Tuesday, January 26, 2016

यह तेरा इंडिया, यह मेरा इंडिया

पूरा देश गणतंत्र दिवस मना रहा है। हम भारत के लोग उत्सवप्रिय हैं। ईद-दशहरे-होली-क्रिसमस से लेकर वैलेंटाईन डे तक सब मनाते हैं। जोश-ओ-खरोश से मनाते हैं। 

मैं इस मौके पर बदमज़गी नहीं करना चाहता, यह सवाल पूछ कर कि अपना यह गणतंत्र कितना गण के हिस्से में है और कितना तंत्र के हिस्से में। 

लेकिन देश देखा है मैंने। जम्मू-कश्मीर सूबे में अक्साई चिन् से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के हैवलॉक टापू तक। देश देखा है मैंने। सच में अद्भुत है। 

हिन्द सा कोई नहीं। विदेश देखा मैंने। मॉस्को से टोक्यो तक। हिन्द सा कोई नहीं। 

हमने जो देखा, वो अपनी निगाहों से देखा। धूमिल-गोरख-इंशा-बाबा-पाश-त्रिलोचन-सांस्कृत्यायन सी आंखे कहां से लाऊं? मेरी आंखें एक छोकरे की आंखे हैं, जो पथरचपटी का है। जिसके पास पांव है और है एक अदद साइकिल। आंख है, और दिल है, जो देश को आंखों में दिल में संजो लेता है।

जब छोटे थे अलसभोर में जागकर स्कूल जाते। महेन्द्र कपूर की आवाज़ में सुनते मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरा-मोती। जलेबियां खाते। देश के लालों की तस्वीरें देखकर, देशभक्ति का जज्बा दिल में भरते, शाम को टाउन हॉल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने हिस्से के  नाटक की तैयारी करते...। दिन बीत जाता। 

महेन्द्र कपूर की आवाज़ मेरे दिल में जगह बनाए रही थी। देश की माटी सोना उगलती है, हीरा मोती उगलती है। कहां उगलती है? इसी की खोज में लगा रहा हूं। 

देश में बहुत घूमा। बंगाल से लेकर कर्नाटक तक, पंजाब-हरियाणा-गुजरात से लेकर यूपी-मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड तक। 

गणतंत्र है। गुणतंत्र नहीं है। जन के लिए तंत्र ने रास्ता तंग कर दिया है। लेकिन, महान हिमालय में ग्लेशियरों को देख लीजिए या लक्षदीव और अंडमान में समंदर के नीले-मोरपंखी  पानी को, बिहार-बंगाल में धनखेतो की हरीतिमा को देख लीजिए या यूपी-पंजाब-हरियाणा में गेहूं की सुनहरी बालियों को, छत्तीसगढ़ में साल के वन की हरियाली से आह्लादित होइए कि  झारखंड के पलाश जंगलो के खिलने पर उसे जंगल की आग समझिए, बिना भारत को देखे भारत को समझा नहीं जा सकता। 

भारत को समझेंगे तो इसकी समस्याएं भी समझ  में आ जाएंगी। 

भारत को समझना है तो गंगा को समझिए, गंगा को बचाइए। गंगा के किनारे हमने एक लंबा सफर किया था, गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक, इस सफर ने हमें भारत को समझने में बहुत मदद की थी। 

गुजरात में राजकोट के पास थाण में एक मंदिर है। पांडवकालीन। कभी वहां जाइए। मकरसंक्रांति के दिनों वहां जनजातीय मेला लगता है। लड़कियों को छूट होती है अपना लड़का चुनने की। तरनेतर का मेला कहलाता है। 

राजस्थान जाएं तो करणी माता का मंदिर देखिए, लेह का दौरा करें तो मैग्नेट हिल के साथ जांस्कर-सिंधु का संगम देखिए, बंगाल जाएं तो अलीपुर दुआर के पास मदारीहाट अभयारण्य जाएं पता लगेगा आपको कि गैंडे सिर्फ काजीरंगा में ही नहीं, बंगाल में भी पाए जाते हैं। 

गोवा आप जाते रहते होंगे, छुट्टियां मनाने। गोवा यानी नशा, बीच और लड़कियां। है ना। लेकिन रूकिए। गोवा जाएं तो वहां पणजी से ठीक तीन किलोमीटर दूर मांडवी नदी के पास एक बर्ड सेंचुरी है। वहां जाकर आपको जो मजा आएगा वह कोलुंगगुट बीच के मजे से अलहदा होगा। 

भारत के जंगलों में हरेपन की किस्में देखिए। गौर कीजिए। अगर हरेपन के सबसे शेडी हिस्से को देखना है तो अरूणाचल के अनछुए सौन्दर्य को देखने जाइए। नामदफा के जंगलो में। काला हरापन है। 

झारखंड में पत्थरों के बीच नदियों की अठखेलियों पर नजर डालिए। घूमने के लिए विदेश ही क्यों...देश में बहुत कुछ है। समस्याएं कहां नहीं होतीं, अच्छा हो कि हम समस्याओं का हल खोजें लेकिन उससे पहले अपने अद्भुत भारत पर गौरव करना सीखें। 

देशभक्ति किसी पार्टी विशेष की संपत्ति नहीं और न ही इसका कोई खआस रंग है। देशभक्ति का मतलब सरहद पर जाकर गोली चलाना ही नहीं है। अपने कर्तव्यों का पालन करें तो यह भी देशभक्ति ही है। 

बाकी जो है सो तो हइए है। 

4 comments:

  1. बहुत प्यारा है अपना देश, देखने के लिये भी और रहने के लिये भी।

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  2. भारत जैसा कोई देश नहीं है यहां पर हर तरह की सभ्यता और संस्कृति देखने को मिलती है इसीलिए तो अपना प्यारा देश हमरा

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - भारत भूषण जी की पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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