Friday, November 14, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामः जीते हुए मुस्लिम उम्मीदवार, पार्टी, सीट और उनका मार्जिन

मुस्लिम उम्मीदवार विजेता

1. जोकीहाट- AIMIM – मोहम्मद मुर्शिद आलम- मार्जिन- 28803

2. बहादुरगंज- AIMIM- मोहम्मद तौसीफ आलम- मार्जिन- 28726

3. कोचादामन- AIMIM- मो. सरवर आलम- मार्जिन- 23021

4. अमौर- AIMIM- अख्तरूल ईमान- मार्जिन- 38928

5. बैसी- AIMIM- गुलाम सरवर- मार्जिन- 27251

6. किशनगंज- कांग्रेस- मो. कमरूल होदा- मार्जिन- 12794

7. बिस्फी- राजद- आसिफ अहमद- मार्जिन- 8107

8. रघुनाथपुर- राजद- ओसामा साहब- मार्जिन- 9248

9. ढाका- राजद- फैजल रहमान- मार्जिन- 178

10. अररिया- कांग्रेस- अबीदुर रहमान- मार्जिन- 12741

11. चैनपुर- जेडीयू- मो. ज़मां खान- मार्जिन 8362




दूसरे स्थान पर रहे मुस्लिम उम्मीदवार

1. अमौर – सबा जफर- जद-यू

2. बहादुरगंज- मो. मुसव्वर आलम – कांग्रेस

3. बरारी- मो. तौकीर आलम- कांग्रेस

4. बेतिया- वशी अहमद- कांग्रेस

5. बिहार शरीफ- ओमैर खान- कांग्रेस

6. गौरा बौराम- अफजल अली खान- राजद

7. जमुई- मोहम्मद शमसाद आलम- राजद

8. जोकीहाट- मंजर आलम- जद-यू

9. कदवा- शकील अहमद खान- कांग्रेस

10. कसबा- मोहम्मद इरफान आलम- कांग्रेस

11. केओटी- फराज फातमी- राजद

12. कोचादामन- मोजाहिद आलम- राजद

13. नरकटिया- शमीम अहमद- राजद

14. नाथनगर- शेख जियाउल हसन- राजद

15. प्राणपुर- इशरत परवीन- राजद

16. रफीगंज- गुलाम शाहिद- राजद

17. समस्तीपुर- अख्तरूल इस्लाम शाहीन- राजद

18. सिकटा- खुर्शीद फिरोज अहमद- निर्दलीय

19. सिमरी बख्तियारपुर- युसुफ सलाउद्दीन- राजद

20. सुरसंड- सैय्यद अबू दोजाना- राजद

21. ठाकुरगंज- गुलाम हसनैन- AIMIM


बिहार विधानसभा चुनावः एनडीए की प्रचंड जीत में नीतीश के पीछे क्यों खड़ी है महिला शक्ति?

मंजीत ठाकुर

बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार में जनता ने गरदा उड़ा दिया. बिहार में गरदा उड़ाने का मतलब चुनावी है प्रचंड बहुमत हासिल करना. 2020 के विधानसभा चुनावों में जहां जनता दल युनाइटेड को 43 सीटें और 15.39 फीसद वोट शेयर हासिल हुआ था, वहीं 2025 के चुनावों में नीतीश कुमार भले ही भाजपा से कम सीटें हासिल कर पाएं हों पर उनके वोट शेयर में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है.

2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक जनता दल युनाइटेड को इस खबर के लिखे जाने तक 78 सीटें और 7 पर बढ़त यानी कुल 85 सीटें (यह अंतिम आंकड़े आने पर बदल सकते हैं) और 19.27 फीसद वोट मिले हैं. यानी सीधे-सीधे सीटों की संख्या दोगुनी और वोट शेयर में करीबन 4 फीसद का इजाफा!
14 नवंबर को मतगणना के बाद एनडीए-मय हुआ बिहार

बेशक, भाजपा ने पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन में सुधार किया है और तब के 74 सीटों के मुकाबले 2025 में 87 सीटों पर जीत चुकी है और 2 पर आगे है (यानी कुल 89). पर उसके वोट शेयर में मामूली बढ़त है.

2020 में भाजपा ने 19.46 फीसद वोट हासिल किए थे और 2025 में 20.07 यानी उसके वोट शेयर में आधे फीसद का इजाफा ही हुआ है.





अब जानकार कह रहे हैं कि महागठबंधन ने अपने लिए जिस एमवाई समीकरण पर भरोसा किया था उस पर नीतीश कुमार का एम (महिला) और वाई (यूथ) का समीकरण अधिक भारी पड़ा.

बेशक, नीतीश कुमार महिलाओं में खासे लोकप्रिय हैं और उन्होंने सभी जाति और धर्मों की महिलाओं में अपना खास वोटर तबका तैयार किया है.


बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पार्टीवार वोट शेयर

 
आखिर बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अब भी महिला मतदाताओं के बीच सबसे भरोसेमंद नेता क्यों हैं?

बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प सामाजिक बदलाव पिछले दो दशकों में उभरा है, महिलाएँ अब सिर्फ़ वोटर नहीं, बल्कि चुनावी नतीजों को मोड़ने वाली निर्णायक शक्ति बन चुकी हैं।

बिहार की राजनीतिक समझ रखने वाले लोग जानते हैं कि राज्य की चुनावी दिशा अब सिर्फ़ जातीय समीकरणों पर नहीं चलती। पिछले 20 साल में एक नया समीकरण उभरा है- लैंगिक समीकरण। और उसमें नीतीश कुमार ने एक स्थायी जगह बनाई है।

लेकिन सवाल यह है कि आख़िर क्यों बिहार की महिला मतदाता, बार-बार और बड़े पैमाने पर, नीतीश कुमार को प्राथमिकता देती हैं?

इसका उत्तर सिर्फ़ किसी एक योजना में नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक ढांचे में किए गए उन बदलावों में छिपा है, जिन्हें उन्होंने 2005 के बाद से लगातार आगे बढ़ाया।

आइए, नीतीश कुमार के इस वोट बैंक के “महिला समर्थन मॉडल” की परतें समझने की कोशिश करते हैं.


तालीम का रास्ता बदलने वाली ‘साइकिल’

आज की तारीख में बिहार के किसी भी सुदूर देहाती इलाके में चले जाइए, वहां की सड़कों पर एक चीज सामान्य रूप से दिखेगी. लड़कियां. साइकल चलाती स्कूली यूनिफॉर्म में सजी-धजी लड़कियां.

2005 से पहले यह अनुभव विरला ही था. अगर गांवों में स्कूल घर से दूर हुए तो लड़कियों का स्कूल से नाम कटा दिया जाता था. लेकिन बिहार में एक सरकारी योजना ने लड़कियों की शिक्षा का रास्ता बदल दिया और बिलाशक वह योजना नीतीश कुमार की थी. नीतीश ने बिहार में छात्राओं को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत स्कूल जाने के लिए साइकिलें देनी शुरू की थी.

स्रोतः बिहार सेकेंडरी एजुकेशन डिपार्टमेंट

नीतीश कुमार साल 2005 के अक्तूबर-नवंबर के चुनाव में जीत के बाद सत्ता में आए थे और साल 2006 में नीतीश ने यह नया प्रयोग शुरू किया था. बिहार सरकार ने नवीं कक्षा में दाख़िल लड़की छात्राओं को साइकिल या साइकिल खरीदने के लिए नकद देने की नीति शुरू की तो मकसद साफ था: स्कूल तक का समय और दूरी घटाकर लड़कियों की स्कूली शिक्षा में दाखिले की दर और उनकी पढ़ाई बीच में न छूटे इसके दर को बेहतर करना.

यह न केवल एक योजना भर नहीं थी, यह कल्याणकारी हस्तक्षेप था, बल्कि इसे एक व्यावहारिक हस्तक्षेप कहना होगा जिसकी वजह से ‘स्कूल घर के करीब’ आ गया.


  साल 2006 में इस योजना के तहत लड़कियों के साइकिल खरीदने के लिए नकद 2000 रुपए दिए जाते थे. लेकिन बाद में, जब डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर का चलन बढ़ा तो पैसे सीधे छात्राओं के खाते में जमा किए जाने लगे.

इस पहल को बाद में कई अर्थशास्त्रियों और विकास-विश्लेषकों ने अध्ययन का विषय बनाया. इस योजना को देश के कई अन्य राज्यों ने अपनाया. इसके असर पर दुनियाभर में अध्ययन हुए. अध्ययनों ने बताया कि साइकिल बांटने की यह योजना कन्या शिक्षा को बढ़ावा देने में कारगर रही है और न सिर्फ स्कूली शिक्षा में लड़कियों के दाखिले की दर बढ़ी है बल्कि ड्रॉप आउट दर भी कम हुई है.

  
बिहार की इस मुख्यमंत्री साइकिल योजना के मॉडल को जाम्बिया समेत सात अफ्रीकी देशों ने अपनाया और संयुक्त राष्ट्र ने इसे स्कूली दाखिले को बढ़ावा देने और महिला सशक्तिकरण का शानदार तरीका बताया.

हालांकि, शुरू में यह योजना सिर्फ लड़कियों के लिए थी, लेकिन बाद में लड़कों को भी साइकिल योजना में शामिल किया गया और योजना का विस्तार हुआ.

बिहार सेंकेंडरी एजुकेशन डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2024 के बीच कुल 97,94,445 (यानी लगभग 97.9 लाख) छात्राओं को मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना के अंतर्गत साइकिल प्रदान किया जा चुका है.  



असल में बिहार में शिक्षा और साक्षरता का स्तर राष्ट्रीय औसत से काफी कम थे. ऐसे में, 2005 में सुशासन के नाम पर सत्ता में आई नीतीश कुमार की सरकार ने शिक्षा में सुधार लाने के लिए कुछ योजनाएं शुरू कीं. इनमें से एक था, हर पंचायत में एक हाई स्कूल खोलना और उन हाई स्कूलों तक पहुंचने के लिए बच्चों को साइकिल देना ताकि स्कूल और घर की दूरी घट सके.

