को लगा, दुनिया को ठेंगे पर रखकर अपने हाथों में रख ले।

उसी दिन मृगांका ने उसे किस किया था। किस का ये किस्सा छप गया था अभिजीत के दिलोदिमाग में।

वह दृश्य, वो अहसास, वो खुशबू..अभिजीत के दिमाग को उजाले में रखते हैं। अभिजीत महकता रहता है इससे...अंधियारा गहराने लगा था।

अंधियारे से उजाले फूटने लगे...अभिजीत ने आंखे खोली तो यही उजाला चौंधिया गया उसको।

उसने देखा सामने लोगों की भीड़ जमा थी, महंत जी और गांव के बहुत से लोग। क्या हो गया था बाबू साहब आपको. महंत जी ने पूछा।

कुछ नहीं।

मिर्गी वगैरह है क्या। गांव के किसी नौजवान ने पूछा।
नहीं बस यूं ही चक्कर सा आ गया था।

अच्छा, अब ठीक तो हैं, तो बताइए, सबको यहां बुलाया क्यों है?

दिल्ली, सुबह साढे नौ बजे, राम मनोहर लोहिया अस्पताल

मृगांका रात भर सो नहीं पाई थी।  रात भर वो आंख उसे परेशान करती रही। क्या हुआ अभिजीत को..कहां है अभिजीत। नहीं, वो अभिजीत नहीं हो सकता। ड्राइव करती हुई वो सीधे अस्पताल के गेट के पास गाड़ी पार्क करती हुई अंदर को भागी।

 मेडिकल सुपरिटेंडेंट उसका पहचान का था। डॉक्साब, मुझे मरने वालो की सूची चाहिए। 

वो तो आपके रिपोर्टर को दे चुके है, सारे चैनल वालों को थोड़ी ही देर पहले दिया है। डॉक्टर ने जवाब दिया।

क्या मैं सबके चेहरे देख सकती हूं, घायलों से मिल सकती हूं।

हां, हां क्यों नहीं। लेकिन बुरी तरह क्षतिग्रस्त चेहरे..हम इजाज़त नहीं देंगे। थोड़ी ही देर में उनका पोस्टमार्टम भी तो होगा। 

नहीं, मुझे सही-सलामत लोग ही दिखाएं। प्लीज...

लाशों की इस भीड़ में उसने देखा...वो नहीं था। वो आंखे, जो अभिजीत-सी थीं, किसी और अभागे की थी। मृगांका को थोड़ी राहत मिली। बाहर आकर वो अहाते के पेड़ से बाई तरफ शीतल पेयों की दुकान की तरफ गई...उसे बड़ी जोर की प्यास लग आई थी।

अचानक उसे लगा उसने किसी जाने-पहचाने चेहरे को देखा था....वह चिल्लाई.

प्रशांत...।।


....जारी







Friday, October 19, 2012

जल्लाद की डायरी


जल्लाद की डायरी

जल्लाद की डायरी शशि वारियर की किताब है। मूल रूप से यह किताब त्रावणकोर के एक जल्लाद जनार्दनन पिल्लई की जिंदगी पर आधारित है। जनार्दनन ने पूरे जीवन में 117 फांसियां दीं।

लोग यह सोचते होंगे और ऐसा प्रचलित कहावतों में भी क्रूरतम व्यक्ति को जल्लाद कहा जाता है। लेकिन शशि वारियर की किताब में एक जल्लाद के जीवन के अनछुए पहलुओं को दर्शाया गया है।

हालांकि लेखक पहले ही साफ करते हैं कि यह किताब सच और कल्पना का मिश्रण है और मुख्य पात्र उनकी कल्पना की उपज है लेकिन पिल्लई के जीवन की बहुत-सी बातें किताब में हैं।

फांसी देने की विधियों का लेखक ने इस लिहाज से बारीक ब्यौरा दिया है कि पढ़ते-पढ़ते आप सिहर उठेंगे। खासकर, अनुवादक कुमुदनी पतिजो सीपीएम की सक्रिय सदस्य हैंने भी हिंदी तर्जुमा इतना बेहतर किया  है कि आपको लगेगा ही नहीं कि किताब मूल रूप से हिंदी में नहीं लिखी गई है।

वैसे तो शशि वारियर ने नाइट ऑफ़ द क्रेट, द ऑरफ़न और स्नाइपर जैसी किताबें लिखी हैं। लेकिन उनकी यह किताब साहित्य में एकदम नई ज़मीन फोड़ती है।

