शिव सीरीजः अनुरक्ति
गौरी के लिए रात-दिन बराबर हो गए. न नींद, न भूख-प्यास. आंखों में आंसू भरे रहते थे और हृदय में शिवजी। कभी कन्द-मूल-फल का भोजन होता, कभी जल और कभी तो कई-कई दिनों का उपवास. प्रेम में पड़ी गौरी के बचपने ने उनको उमा बना दिया तो भोजन के लिए पत्तों का भी त्याग करके वह ‘अपर्णा’ बन गईं.
नीद न भूख पियास सरिस निसि बासरु/नयन नीरु मुख नाम पुलक तनु हियँ हरु।।
कंद मूल फल असन, कबहुँ जल पवनहि/सूखे बेल के पात खात दिन गवनहि।।
यह कमसिन उम्र और ऐसी घोर तपस्या. एक पैर पर खड़ी गौरी ने देखा एक साधु सामने खड़े थे, ये किसके प्यार में पड़ गई हो तुम बेटी! न रहने का ढंग, न खाने का शऊर, खुद क्या खाएगा तुम्हें क्या खिलाएगा? भांग-धतूरा?
एकउ हरहिं न बर गुन कोटिक दूषन/नर कपाल गज खाल ब्याल बिष भूषन।।
कहँ राउर गुन सील सरूप सुहावन/कहाँ अमंगल बेषु बिसेषु भयावन।
न रूप, न गुण...सिर के सारे बाल सफेद...देह में राख मली हुई..हुंह अघोरी कहीं का...गौरी की आंखें क्रोध से लाल हो गईं. लेकिन साधु से कुछ न बोलते हुए वह कहीं और तपस्या करने जाने लगीं. लेकिन यह क्या, वही साधु सामने रास्ता रोककर खड़ा था. गौरी को गुस्सा आ गयाः क्यों जी, बड़े ढीठ हो। इतनी बातें कहीं, फिर भी समझ नहीं आता? किसने भेजा है तुम्हें, मुझे बहकाने के लिए?
साधु ने मुस्कुराते हुए बांहे फैला दीं। गौरी का गुस्सा बांध तोड़ने के लिए बेताब हो गयाः अरे दुष्ट साधु, तुम बातों से नहीं मानोगे? जानते नहीं मन ही मन मैं शिव को पति मान चुकी हूं और मेरे सामने ऐसी ओछी हरकत कर रहे हो? इससे पहले कि मैं तुम्हें शाप देकर भस्म कर दूं, निकलो यहां से। साधु मुस्कुरा उठे थे। लेकिन साधु को तुरंत अपनी गलती का अहसास हुआः साधु बने शिव ने खुद को देखा...और फिर असली रूप में आए. प्यार से पुकारा था उन्होंनेः देवि!
गौरी ने सिर उठाकर देखा तो सामने शिव...उनकी पूरी दुनिया. उनके जीवन का लक्ष्य़...वह ख़ुद. शिव कौन? खुद गौरी ही तो!
गौरी और शिव एक हो गए. प्रेम की बेल हरी हो गई.
हर-हर महादेव !
ReplyDelete