ससुरा इहौ साल बीत गया। हम मान कर चल रहे हैं कि बीत गया। सब निगोड़े रोते रहे। वही महंगाई, वहीं मुद्रास्फीति, वही 32 लाख रूपये का गुसलखाना...सॉरी मूत्रालय...वही मैंगो पीपल, जो 32 रुपये में शहर में रह लें, 26 रूपये में गांव में बसर कर लें।
समस्या कहां है?
समस्या तब आती है जब देवी महात्म्य का पाठ करने वाले देश में फोटो को फेवीकोल से चिपकाय लिया जाता है। जब सप्तशती का पाठ करने वाले देश में छह लोग एक छात्रा के साथ रेप करते हैं।
समस्या अब भी नहीं है। आम आदमी अब एक क्लीवलिंग न होकर (संस्कृत वाला क्लीव लिंग जिसे अंग्रेजी में न्यूट्रल जेंडर कहते हैं) एक पार्टी बन गई है। ये नहीं पता कि इस संगठन में कितने मैंगो पीपल हैं।
यह साल हमेशा याद रहेगा। इस साल के बारे में एक ज्योतिषी ने मुझसे कहा कि तुम विश्वप्रसिद्ध हो जाओगे। हम नहीं भए। हां, उस ज्योतिषी को हमने बहुत ठोंका।
इस साल भी हम उसी तरह गरीब रहे, जितने 2010 में थे। इस साल भी हम पर कर्ज उतना ही रहा, जितना पिछले साल के आखिर में था। इस साल भी हमारे सपनों की मेढ़ उतनी ही कच्ची रही, जितनी पिछले बरस रही थी।
इस साल सपने देखने की आदत छुड़ा दी, तो सपनों के बीज भी रोप दिए।
यह साल भी ऐसा ही रहा। उसी तरह बेसिरपैर की फिल्में, उसी तरह रोज रोज की नौकरी, उसी तरह मॉनसून कमजोर होना, उसी तरह मंदी, उसी तरह ओबामा, उसी तरह ईरान, इराक़, मिस्र (सुना था मिस्र में तहरीर चौक पर कुछ हुआ...अब हंसी आती है उस पर। हमारे यहां एक बात कही जाती है, फॉर ऐनी रिवॉल्यूशन यू नीड टू हैव अ रिवॉल्यूशनरी आईडियोलजी एंड अ रिवॉल्यूशनरी पार्टी, किसी भी क्रांति के लिए एक क्रांतिकारी पार्टी और क्रांतिकारी विचारधारा की जरूरत होती है)
ये दोनों रामलीला मैदान के कारपोरेट आंदोलन और दिल्ली गैंप रेप में नदारद रहे।
सरकार से बलात्कारियों को तुरंत फांसी पर लटकाने की बेसिर-पैर की मांगे की गईँ। पहली मांग सुषमा स्वराज ने की, जो खुद वकील रह चुकी हैं। उन्हें भी पता होगा कि धारा 376-जी में अधिकतम सज़ा उम्र क़ैद हो सकती है।
खैर...। अगले मंगलवार को, जब नए साल का आग़ाज़ होगा तो यक़ीन मानिए कुछ नहीं बदलेगा। चौराहे पर वही कड़े दिखने वाले घूसखोर पुलिस अधिकारी मिलेंगे, अस्पताल में वही चिड़चिड़े से डॉक्टर मिलेंगे, दफ्तर में वही राजनीति पर उतारू मुंह पर मीठा बोलने वाले सुगरकोटेड लोग मिलेंगे, वही बॉस मिलेगा, जिसको हमेशा आपकी क्षमता पर संदेह होगा....सब्जी भाजी वाले उसी तरह हर रोज आलू प्याज दाम बढ़ाकर बेचते नजर आएंगे।
संसद में अगले साल भी सांसदो का वेतन वृद्धि वाला विधेयक सर्वसम्मति से पारित होगा। अगले साल भी मुलायम पिछड़ो और मुसलमानों को गोलबंद करते दिखेंगे, मायावती दलित कार्ड खेलेंगी, अगले साल मोदी अपने किले की नींव मजबूत करते दिखेंगे, ताकि उसी किले के बुर्ज से 15 अगस्त 2014 को राष्ट््र को संबोधित कर सकें।
नक्सल समस्या जस की तस बनी रहेगी, पाक से हम क्रिकेट खेल लें, दोस्ती दुश्मनी की सरहद बनी रहेगी, हमारे पीएम भी ओबामा की फोटो देखकर ही मुस्कुराएंगे, वरना साल भर उनकी मुस्कुराहट भी ईद का चांद बनी रहेगी....
दंतेवाड़ा, सांरडा में फिर कुछ पुलिस कर्मी शहीद होंगे, फिर उन्हें कुछ सम्मान दिया जाएगा। यानी अगले दिसंबर की इन्हीं आखिरी तारीखों में यही-यही सब लिखना होगा, जो हम इस साल लिख चुके हैं। हां, कुछ आंकड़ों में फेरबदल हो सकता है, कुछ तारीखों में बदलाव होगा।
लेकिन हम बदलेगे नहीं, क्या आपको लगता है कि गैंप रेप से जुड़े मसलों पर फांसी दे देने से भी बाकी के छुपे अपराधियों की मानसिकता बदल जाएगी? जनाब, हम लोग बदलने वाली क़ौम नहीं हैं।
हम कष्ट सहते रहेंगे, बिना हैंड पंप के रह लेगें, हमारे गांव में भले ही चलने को सड़क न हो...लेकिन हम वोट तो अपनी ही जाति में देंगे।
साल 2012 और 2013 में कुछ खास अंतर नहीं होगा, सिवाय अंकों के...और हां, मैं सुनो मृगांका के कुछ और सिसकते पन्ने इस बेव की वर्चुअल दुनिया में डाल चुका होऊंगा।
समस्या कहां है?
