Thursday, April 12, 2018

सन्तो जागत नींद न कीजै

जीवन में सबसे जटिल दिखने वाली चीजें सबसे सरल होती हैं, यह कहना किसी को उम्मीद का दिया दिखाने जैसा है. किसी लड़ रहे शख्स के अंदर के नैराश्य को मारकर उसे फिर से हथियार तान लेने के लिए तैयार करने जैसा. वैसे यह सत्य है कि ऐसी प्रेरणाओं की ज़रूरत सबको होती है. कुछ वैसे ही जैसे कि ईश्वर की.

ईश्वर की मौजूदगी आपको सबल बनाती है. आप ईश्वर को नहीं मानते (या खुद को नास्तिक कहते हैं) इसका अर्थ यह नहीं कि ईश्वर का विरोध करें. या किसी मंदिर मस्जिद या किसी और पूजा स्थान न जाएं. नास्तिक होने के लिए किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होनी चाहिए. आजकल होती है. लोग कहते हैं तुम्हारे व्यवहार से तो लगता नहीं कि तुम नास्तिक हो. नास्तिक होना तर्कशील होना होता है. ईश्वर का विरोध करना नहीं. विरोध करना किसी के होने को स्वीकार्यता देना होता है और आप किसी के नहीं होने की बात को अंतःकरण से मानते हुए भी उसके होने से जुड़े कई कामों से जुड़ सकते हैं और आपको जुड़ना पड़ेगा.

फिर एक तरफ है परंपरा, दूसरी तरफ समाज तीसरी तरफ आपका विचार और चौथी तरफ आप खुद, यानी मैं. यद्यपि मैं मानता हूं कि अगर ईश्वर है तो वह ‘मैं’ ही है. अध्यात्म में ‘तुम’ का स्थान नहीं है. वहां अगर ईश्वर की अवधारणा है तो वह ‘मैं’ ही है. मैं का होना और विद्यमान होने को महसूस करना ही ईश्वर की खोज है. वस्तुतः सत्य यही है.

फिर सत्य की अवधारणा को लेकर कई सवाल हैं. आखिर, सत्य क्या है? जो आपने सुना क्या वह सत्य है? क्या आपने अपनी आंखों से देखा वह सत्य है? आप कहेंगे शायद हां.

सुनी हुई बातें तो आधी सच्ची आधी झूठी. आंखो देखी को आप सत्य मान सकते हैं, लेकिन यकीन करिए वह भी सत्य हुआ नहीं करतीं. एक ने कहा है, Reality is merely an Illusion.

यथार्थ महज एक संभ्रम है. मैं बताता हूं कैसे.

देखिए, पृथ्वी से सबसे नजदीक का तारा है सूर्य और दूसरा सबसे नजदीक का तारा प्रॉक्सिमा सेंचुरी है. प्रकाश की गति करीब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड होती है और सूर्य पृथ्वी से कोई 15 करोड़ किमी दूर है. इस तरह, सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट और 20 सेकेंड का वक्त लेती है.

इसीतरह, प्रॉक्सिमा सेंचुरी पृथ्वी से कोई साढ़े 4 प्रकाश वर्ष दूर है. एक प्रकाश वर्ष यानी एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करे. याद रखिए प्रकाश की गति एक सेकेंड में 3 लाख किमी है.

अब फर्ज कीजिए कि सूर्य की बत्ती अचानक गुल हो जाए तो हमें यह पता चलने में 8 मिनट बीस सेकेंड लगेंगे और प्रॉक्सिमी सेंचुरी का दिया बुझ जाए तो हमें यह पता चलने में साढ़े चार साल का वक्त लगेगा.

इसके बरअक्स, हम अगर कोई ऐसा यान बना लें, जो प्रकाश की गति से चले और हम प्रॉक्सिमा सेंचुरी की तरफ ही चल पड़ें तो दो साल चलने के बाद हमारे पास वह सूचना होगी जिसकी पृथ्वी पर पहुंचने में दो साल और लगेंगे. यानी हम भविष्य की यात्रा पर होंगे. प्रॉक्सिमा सेंचुरी और सूर्य जैसे खबरों तारे हमारी आकाशगंगा में, विभिन्न मंदाकिनियों में और पूरे ब्रह्मांड में मौजूद है. जिनमें से ज्यादातर हमसे कई करोड़ प्रकाश वर्ष दूर हैं. यानी हम अपनी खुली आंखों से आसमान में जो तारे देखते हैं उनमें से कई असल में मौजूद हैं ही नहीं. यथार्थ वाकई भ्रम ही है. इसलिए भ्रम को सत्य न मानिए.

सन्तो जागत नींद न कीजै.

आइए, वापस धरती पर लौटते हैं, जहां प्रकृति ने हमें एक ज्यादा अनमोल उपहार सौंपा है. जिसे हम प्रेम कहते हैं. एक तरफ हम कहते हैं अहं ब्रह्मास्मि. मैं ही ब्रह्म हूं. ब्रह्म में मैं ही हूं...

दूसरी तरफ कहते हैं, मैं तो कूतरा राम का मोतिया मेरा नाम.

प्रेम का कौन सा स्वरूप आपको भाता है? पूजित होना या मंसूर की तरह अन लहक, अन लहक कहकर अपने यार के लिए खुद को बिसरा देना? विकल्प आपके पास है. खुशी किससे ज्यादा मिलती है? जो भी हो यह अनंत की दिव्य विभूति है जो जीवन का आवश्यक अंग है.