बिलाशक, राज्य सरकार की इन कोशिशो ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया.

एनुएल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) के साल 2006 से 2014 के बीच के आंकड़े इस बात को साबित करते हैं कि स्कूली शिक्षा में दाखिले के स्तर पर बिहार ने ऊंची छलांग लगाई थी.

2006 में यह दर 72.2 फीसद थी, जो 2011 में 90.1 फीसद हो गई. 2006 में बिहार उन सात राज्यों में शुमार था जहां 11 से 14 साल की लड़कियों में दस से अधिक प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं. 2006 में बिहार में 17.6 फीसद लड़कियों का दाखिला स्कूल में नहीं हुआ था लेकिन 2014 में यह घटकर 5.7 फीसद और 2024 में घटकर 2.5 फीसद रह गया है.

बात इतनी ही नहीं रही, बीच में 2012-13 में पहली बार स्कूली दाखिले के मामले में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक हो गई थी.

एक अन्य आंकड़ा काफी सुखद रूप से चौंकाने वाला भी है. 2005 की दसवीं की परीक्षा में जहां छात्राओं की संख्या केवल 25,413 थी वहीं, 2025 की मैट्रिक-परीक्षा के पहले दिन की रिपोर्ट के अनुसार उस दिन उपस्थित कुल छात्रों में 8,18,122 लड़कियाँ थीं.
 
बिहार की साइकिल योजना का अनुकरण 7 अफ्रीकी देशों में किया जा रहा है
और संयुक्त राष्ट्र ने भी इसकी तारीफ की है

शिक्षा का नकद-नारायण

नीतीश कुमार की लोकप्रियता सिर्फ साइकिल बांटने वाली योजना तक सीमित नहीं है. मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना जन्म से लेकर स्नातक होने तक क्रमिक किस्तों में लड़कियों को सहायता देती है; जिसकी राशि 94,100 रुपए है। ग्रेजुएट पास करने वाली लड़कियों के लिए स्नातक-प्रोत्साहन की अलग कैटेगरी भी है।

मुख्यमंत्री स्नातक प्रोत्साहन योजना के तहत ग्रेजुएट होने वाली लड़कियों को 50 हजार रुपए का नकद प्रोत्साहन दिया जाता है, जबकि बारहवी पास करने वाली लड़कियों के लिए अलग कैटेगरी में 10 हजार रुपए की प्रोत्साहन दिया जाता है.

बिहार में लड़की की पढ़ाई अक्सर आर्थिक कारणों से छूट जाती थी, कॉपी-किताब से लेकर कॉलेज फीस तक हर पड़ाव पर मुश्किलें थीं। इस स्थिति को बदलने के लिए सरकार ने एक पूरा पैकेज तैयार किया. यह उस राज्य में बड़ा बदलाव था जहाँ माता-पिता अक्सर कहते थे, “लड़की है, ज़्यादा पढ़ाई का क्या फायदा?”

बहरहाल, अब जब डिग्री मिलने पर बैंक खाते में सीधा 50 हजार नकद आता है, तो परिवार का नज़रिया भी बदलता है। इसका राजनीतिक असर यह हुआ कि लाखों युवा महिलाएँ और उनके परिवार नीतीश कुमार को ‘लड़कियों का भविष्य सुरक्षित करने वाले नेता’ के रूप में देखने लगे।


आधी आबादी को सत्ता की चाबी

2006 में नीतीश कुमार ने पंचायतों में महिलाओं को 50 फीस आरक्षण दिया। यह कदम भारतीय राजनीति में पहली बार देखा गया था। इसका प्रभाव सिर्फ़ चुनावी नहीं था, इसने गाँवों की राजनीति को घरों तक पहुँचा दिया।

नीतीश कुमार के इस नीतिगत फैसले से हज़ारों महिलाएँ मुखिया, वार्ड सदस्य, जिला परिषद सदस्य बनीं। घर-गृहस्थी संभालने वाली महिलाएँ अब सार्वजनिक मुद्दों पर बोलने लगीं. स्थानीय सत्ता में महिलाओं की निर्णायक भूमिका बनी.

नतीजतन, ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने नीतीश कुमार को सिर्फ़ मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक अस्तित्व का निर्माता माना। उनका यह समर्थन आज भी कायम है।

महिला वोटरों के बीच नीतीश कुमार की इमेज अलग शराबबंदी की वजह से भी बनी है. सूबे की लाखों महिलाओं के घरों में शराबबंदी की वजह से शांति आई है. इसके अलावा, हर घर नल का जल, हर घर शौचालय, बिजली-कनेक्शन और गृह निर्माण सहायता जैसी योजनाओं ने नीतीश कुमार के लिए अपनी जाति-बिरादरी के बाहर महिलाओं का एक ऐसा वोटबैंक तैयार करने में मदद की, जो वोट देते समय जाति और धर्म नहीं देखती (या कम से कम नीतीश कुमार का यही दावा है)

नीतीश कुमार के साल 2000 में सात दिन और फिर 2005 के बाद से बिहार के हर चुनाव और हर सरकार में प्रासंगिक बने रहने के पीछे इसी नारीशक्ति का कमाल है.



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