Saturday, June 28, 2008

नौकरी- एक कविता


मैं फिर से मां की आंखों का तारा हो गया हूं,
बहनों का दुलारा हो गया हूं,
झिड़कियां थमती नहीं थी जिनकी,
नौकरी मिली,

तो उन सबका प्यारा हो गया हूं।

10 comments:

  1. kabhi kisi ne kaha hai aapse ki aap bahut achha likhte hai.....

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  2. bhut khub.jari rhe.

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  3. dr saa'b kisi ne yahi baat abhi tak nahi kahi hai

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  4. लजवाब...मंजीत..

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  5. माँ की आँखों के तारे तो आप हर हाल में रहोगे.

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  6. भईया पुराने दिन याद दिला दिये आपने… अच्छा किया/नहीं किया।
    शुभम।

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  7. ekaangi dristkon.bhartiy savytaa me
    maata -bahne paiso se nahee apne beto &bhaion se pyaar kartee hai.jaisa maine dekha hai.dhanybad

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  8. भई वाह ! आपने तो गागर मे सागर भर दिए है । सचमुच आज का माहौल ही कुछ ऎसा है कि यदि आप कमा रहे है तो सभी लोग , फिर वह माता या बहने हो ।
    शशि सिन्घल
    www.meraashiyana.blogspot.com

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