क्या आपको अपने प्रिय तक पहुंचकर भावोन्माद होता है? आपकी आंखें भर आती हैं, मन में कसक उठती है? कि इसकी ताबीज की तरह गले से लटकाकर मलंग बन जाऊं?

सोचिए, अगर इंन्द्रियां अपनी-अपनी कार्यशक्ति एक-दूसरे से बदल ले तो संसार में क्या परिवर्तन हो जाएगा? मसलन, हम रंगों को सुनने लगें और ध्वनियों को देखने लगें तो हमारे जीवन में क्या अंतर आ जाएगा?

अपनी किताबह मिस्टिसिज्म में अंडरहिल लिखते हैं,

I Heard flowers that sounded and saw notes that shone.

मैंने उन फूलों को सुना जो शब्द करते थे और उन ध्वनियों को देखा जो जाज्वल्यमान थीं.

प्रेम में शरीर की सारी शक्तियां निरालम्ब होकर अपने को अनन्त की गोद में छोड़ देती हैं. एक तरफ यथार्थ है, जो संभ्रमित करता है अगर आप उस पर विचार करें, दूसरी तरफ अहं ब्रह्मास्मि है जो आपको कहता है कि ब्रह्मांड के केंद्र एक मात्र आप ही है और दुनिया के सार काम आपको केंद्र में रखकर होने चाहिए तीसरी तरफ प्रेम है, जिसमें अगर आप हैं तो आप जॉन स्टुअर्ट ब्लैकी की तरह कहते हैं,

As Fishes swim in briny sea,

As Fouls do float in the air,

From thy embrace we cannot flee,

We breathe and thou art there.

(जिसतरह मछलियां समुद्र में तैरती हैं, जिस प्रकार परिन्दे हवा में झूलते हैं, तेरे आलिंगन से हम अलग नहीं हो सकते. हम सांस लेते हैं, क्योंकि तू वहां मौजूद है.)
यह अनुभूति इतनी दिव्य और अलौकिक होती है कि संसार के शब्दों में स्पष्टीकरण असंभव नहीं तो कम से कम कठिन जरूर है. आप खुद को मैं समझें या खुद को तुम समझें, लेकिन बाकी के लोगों के विचार उस गहराई तक नहीं पहुंच सकते जहां वह जटिल को जटिल और सरल को जटिल और सरल को सरल या जटिल को सरल समझने की पर्याप्त व्याख्या कर सकें.

खुद को और तुम को भी, मैं समझने की स्थिति एक सफर है, उस दिव्य अनुभूति में इंद्रियां अपना काम करना भूल जाती हैं. वे निस्तब्ध होकर अपना काम-काज अव्यवस्थित रूप से करने लगती हैं. इसका विश्लेषण करें तो उसमें हम जाने कितने गूढ़ रहस्यों पर से परदा उठा सकते हैं. फारसी के कवि शम्स तबरीज लिखते हैं,

ब यादे बज़्मे विसालश् दर आरज़ू ए जमालश्

फ़ुतादा बे ख़बर अन्द ज़ेआँ शराब कि दानी

चि खुँशबूअद कि बदूयश बर आस्तान ए कूयश

बराए दीदने रूयश शमे बरोज़ रसानी

हवा से ज़ुल्मए खुद रा बनूरे जाने तो बर अफ़रोज़

(दीवान-ए-शमसी तबरीज़)

(उसके सम्मलिन की स्मृति में,

उसके सौंदर्य की आकांक्षा में,

वे उस मदिरा को—जिसे तू जानता है—

पीकर बेसुध पड़े हैं.

कैसा अच्छा हो कि उसकी गली के द्वार पर

उसका मुख देखने के लिए

वह रात को दिन तक पहुंचा दे

तू अपने

शरीर की इंद्रियों को

आत्मा की ज्योति से जगमगा दे.

ज्ञान की अवस्था चार तरह की होती है, पहला आप जानते हैं कि आप क्या जानते हैं. दूसरा, आप जानते हैं कि आप क्या नहीं जानते. तीसरा आप नहीं जानते हैं कि आप क्या जानते हैं और चौथा आप नहीं जानते कि आप क्या नहीं जानते.

विज्ञान इन चारों कसौटियों पर खुद को सकता है. इसलिए वह विज्ञान है. जो वह नहीं जानता उसे जानने की कोशिश करता है. विज्ञान में कुछ भी अंतिम सत्य नहीं है. नए समाधान हमेशा अपनाए जाते हैं. अध्यात्म में भी थोड़ा बहुत ऐसा है लेकिन कर्मकांड तो कत्तई नहीं है. विज्ञान इसीलिए मौलिक है. धर्म इसीलिए रोकता है. ईश्वर की जो सत्ता है, उस पर आप सवालिया निशान खड़े नहीं कर सकते. समाज आपको रोकेगा, और तब अनहल्लाज मंसूर की तरह आप अपनी अनुभूति के गीत गाते-गाते थक जाएंगे, लोग समझ ही नही पाएंगे, समाज आपको ईश्वरीय सत्ता का विनाश करने वाला समझकर मंसूर की ही तरह धड़नतख्ते पर भी झुला सकता है.

इसलिए आप तर्कवादी है, आप के पास ईश्वर, सत्य और यथार्थ से जुड़े अपने तर्क हैं तो आप को चुप रह जाना पड़ता है. आपके पास अपार प्रेम है तो आप कई दफा खामोश रह जा सकते हैं कि जिससे आप प्रेम कर रहे हैं वह इसको कितना समझेगा, किस स्तर तक समझेगा, समझेगा भी या नहीं,

नश्वर स्वर से कैसे गाऊं आज अनश्वर गीत!


जारी रहेगा







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