Tuesday, August 19, 2008

मुसलमानों को घर क्यों नहीं मिलता?

ये सवाल पिछले दिनों शबाना आज़मी ने उठाया. कि हिंदुस्तान में मुसलमानों को घर नसीब नहीं। फिर एक बैठक के दौरान माननीय सईद नकवी ने भी बयान दिया है कि उन्हें इस सेकुलर हिंदुस्तान में कमारा किराए पर नहीं मिला क्योंकि वह मुसलमान थे और गोश्त खाते थे।

क्या सचमुच यह स्थिति है कि मुसलमानो को घर नहीं मिलता? क्या देश के सोलह करोड़ मुसमान बिना घरबार के सड़कों पर रह रहे हैं। पहले नकवी साहब की बात, उनका कहना ता कि दिल्ली के हिंदुओं ने उन्हे रहने के लिए किराए पर मकान नहीं दिया. उनकी बात का समर्थन किया कुलदीप नैयर ने। ये बात तीसेक साल पहले की है, जब इंदिरा जी जिंदा थी और कथित रुप से भारत सेकुलर भी था। उस वक्त कुलदीप नैयर साहब ने स्टेट्समैन के नाम पर किराए पर घर लिया, और उसे नकवी को दिया। ( अब ये तो नैयर साहब ने उस मकान मालिक के साथ धोखा किया)

नकवी साहब गोश्त खाना नहीं छोड़ सकते.. तो क्या उस मकान मालिक को इतनी छूट नहीं कि वह गोश्त नही खाता तो गोश्त खाने वाले को घर न दे।

यह भी तो हो सकता है कि उसने गोश्त खाने वाले हिंदुओं को भी मकान नहीं दिया हो। इसकी क्रास चेकिंग की गई? बहरहाल अब बात शबाना की। आपने हाल ही में कहा कि मुसलमानों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अख्तियार किया जा रहा है। कहां? क्या हज यात्रियों को सब्सिडी मिलनी बंद हो गई है? क्या हिंदुओं को कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए कोई छूट दी जा रही है? अल्पसंख्यक होने का फायदा उठाना और बात है?

दरअसल मुसलमानों का आम मानस अब भी मासूम है, और उसाक फायादा सियासतदां उठा रहे हैं। उन्होंने ही फिजां बना दी है कि सिर्फ मुसलमान होने के नाते उनको परेशान किया जा रहा है। क्या इस बात का कोई रेकॉर्ड है कि कितने लोग बेवजह व्यवस्था द्वारा परेशान किए गए? उनकी कोई गिनती है धर्म के आधार पर। गिनती की जाए तो उनमें भी हिंदु ओ की गिनती ही ज्यादा होगी। इस मुद्दे पर खोल में सिमटने की बजाय खुलेमन से देखने की ज़रूरत है। वरना क्या वजह है कि अज़हरुद्दीन क्रिकेट टीम के कप्तान बनते हैं तो ठीक, मैच फिक्सिंग में फंसे तो कहा कि अल्पसंख्यक होने की वजह से उन्हे फंसाया जा रहा है। ऐसा ही सलमान खान ने कहा था। चिंकारा मामले में।

एक और बात, रोज़े-नमाज़ से दूर रहने वाले ये सेलेब्रिटी जेल जाते वक्त तुरत सर पर टोपी पहने लेते हैं। ताकि संदेश ये जाए कि वह मुसलमान है और उन्हे परेशान किया जा रहा है। कल को दाउद इब्राहिम भी कहेगा कि वह मुसलमान है इसलिए भारत में उसे परेशान किया जा रहा है।
इधर जैसे ही हाई कोर्ट ने सिमी परसे पाबंदी बटाने की बात की, मुलायम कह उठे- देक्खा, मैंने तो पहले ही कहा था कि उन्हें परेशान किया जा रहा है। बहरहाल, संतोष की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्टे दे दिया और सिमी पर प्रतिबध कायम है। बाद में अहमदाबाद और जयपुर धमाको में उनके रिश्तों की खबरें भी सामने आईं, इनमं सिमी के लोग शामिल बताए जा रहे हैं। अब तुरत-फुरत बयानबाज़ी करने वाले नेताओं के बारे में क्या कहा जाए। मेरे खयाल में तो पहला प्रतिबंध इन नताओँ पर ही लगा दिया जाए।

इस तरह की सोच को बदला जाना ज़रूरी है। खासकर तुष्टिकरण देश का सबसे ज्यादा नुकसान कर रहा है।

16 comments:

बालकिशन said...

