कुमार आलोक लेख को किस्सागोई के अंदाज़ में कहना जानते हैं। लालू की शैली और उनकी राजनीति पर न जाने कितना कुछ लिखा गया है, लेकिन कुछ किस्से ऐसे हैं, जो सुने नहीं गए, या कम सुने गए। यह लालू पर उनके अपने तजुर्बे का कुछ हिस्सा है।--गुस्ताख
लालूजी के बारे में ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं। वे खुद में
एक बडे आइकन हैं। 90’ में सत्तासीन हुए लालू के बारे में छह-सात साल तक कोइ सोच भी
नहीं सकता था कि बिहार की गद्दी से कोई इस आदमी को जुदा कर सकता है।
लालू के भदेसपन से चिढ़ते थे बौद्धिक |
शुरूआती दौर में जहां राजनीतिक हलके में उन्हें मसखरा कहा गया,
वहीं बौद्धिक तबके ने ताश का तिरपनवां पत्ता करार दिया। लेकिन लालू की लोकप्रियता
बढती ही गई।
आखिर, इस व्यक्ति में खास क्या है। सबसे खास था कि लालू ने
अपने वोट बैंक की नब्ज थाम ली थी। एक वाकया है, सन् 2000 के आसपास गरीब रैली हुई
थी। लालू इसके प्रचार-प्रसार के सिलसिले में बिहार में जगह जगह सभाओं के माध्यम से
जनता को भारी संख्या में पटना आने की दावत दे रहे थे।
लालू मेरे कस्बे में भी आये। शाम हो गई, अंधेरा पसर रहा था। लालू
ने ज्यादा भाषण नहीं दिया, भाषण समाप्त करते ही रथ पर सवार अपने सहयोगी से कहा, ‘अरे
जरा उ बिदेश से जो कैमरा लाए है दो हमको’। वस्तुतः वो कैमरा नही बल्कि
जापानी टॉर्च था जिसकी लाइट ब्लिंक करती थी और सायरन की-सी आवाज निकलती थी।
लालू ने अपने श्रोताओं से कहा, देखो भाई, ये कैमरा हम विलायत
से लाए है और ये तुम लोगों का फोटू खिंचेगा। जब कल रैली समाप्त होगी तो मैं इसकी
रिकॉर्डिंग देखूंगा। तब हमको पता चल जाएगा कि तुम लोगों में से कौन-कौन रैली में
नही पहुंचा है। लालू ने उस टार्च को घुमाना शुरु किया।
मेरे साथ भीड़ में एक दूध बेचने वाला इन्सान पटना से अपना दूध
बेचकर वापस अपने गांव जा रहा था। लालू जी चूंकि भाषण दे रहे थे तो बेचारा ठहरकर
लालू जी का भाषण सुन रहा था।
जैसे ही टार्च की रौशनी उसके मुख पर पड़ी, उसने कहा अरे बाप रे
बाप लालू जी फोटुकवा खिंच लिये कल बेटी के यहां जाना था ..अब तो हमें रैली में
जाना ही होगा। खैर, पढे लिखे लोग तो लालूजी की इस नौटंकी को समझ रहे थे लेकिन भोली
भाली जनता को झांसा देना कहां का न्याय है।
जब लालू सत्ता में थे, तो कहा जाता था कि लालू अगर कुत्ते के गले
में भी लालटेन डाल देंगे तो वे सीधा संसद या विधानसभा पहुंच जाएगा। इसी क्रम में
उन्होने पत्थर तोडने वाली औरत भगवतिया देवी को संसद में प्रवेश करा दिया।
लालू के मुख्यमंत्री बनते ही एकाएक कई मसखरे-भाट पैदा हो गये ।
उन्हीं में से एक चारण-भाट थे ब्रहदेव आनंद पासवान। पहले वो मच्छर चालीसा लिख चुके
थे। बाबा चूहरमल जयंती पर उन्होने लालू चालीसा पढकर सुनाया।
लालू का ये चालिसा फुटपाथ से लेकर ट्रेन में फेरी लगाने वाले
