Saturday, April 26, 2008

साड़ी में चीयर गर्ल्स्

भईयन, अजब-गजब तमाशा हो रहा है आईपीएल में भी। भज्जी भैया ने श्रीसंत को लाफा मार दिया। बदले में संत समान श्रीसंत रो पड़े। ऐसा रोए कि भाई तुलसी मैया भी क्या रोती होंगी। गज़ब ये कि ग्लिसरीन की भी ज़रूरत नहीं पड़ी। वितंडा हुआ। अख़बारों में लेख लिखे गए। युवराज का बयान आया। प्रीटी जिंटा ने दिलासा दिया। काश कोई हमें भी ऐसे ही थपड़ाता, तो कम से कम प्रीटी जैसी कमसिन, सुंदर, नाजुक, कन्या हमें भी दिलासा देती। ड्रेसिंग रुम में ले जाकर। मार खाने का भी नसीब होता है भाईयों, हम तो लप्पड़ के भी काबिल नहीं।

उधर एक और चोंचला देखने को मिला। लोग-बाग मैदान में लड़कियों के नाचने पर गुस्सा हो गए। शुद्धतावादियों को लगता है यह सब क्रिकेट के नाश के लिए हो रहा है। उनको कोई कहे कि भैये इससे क्रिकेट का विस्तार होगा। जो लोग क्रिकेट नहीं पसंद करते महज रास रंग में ही डूबे रहते हैं, वे बी क्रिकेट के वक्त टीवी खोल कर बैठेंगे। कन्याओं का उत्तम किस्म का नृत्य देखने। इस उम्मीद में कि कभी न कभी, कहीं न कहीं, तो इनमें से किसी का कपडा़ खिसक जाएगा। मुंबई वालों के दिल पर लगी है। वे कहते हैं कि हमने हल्ला करके बार बालाओं को डांसने से रोक दिया है। इनके नृत्य को जारी रहने दें, तो वोट का क्या होगा। सो उन्होंने कह दिया है डांस पूरे कपड़ों में हो,तभी जारी रहने दिया जाएगा। नैतिकता के पहरुओं को लगता है कि यह हमारे कल्चर पर हमला है। गुरु घंटालों, हमारे कल्चर पर ऐसे फतवेबाजी करने से पहले सोचो तो सही कि कोई रास्ता तो होगा.. डांस भी चलता रहे और हमारे कल्चर पर वल्चर की नज़र भी न लगे। साड़ी पहना दें चीयर्स गर्ल्स को? मजा़ आएगा? साडी मेंफुदकती लड़कियां, कल्चर भी सेफ, नाच भी चल रहाहै। मनोरंजन भी क्रिकेट नाम का खेल भी....।

लेकिन गुस्ताख़ को लगता है कि हमारे महान आदर्शों वाले देश में आंकड़े बताते हैं कि ब्लू फिल्मों की मांग सबसे ज्यादा क्यों है। सेक्स को निकृष्ट माननेवाला देश सौ करोड़ से अधिक की आबादी कहां से आयात कर लाया। आईपीएल बिज़नेस है, उसे फलने और फूलने दें। लोगों का आकर्षण कम हो जाएगा, और तब इस नाच की भी प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी।
और हां, बात मुंबई की भी, यही वह जगह है जहां फिल्में सबसे ज़्यादा बनती हैं। इनमें हर तरह के नृत्य होते हैं। कथित नैतिकता के ठेकेदार इसपर ध्यान देंगे? और हां, इन फिल्म बनाने वालों में ठाकरे की बहू स्मिता भी हैं, जिनकी फिल्म सपूत में नायिकाओं ने साडि़यां नही पहनी थी। उन्होंने ज़ोरदार बिकनी दृश्य दिए थे, हमारी जेह्न में अब भी ताजा है वह तस्वीरें....। गुस्ताखी माफ.

6 comments:

  1. गुस्ताखी माफ़ कर दी हमने तो, पर क्या ठाकरे साहब और उनकी 'सपूत' वाली बहू कर पाएंगे? उन्हें समझाने के लिए कुछ कीजिए। :)

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  2. भाई इस लेख से तो आपने बीस बीस की भाषा मे कहें तो छका ही मार दिया है गुस्ताखी में लगे रहिये।

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  3. सब चोंचले है ,श्रीसंत भी अभी नही समझ पाए है की आपको एक मंच पे कैसा व्यवहार करना चाहिए ..ओर बाकि चीरय्स गर्ल की बात तो कल राजीव शुक्ला जी ने कह ही दिया पुबिलिक स्टंट है ...

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  4. "नैतिकता के पहरुओं को लगता है कि यह हमारे कल्चर पर हमला है। "

    इन लोगों के मुताबिक देश को जाति और क्षेत्र के नाम पर बांटना, लोगों को लड़ाना, घूंस लेना/देना हमारे कल्चर का हिस्सा लगता है. तभी तो इस पर कभी बवाल खड़ा नही होता है.

    "लेकिन गुस्ताख़ को लगता है कि हमारे महान आदर्शों वाले देश में आंकड़े बताते हैं कि ब्लू फिल्मों की मांग सबसे ज्यादा क्यों है। सेक्स को निकृष्ट माननेवाला देश सौ करोड़ से अधिक की आबादी कहां से आयात कर लाया।"

    बहुत सही!

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  5. टशन के इस वालपेपर को देखिये. करीना कपूर ने लगभग वैसे ही कपड़े पहने हैं जैसे कि चीयर गर्ल्स पहनती हैं. इस पर तो कोई बैन नही है.

    http://vibgyorlife.com/wallpapers/Wallpaper.aspx?xcatid=752

    http://vibgyorlife.com/wallpapers/Wallpaper.aspx?xcatid=741

    इसी प्रकार इतने सारे रिमिक्स आते हैं उनपर भी बैन नही है.

    वैसे ये विचार भी अच्छा है कि लड़कियों को साड़ी पहनाकर नचाया जाये. उससे भी भीड़ जुटेगी. अरे भई जब वो साड़ी में फ़ंसकर लद्द लद्द गिरेंगी तो सब मजा लेंगे.
    ही ही ही.

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  6. thakre aur कथित नैतिकता के ठेकेदारo ki taraf se reply aaya aapki gustaki par "NO COMMENTS" hehehehe ny ways jai maharashtra

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