चलिए, एक चीज में हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया। जनसंख्या
की बात नहीं कर रहा, क्योंकि मौजूदा दर
से बढ़ते रहे तो भी हम 2030 में ही चीन को पीछे छोड़ पाएंगे। विकास दर की बात भी नहीं कर रहा क्योंकि इसके
आधार वर्ष में मामूली फेरबदल से आंकड़े उलट जाते हैं।
मैं भूख की बात कर
रहा हूं। हमारे महान भारतवर्ष में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या दुनिया में सबसे
अधिक है। यह आंकड़े संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने अपनी रिपोर्ट द स्टेट ऑफ
फूड इनसिक्युरिटी इन द वर्ल्ड 2015 में जारी किए हैं। इस रिपोर्ट में विश्व भुखमरी सूचकांक भी जारी किया गया है,
जिसमें 79 देशों के आंकड़े लिए गए हैं। निराशा इस बात की
है कि भारत को इसमें 65वां स्थान दिया गया है। हमसे कहीं कम विकसित देश पाकिस्तान 57वें और श्रीलंका 37वें पायदान पर हैं। यानी इस मामले में पाकिस्तान
और श्रीलंका हमसे बेहतर हैं।
संयुक्त राष्ट्र की
भूख संबंधी सालाना रपट के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं। इसी रिपोर्ट
में कहा गया है कि दुनिया भर में भुखमरी के शिकार लोगों की गिनती कम हुई है। नब्बे
के दशक में, 1990 से 1992 के बीच दुनिया भर में यह संख्या एक अरब थी और 2015 में यह संख्या घटकर 79.5 करोड़ रह गई है।
हालांकि, भारत में भी तब से अबतक भूखे पेट सोने वालों की
संख्या में गिरावट आई है। 1990-92 में भारत में यह संख्या 21.01 करोड़ थी, जो 2014-15 में घटकर 19.46 करोड़ रह गई। लेकिन विकास की रफ्चार के मद्देनज़र
और समावेशी विकास के ढोल-तमाशे के बीच भुखमरी के शिकार इतनी बड़ी आबादी का होना ही
नीतियों को पुनर्भाषित करने की जरूरत की तरफ इशारा करता है।
हालांकि भारत ने अपनी
आबादी में खाने से महरूम लोगों की संख्या घटाने में महत्वपूर्ण कोशिशें की हैं लेकिन
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक अब भी और कोशिशों की जरूरत है। रिपोर्ट में
उम्मीद जताई गई है कि भारत के अनेक सामाजिक कार्यक्रम भूख और गरीबी के खिलाफ जिहाद
छेड़े रहेंगे।
लेकिन गौर करने बात
है कि इन पचीस सालों में चीन ने अपनी आबादी में से भुखमरी के शिकार लोगों की गिनती
में उल्लेखनीय कमी की है। 1990-92 में चीन में यह संख्या 28.9 करोड़ थी जो अब घटकर 13.38 करोड़ रह गई है। एफएओ की निगरानी दायरे में आने वाले 129 देशों में से 72 देशों ने गरीबी उन्मूलन के बारे में सहस्राब्दि
विकास लक्ष्यों को हासिल कर लिया है।
विश्व भुखमरी सूचकांक
में अफ्रीकी देशों में सुधार आया है और भूख पर काबू पाने में अफ्रीकी देशों ने एशियाई
देशों की तुलना में कहीं अधिक कामयाबी हासिल की है। लेकिन इरीट्रिया और बुरूंडी जैसे
देशों में स्थिति अभी भी चिंताजनक है और वहां खाने की किल्लत और कुपोषण जैसी स्थितियां
बनी हुई हैं।
एक तरफ तो हम भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति
के बारे में विश्व भर में कशीदे काढ़ रहे हैं लेकिन सच यह भी है कि हम विश्व भुखमरी
सूचकांक में पिछड़कर फिसलते जा रहे हैं। 1996 से 2001 के बीच स्थितियों में कुछ सुधार देखने को मिला
था लेकिन अब स्थिति वापस वहीं पहुंच गई जहां 1996 में थी।
इस मसले पर मुझे ज्यादा
कुछ नहीं कहना है, मैं बस दो घटनाओं
को याद कर रहा हूं। पंजाब विधानसभा चुनाव कवर करने के दौरान मैंने देखा था जालंधर में
आलू उत्पादक किसानों ने अपनी फसल सड़को पर फेंक दी थी। दूसरे, मुझे यूपी के ललितपुर जिले के पवा गांव की बदोलन
बाई याद आ रही है, जिसका पति 2011 में भुखमरी का शिकार होकर चल बसा था, और अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर उसने कहा थाः सब राजकाज
होत दुनिया मा, बस हमरे सुध ना लैहे
कोय।
राजकाज चलता ही रहता
है, लेकिन जनता-जनार्दन की ऐसी
हाय बहुत भारी पड़ती है। मायावती गवाह हैं।
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ReplyDeleteकुछ-कुछ सहमत !
ReplyDeleteपर हम चीन या अमेरिका पर ही क्यों अटक जाते हैं !!
अच्छा लेख है..आपसे संपर्क हो सकता है..क्या..
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