तक बेचने लगे। मशहूर गायक बालेश्वर का भी गीत खूब प्रचलित हुआ ..बोकवा वोलत नइखें
..केतनो खीयाइ हरियरी...। खैर बालेश्वर के गीत में आलोचनात्म तथ्यों की भरमार थी
लालू के लिये।
लेकिन किस्मत चमकी मच्छर चालिसा के लेखक की। उन्हें लालू ने
राज्यसभा के लिये नामित कर दिया। ब्रहदेव आनंद पासवान को लोग कुदरबेंट भी कहते थे।
18 महिने के बाद इस मसखरेबाज का टर्म ओवर हुआ और लालू ने फिर इन्हें बाबा चूहरमल
के पास भेज दिया।
संसद में रिपोर्टिंग के लिये जाता हूं तो मच्छर चालीसाबाज वहां
हमेशा मिल जाते है ...शायद पंशन-वेंशन के चक्कर में। वहीं 1991 में पटना लोकसभा
सीट से प्रत्याशी थे पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल। लालू के वोट बैंक के
लोगों ने कहा कि लालू जी इ तो पंजाबी हैं हमरे जात का नहीं है ..वोट कैसे दें
इसको.....तब लालू ने कहा कि अरे गुजरलवा गुर्जर हैं माने दिल्ली के गोवार हैं,.वोट
दो मजे में.. लालू के समर्थकों ने बैलेट बॉक्स में इतना वोट डाल दिया कि आज तक
उसका परिणाम नही आया।
लालू ने बहुतो को बनाया लेकिन वैसे लोगों को बिसरा दिया जो
लालू प्रसाद को देवता मानते थे। उन्हीं में से एक थी रामरती देवी।
शुरुआती दौर में लालू की हर सभा की शुरुआत रामरति के गीतों से
होती थी। कबीरपंथी हैं वो। रात को लालू जी का सर दर्द करता था तो रामरती लालू के
बाल में तेल लगाती थी और कबीर के भजन सुनाया करती थी। लालू उससे हर साल राखी
बंधवाते थे।
चितकोहरा पुल के निचे मुसहरों की बस्ती में झोंपडा बनाकर रहती
थी। सन 2000 में रामरति की बेटी की शादी थी, बतौर मुख्यमंत्री राबड़ी देवी गई भी
थीं।
कहा जाता है कि राबडी जी ने पूछा रामरती दीदी बाथरुम कहां है। रामरति
ने कहा कि दीदी हमलोग खुले में शौच करते है। फिर क्या था, अगले दिन रामरती का
झोंपडा कोठे में तब्दील हो गया।
रामरती के एक बेटे को राबडी ने सरकारी नौकरी भी दी । मैने लालू
के दल में ऐसा प्रतिबद्ध व्यक्तित्व नहीं देखा ।
जब 2005 में रामरति ने लालू जी से कहा कि सिंधिया विधानसभा सीट
से हमरो लडा द साहेब। लेकिन साहेब ने रामरती को टिकट ना देकर एक माफिया को दे दिया।
रामरति की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई, साहेब के प्रति श्रद्धा आज भी पहले जैसी
ही है।
---जारी
ये किस्से पहली बार पढे। रोचक। :)
ReplyDeleteजन का जुड़ाव, विशेष ही होता है।
ReplyDeleteलालू ने सरकारी अव्यवस्था से त्रस्त जनता की रग पहचानी,कुछ उनके राजयोग के संयोग ने साथ दिया और वे शिखर पर पहुँच गए.अन्यथा उनकी क्या पहचान है और क्या थी सभी इस से परिचित हैं.राजनीती में ऐसा होना समय का फेर है,वर्षों से यह होता आया है,इतिहास इस बात का साक्षी है.
ReplyDeleteinteresting...
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