Saturday, March 14, 2009

कविताएँ

मैं रहूं या ना रहूं,

मेरा पता रह जाएगा,

शाख पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा,

मैं भी दरिया हूं मगर सागर मेरी मंज़िल नहीं,

मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा?

2 comments:

  1. आपकी कविताओं में आसमान सी उचाई तथा झील सी गहराई है।
    अखिलेश शुक्ल
    http://katha-chakra.blogspot.com

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  2. मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा?
    bhut acchi line

    gargi feelings4ever.blogspot.com

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