समस्या तब आती है जब देवी महात्म्य का पाठ करने वाले देश में फोटो को फेवीकोल से चिपकाय लिया जाता है। जब सप्तशती का पाठ करने वाले देश में छह लोग एक छात्रा के साथ रेप करते हैं।
समस्या अब भी नहीं है। आम आदमी अब एक क्लीवलिंग न होकर (संस्कृत वाला क्लीव लिंग जिसे अंग्रेजी में न्यूट्रल जेंडर कहते हैं) एक पार्टी बन गई है। ये नहीं पता कि इस संगठन में कितने मैंगो पीपल हैं।
यह साल हमेशा याद रहेगा। इस साल के बारे में एक ज्योतिषी ने मुझसे कहा कि तुम विश्वप्रसिद्ध हो जाओगे। हम नहीं भए। हां, उस ज्योतिषी को हमने बहुत ठोंका।
इस साल भी हम उसी तरह गरीब रहे, जितने 2010 में थे। इस साल भी हम पर कर्ज उतना ही रहा, जितना पिछले साल के आखिर में था। इस साल भी हमारे सपनों की मेढ़ उतनी ही कच्ची रही, जितनी पिछले बरस रही थी।
इस साल सपने देखने की आदत छुड़ा दी, तो सपनों के बीज भी रोप दिए।
यह साल भी ऐसा ही रहा। उसी तरह बेसिरपैर की फिल्में, उसी तरह रोज रोज की नौकरी, उसी तरह मॉनसून कमजोर होना, उसी तरह मंदी, उसी तरह ओबामा, उसी तरह ईरान, इराक़, मिस्र (सुना था मिस्र में तहरीर चौक पर कुछ हुआ...अब हंसी आती है उस पर। हमारे यहां एक बात कही जाती है, फॉर ऐनी रिवॉल्यूशन यू नीड टू हैव अ रिवॉल्यूशनरी आईडियोलजी एंड अ रिवॉल्यूशनरी पार्टी, किसी भी क्रांति के लिए एक क्रांतिकारी पार्टी और क्रांतिकारी विचारधारा की जरूरत होती है)
ये दोनों रामलीला मैदान के कारपोरेट आंदोलन और दिल्ली गैंप रेप में नदारद रहे।
सरकार से बलात्कारियों को तुरंत फांसी पर लटकाने की बेसिर-पैर की मांगे की गईँ। पहली मांग सुषमा स्वराज ने की, जो खुद वकील रह चुकी हैं। उन्हें भी पता होगा कि धारा 376-जी में अधिकतम सज़ा उम्र क़ैद हो सकती है।
खैर...। अगले मंगलवार को, जब नए साल का आग़ाज़ होगा तो यक़ीन मानिए कुछ नहीं बदलेगा। चौराहे पर वही कड़े दिखने वाले घूसखोर पुलिस अधिकारी मिलेंगे, अस्पताल में वही चिड़चिड़े से डॉक्टर मिलेंगे, दफ्तर में वही राजनीति पर उतारू मुंह पर मीठा बोलने वाले सुगरकोटेड लोग मिलेंगे, वही बॉस मिलेगा, जिसको हमेशा आपकी क्षमता पर संदेह होगा....सब्जी भाजी वाले उसी तरह हर रोज आलू प्याज दाम बढ़ाकर बेचते नजर आएंगे।
संसद में अगले साल भी सांसदो का वेतन वृद्धि वाला विधेयक सर्वसम्मति से पारित होगा। अगले साल भी मुलायम पिछड़ो और मुसलमानों को गोलबंद करते दिखेंगे, मायावती दलित कार्ड खेलेंगी, अगले साल मोदी अपने किले की नींव मजबूत करते दिखेंगे, ताकि उसी किले के बुर्ज से 15 अगस्त 2014 को राष्ट््र को संबोधित कर सकें।
नक्सल समस्या जस की तस बनी रहेगी, पाक से हम क्रिकेट खेल लें, दोस्ती दुश्मनी की सरहद बनी रहेगी, हमारे पीएम भी ओबामा की फोटो देखकर ही मुस्कुराएंगे, वरना साल भर उनकी मुस्कुराहट भी ईद का चांद बनी रहेगी....
दंतेवाड़ा, सांरडा में फिर कुछ पुलिस कर्मी शहीद होंगे, फिर उन्हें कुछ सम्मान दिया जाएगा। यानी अगले दिसंबर की इन्हीं आखिरी तारीखों में यही-यही सब लिखना होगा, जो हम इस साल लिख चुके हैं। हां, कुछ आंकड़ों में फेरबदल हो सकता है, कुछ तारीखों में बदलाव होगा।
लेकिन हम बदलेगे नहीं, क्या आपको लगता है कि गैंप रेप से जुड़े मसलों पर फांसी दे देने से भी बाकी के छुपे अपराधियों की मानसिकता बदल जाएगी? जनाब, हम लोग बदलने वाली क़ौम नहीं हैं।
हम कष्ट सहते रहेंगे, बिना हैंड पंप के रह लेगें, हमारे गांव में भले ही चलने को सड़क न हो...लेकिन हम वोट तो अपनी ही जाति में देंगे।
साल 2012 और 2013 में कुछ खास अंतर नहीं होगा, सिवाय अंकों के...और हां, मैं सुनो मृगांका के कुछ और सिसकते पन्ने इस बेव की वर्चुअल दुनिया में डाल चुका होऊंगा।