बात तब की है जब हमारी मूंछों के बाल उगे नहीं थे। तब तक सन् 94 नहीं आया था। तब तक सचिन ने सिंगर कप में पहला सैकड़ा नहीं जड़ा था। लेकिन तब भी, वो अपने खेल और अपने अंदाज़ और अपनी प्रतिबद्धता से इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि बूस्ट का विज्ञापन करती और लोकप्रिय क्रिकेट पत्रिका क्रिकेट सम्राट में छपा उनका पोस्टर हमारी पढ़ने की मेजो के सामने आकर चिपक गया था।
पोस्टर बनकर चिपकने वाले सचिन आज कहां चिपक रहा है, कहां खो गया है हमारा सचिन। हमें लग रहा था कि कुछ खराब प्रदर्शनों के बाद सचिन अपनी लय में लौटेंगे। न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ हमें लगा था कि सचिन शतक न जड़ें, लेकिन अच्छा खेलेंगे। हम 4-0 से हारे।
मैं पराजयों के आंकड़ो में यकीन नहीं करता। लेकिन सचिन का इस तरह पराजयी भाव दिखाना, एक राष्ट्र के रूप में हमें पस्त करता है। हमने महंगाई झेल ली, हम बेरोजगारी झेल गए, हम तस्करी घोटाले सब झेल गए, क्योंकि परदे पर पहले अमिताभ ने हमारे गुस्से को आवाज दी, और फिर इन्ही निराशा-हताशाओं से उबारने के लिए ज्यादा आक्रामक सचिन तेंदुलकर हमें मिला।
वही, तेंदुलकर, जिसने ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंगलैंड सबको धुना...पाकिस्तान के सामने, जिसे हम धुर विरोधी मानते आए हैं, हमारी पराजय का सिलसिला खत्म किया...आज घुटने टेक रहा है।
यह मसला सिर्फ एक शख्स के संन्यास का नही। चालीस की उम्र के पास पहुंच रहे व्यक्ति को जिसने राष्ट्र के लिए और अपने लिए भी ढेर सारी इज़्ज़त कमाई हो, उसे संन्यास का फ़ैसला खुद लेने देने की छूट मिलनी चाहिए। लेकिन, क्या सचिन 200 टेस्ट मैच खेलने का रेकॉर्ड कायम करने के लिए रूके हैं।
मैं सचिन को लेकर भावुक हो जाता हूं क्योंकि एक आम हिंदुस्तानी की तरह सचिन हमारे दिलों में बसते हैं। रणजी मैच में कितना अच्छा खेले थे सचिन। अब क्यों छीछालेदर करवा रहे हैं।
हम ये कत्तई नहीं चाहते कि सचिन हर मैच में सैंकड़ा ठोंके। हम चाहते हैं कि अगर लोग उन्हें सम्राट, या गॉड कहते हैं, तो उस पदवी के साथ वो खुद न्याय करें। जिस पिच पर पुजारा खेल सकते हैं, जिसपर गंभीर रूके रहे...इन दोनों क्रिकेटरों का कुल अनुभव सचिन के रणजी अनुभव से ज्यादा नहीं।
अब या तो सचिन ज्यादा सावधानी के चक्कर में पिट रहे हैं, या फिर उम्र उन पर हावी होती जा रही है।
अपने नायक की ऐसी दुर्गति मुझे बर्दाश्त नहीं हो रही...सचिन, मैं अपने बेटे को अज़हर, मोंगिया, या जडेजा नहीं बनाना चाहता था. मैं उसे धोनी या सहवाग भी नहीं बनाना चाहता था। आप ऐसे विहेब करेगे, तो मैं उसे कैसा बनने को कहूंगा।
याद रखिए सचिन, ईश्वर एक वर्चुअल पद है...और उसे भी एक दिन संन्यास ले लेना चाहिए, वो भी बाइज्ज़त।
पोस्टर बनकर चिपकने वाले सचिन आज कहां चिपक रहा है, कहां खो गया है हमारा सचिन। हमें लग रहा था कि कुछ खराब प्रदर्शनों के बाद सचिन अपनी लय में लौटेंगे। न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ हमें लगा था कि सचिन शतक न जड़ें, लेकिन अच्छा खेलेंगे। हम 4-0 से हारे।
मैं पराजयों के आंकड़ो में यकीन नहीं करता। लेकिन सचिन का इस तरह पराजयी भाव दिखाना, एक राष्ट्र के रूप में हमें पस्त करता है। हमने महंगाई झेल ली, हम बेरोजगारी झेल गए, हम तस्करी घोटाले सब झेल गए, क्योंकि परदे पर पहले अमिताभ ने हमारे गुस्से को आवाज दी, और फिर इन्ही निराशा-हताशाओं से उबारने के लिए ज्यादा आक्रामक सचिन तेंदुलकर हमें मिला।
वही, तेंदुलकर, जिसने ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंगलैंड सबको धुना...पाकिस्तान के सामने, जिसे हम धुर विरोधी मानते आए हैं, हमारी पराजय का सिलसिला खत्म किया...आज घुटने टेक रहा है।
यह मसला सिर्फ एक शख्स के संन्यास का नही। चालीस की उम्र के पास पहुंच रहे व्यक्ति को जिसने राष्ट्र के लिए और अपने लिए भी ढेर सारी इज़्ज़त कमाई हो, उसे संन्यास का फ़ैसला खुद लेने देने की छूट मिलनी चाहिए। लेकिन, क्या सचिन 200 टेस्ट मैच खेलने का रेकॉर्ड कायम करने के लिए रूके हैं।
मैं सचिन को लेकर भावुक हो जाता हूं क्योंकि एक आम हिंदुस्तानी की तरह सचिन हमारे दिलों में बसते हैं। रणजी मैच में कितना अच्छा खेले थे सचिन। अब क्यों छीछालेदर करवा रहे हैं।
हम ये कत्तई नहीं चाहते कि सचिन हर मैच में सैंकड़ा ठोंके। हम चाहते हैं कि अगर लोग उन्हें सम्राट, या गॉड कहते हैं, तो उस पदवी के साथ वो खुद न्याय करें। जिस पिच पर पुजारा खेल सकते हैं, जिसपर गंभीर रूके रहे...इन दोनों क्रिकेटरों का कुल अनुभव सचिन के रणजी अनुभव से ज्यादा नहीं।
अब या तो सचिन ज्यादा सावधानी के चक्कर में पिट रहे हैं, या फिर उम्र उन पर हावी होती जा रही है।
अपने नायक की ऐसी दुर्गति मुझे बर्दाश्त नहीं हो रही...सचिन, मैं अपने बेटे को अज़हर, मोंगिया, या जडेजा नहीं बनाना चाहता था. मैं उसे धोनी या सहवाग भी नहीं बनाना चाहता था। आप ऐसे विहेब करेगे, तो मैं उसे कैसा बनने को कहूंगा।
याद रखिए सचिन, ईश्वर एक वर्चुअल पद है...और उसे भी एक दिन संन्यास ले लेना चाहिए, वो भी बाइज्ज़त।
सचिन अभी क्रिकेट का आनंद ले रहे हैं। उसमें आउट होना भी आता है भाई!
ReplyDeleteआनन्दम् इति आनन्दम्...
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