सात साल हो गए। सात साल कुछ यूं निकल गए। बिना कहीं छपे, बिना किसी भुगतान के...सात साल लगातार लिखना, पेंडुलम की तरह बिना कहीं पहुंचे लगातार चलते रहने जैसा है।
29 सितंबर का ही दिन था, जब मैंने अपना ब्लॉग गुस्ताख़ शुरू किया था।
गुस्ताख़ की शुरूआत गुस्से में हुई थी। बात उऩ दिनों की है जब मेरे पास कंप्यूटर नहीं हुआ करता था। मेरे दोस्त के पास था। साल 2007 के मार्च महीने की बात। दोस्त ने कहा, दोनों मिलकर ब्लॉग शुरू करते हैं। दोस्त के पास इंटरनेट की सुविधा भी थी। तो हमदोनों ने भगजोगनी नाम का ब्लॉग शुरू किया।
लिखना शुरू हो गया। लिखना चलता रहा। तभी एक दिन दोस्त ने कहा कि चूंकि ब्लॉग उसके मेल आईडी से चलता है, इसलिए एडिटोरियल राईट उसी के पास रहेंगे। और वह मेरे लेख एडिट किया करेगा।
यह मालिकाना किस्म का व्यवहार पसंद नहीं आया मुझे।
उसी दिन साइबर कैफे जाकर, अपना ब्लॉग बना डाला। नाम मेरे करीबी दोस्त ऋषि रंजन काला ने सुझाया, अनुमोदन किया सुशांत झा ने। (सुशांत भी उन दिनों अपने एक दोस्त के ब्लॉग पर लिखा करते थे, बाद में उन्होंने भी अपना ब्लॉग आम्रपाली बनाया, जो काफी पढ़ा जाता है)
तो सर, यों हमारे ब्लॉग लेखन की शुरूआत हुई, 29 सितंबर को। वह दिन है, और आज का, ब्लॉग लेखन ने लिखना ही सिखा दिया।
आज कुछ लोग गुस्ताख पढ़ते हैं। कई अखबार अपने ब्लॉग वाले कॉलम में मेरा लिखा छापते हैं, दुख इतना ही होता है कि बताते नहीं, सूचना नहीं देता। भुगतान तो खैर हिन्दी अखबार क्यों करेंगे, आदत में ही शुमार नहीं। उनका सोचना है कि किसी का लिखा छाप देंते हैं तो उपकार है उस बंदे पर...।
मेरे केस में ऐसा नहीं है अखबार वाले मेरे मित्रों। मैं सिर्फ अपने लिए लिखता हूं, या फिर पैसे के लिए। लिखना मेरा शौक भी है, और रोज़ी भी।
सात साल...। लंबा अरसा है ना। गुस्ताख ब्लॉग को जन्मदिन की हार्दिक बधाई, इसके पढ़नेवालों को भी और लेखक यानी ब्लॉगर को तो खैर बधाई है ही।
29 सितंबर का ही दिन था, जब मैंने अपना ब्लॉग गुस्ताख़ शुरू किया था।
गुस्ताख़ की शुरूआत गुस्से में हुई थी। बात उऩ दिनों की है जब मेरे पास कंप्यूटर नहीं हुआ करता था। मेरे दोस्त के पास था। साल 2007 के मार्च महीने की बात। दोस्त ने कहा, दोनों मिलकर ब्लॉग शुरू करते हैं। दोस्त के पास इंटरनेट की सुविधा भी थी। तो हमदोनों ने भगजोगनी नाम का ब्लॉग शुरू किया।
लिखना शुरू हो गया। लिखना चलता रहा। तभी एक दिन दोस्त ने कहा कि चूंकि ब्लॉग उसके मेल आईडी से चलता है, इसलिए एडिटोरियल राईट उसी के पास रहेंगे। और वह मेरे लेख एडिट किया करेगा।
यह मालिकाना किस्म का व्यवहार पसंद नहीं आया मुझे।
उसी दिन साइबर कैफे जाकर, अपना ब्लॉग बना डाला। नाम मेरे करीबी दोस्त ऋषि रंजन काला ने सुझाया, अनुमोदन किया सुशांत झा ने। (सुशांत भी उन दिनों अपने एक दोस्त के ब्लॉग पर लिखा करते थे, बाद में उन्होंने भी अपना ब्लॉग आम्रपाली बनाया, जो काफी पढ़ा जाता है)
तो सर, यों हमारे ब्लॉग लेखन की शुरूआत हुई, 29 सितंबर को। वह दिन है, और आज का, ब्लॉग लेखन ने लिखना ही सिखा दिया।
आज कुछ लोग गुस्ताख पढ़ते हैं। कई अखबार अपने ब्लॉग वाले कॉलम में मेरा लिखा छापते हैं, दुख इतना ही होता है कि बताते नहीं, सूचना नहीं देता। भुगतान तो खैर हिन्दी अखबार क्यों करेंगे, आदत में ही शुमार नहीं। उनका सोचना है कि किसी का लिखा छाप देंते हैं तो उपकार है उस बंदे पर...।
मेरे केस में ऐसा नहीं है अखबार वाले मेरे मित्रों। मैं सिर्फ अपने लिए लिखता हूं, या फिर पैसे के लिए। लिखना मेरा शौक भी है, और रोज़ी भी।
सात साल...। लंबा अरसा है ना। गुस्ताख ब्लॉग को जन्मदिन की हार्दिक बधाई, इसके पढ़नेवालों को भी और लेखक यानी ब्लॉगर को तो खैर बधाई है ही।
मैंने बहुत सारी पोस्टें बांची हैं गुस्ताख की।
ReplyDeleteअच्छा लगा है हमेशा पढना। गुस्ताख के सात साल पूरा होने की बधाई!
जन्मदिन की ढेरो बधाइयाँ "नन्हे ब्लॉग"(गुस्ताख़). नाम छोटा है लेकिन गागर में सागर समाये हुए है.
ReplyDelete.
सकारात्मक गुस्सा अक्सर एक नायक खड़ा करता है .
गजब की लेखन शैली है. बहुत बधाई आप दोनों को.
Gutakhi bhi khubsurati se ki he.Manjit ji.
ReplyDelete