किताब का मिजाज़ स्याह है, एक न भूलने वाली कहानी। लेकिन साथ ही यह वारियर को प्रथम श्रेणी के आंग्ल-भारतीय लेखकों में स्तापित कर देती है। इस किताब को आप मानव जीवन पर एक चिंतन के रूप में देख सकते हैं। जल्लाद की डायरी गहन अनुभूतियों के बीच रची गई रचना है, भावुकता से अछूती, लेकिन यह काल्पनिक लेखक और पाठक के मानसिक, भावनात्मक और मानवीय विकास का चित्रण है।

इतनी सरल शैली में आपने कभी इतनी सिहरा देने वाली किताब नहीं पढ़ी होगी।

हाल ही में मैंने ये किताब पढ़कर ख़त्म की है। मुझे अच्छी लगी, दिलचस्प भी।

जल्लाद की डायरी
लेखकः शशि वारियर
अनुवादकः कुमुदनी पति
प्रकाशकः पेंग्विन
मूल्यः 175 रूपये

Wednesday, October 10, 2012

उत्तरकाशीः विपदा की कुछ तस्वीरें

विपदा के बाद उत्तर काशी...सब नदी की पेट में। फोटोः मंजीत

सिर ढांपने को छत तक न बची फोटोः  मंजीत

इस अग्निशमन गाड़ी को नदी की धारा दो सौ मीटर धकेल लाई, जबकि पूरा टैंकर भरा है फोटोः मंजीत

Friday, October 5, 2012

क़द्दावर मोदी क्या कांग्रेस के मुफ़ीद होंगे?

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी तारीखों की घोषणा के बहुत पहले से ही गुजरात में गद्दी की लड़ाई तेज़ हो गई है। लड़ाई की ताकीखें तय हुईं तो तकरीरें भी शुरु हुईं। अगर मैं यह लिख रहा हूं कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात में कामयाब होने से कांग्रेस को फायदा होने जा रहा है तो इसे दूर की कौड़ी न मानिएगा।

मोदी बीजेपी के भविष्य हैं। यह तय है। लेकिन इस बात की पूरी गुंजाइश है कि मोदीत्व के खिलाफ बीजेपी के ही कई नेता कमर कसे बैठे हैं। सबका नाम लेना जरूरी नहीं लेकिन मोदी के बढ़ते कद से कईयों को पेटदर्द होता होगा। यह पेट दर्द इसलिए भी होगा, क्योंकि अगर कहीं बीजेपी के भाग से छींका टूटा तो पीएम पद के लिए सुषमा भी दावेदार होंगी और अरुण जेटली भी...और भी कई कतार में होंगे।

अगर विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी बड़े अंतर से जीत जाते है--जिसकी पूरी संभावना है--तो यह कांग्रेस के लिए बहुत फायदेमंद होने वाला है। सोनिया गांधी ने वाक्युद्ध में जब पिछली दफ़ा मोदी को मौत का सौदागर कह दिया था तो इससे मोदी को काफी चुनावी फायदी हुआ था।

इस बार भी चुनाव की तारीखों के ऐन ऐलान के दिन ही कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने मोदी को हत्यारा वगैरह कह दिया। जाहिर है, कांग्रेस चाहती है कि मोदी के बड़े कद से बीजेपी में शीर्ष स्थान के लिए भारी मारामारी मचे। कांग्रेस का गणित यह भी है कि मोदी के प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित होते ही तमाम सेकुलर पार्टियां राजग से छिटक जाएंगी।

नीतिश कभी भी मोदी का समर्थन नहीं करेंगे ऐसे में जेडी-यू का छिटकना तय है। मोदी का बड़ा कद बीजेपी को सियासी बियावान में धकेल देगा। कई लोग यह तर्क देंगे कि यह कहना बहुत दूर की कौड़ी है। लेकिन हम नजदीक की बात भी बता देते हैं।

गुजरात में मोदी की जीत जितनी बड़ी होगी, देश भर में मुस्लिम वोट उतनी ही ताक़त से कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकृत होंगे। जहां कांग्रेस मजबूत नहीं होगी वहां सपा या बाकी के कथित तीसरे मोर्चे वाले दल को वोट पड़ेंगे। इससे बीजेपी सत्ता से दूर रहेगी।

अगर तीसरा मोर्चा ही सत्ता में आया और उसे कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड़ी, तो हमेशा की तरह कांग्रेस उस धर्मनिरपेक्ष सरकार को समर्थन देगी, और माकूल वक़्त पर कुरसी खींच लेना, कांग्रेस से बेहतर भला किसको आता है?