ठीक कहा आपने. मैं सहमत हूँ आपसे.
ये सब वोट की गन्दी राजनीति का नतीजा है. और ऐसे में कुछ लोग समझतें हैं की वो जो भी कहेंगे वो सब सच मान लिया जायेगा और बिना रीढ़ की हड्डी वाले ये नेता उनके आगे दुमछल्ले बने फिरते रहेंगे.
अभी लालू जी ने सिमी को लेकर जो कुछ कहा और किया वो जग जाहिर है. ये एक बहुत बड़ी विडम्बना और इस देश का दुर्भाग्य है.

संजय बेंगाणी said...

यह तो जुगल बन्दी सी हो गई, आज हमने भी इसी पर लिखा था. :)


सही है...आरोप चेप देना आसान होता है.

Ashok Pandey said...

''दरअसल मुसलमानों का आम मानस अब भी मासूम है, और उसाक फायादा सियासतदां उठा रहे हैं।''

यही सच है। खरी-खरी बात लिखी है आपने। गंदगी तो सेकुलर का लेबल लगाकर चलनेवालों के दिमाग में है। ये अपनी गंदगी दूसरों में भी बांट रहे हैं।

आपको एक बात बताता हूं। गांवों में धार्मिक अनुष्‍ठानों में पुरोहित व नाई की महत्‍वपूर्ण भूमिका रहती है। हमारे गांव का नाई परिवार मुसलमान है लेकिन कभी किसी हिन्‍दू परिवार ने यह नहीं सोचा कि उन मुसलमानों के छूने से उसके गोबर गणेश, कलश, पल्‍लव व अन्‍य धार्मिक प्रतीक अपवित्र हो गए। उधर उस मुसलमान नाई परिवार के लोग भी इतनी सदाशयता दिखाते हैं कि वे कहते हैं कि वेलोग गोश्‍त नहीं खाते। कितना सौहार्दपूर्ण संबंध है! लेकिन यदि कोई नाराबाज सेकुलर बीच में आ जाए तो इस रिश्‍ते के तार-तार होने में देर नहीं लगेगी।

श्रीकांत पाराशर said...

Bilkul sahi likha hai aapne.aisi shakhsiyaton ko to pakshpat nahi karna chahiye jinki ijjat sab karte hain. shabanaji aur javed akhtar jaise logon ke muh se aise vichar kai baar sune jate hain to lagta hai unme aur netaon men koi jyada antar nahi hai.simi ka samarthan karne wale to insaan kahlane layak bhi nahin hain.

मुनीश ( munish ) said...

i stand by ashok bhai.Shabana is a pseudo-secular , but naqvi has done a lot to create communal harmony . his integrity can't b doubted.similarly, shabana's husband is also a balanced man . i have never heard shabana condemning terror in kashmir but javed is a different man.

राज भाटिय़ा said...

गुस्ताख जी हम १९६० मे आगरा मे आये थे, तो हमे मकान किराये पर नही मिल रहा था, हम तो हिन्दु थे, यह आम बाते हे, अब हम सब के दोस्तो मे मुस्लिम भी तो हे, क्या हम उन से भेद भाव करते हे? यह सब बकबास हे,यह सब सब वोट की गन्दी राजनीति का ओर कुछ नही .सही ओर सायाना मुस्लिम इन सब चालो को समझता हे.
धन्यवाद

PRAVIN said...

aap ne theek kaha,gost na khaane wale hindu,apane bete ka bhi gost wala bartan alag kar dete hain.ya unke ghar par banane par rok laga dete hain,ye baat dharm se jaada vyaktik ruchi ki baat hai.

ye neta hi hai jinake dwara is tarah ke betuke tark diye jaate hain isme inaka hit hota hai.inse bachna chahie.

aur ye makan malik ka adhikar hai ki wah kamara kise de aur kise na de.jo sawal in chhadm secularon ne hindu manas par uthaaya hai.we bataaye ki kya kisi hindu ko kisi muslamaan ke yaha kamara milegaa...yah uski roochi par hi nirbhar karegaa.

Smart Indian said...

अरे, मौकापरस्तों का क्या मज़हब और क्या धर्म?

Arun Arora said...

बिलकुल सही कहा आपने आज अंधरुती राय कशंइर को आजाद कर देने की आवाज लगा रही है कल आसफ़ा बेगम मुहल्ले पर साथ सालो से ,मुस्लिमो के भेदभाव पर रवीश और अविनाश के साथ पीपनी बजा रही थी.मै अगर बिना टोपी पहने गुरुद्वारे या मस्जिद , मजार पर जाऊ तो क्या वो मुझे जाने देगे ? अगर मै जाना चाहता हू तो मुझे उन के धर्म को सम्मा न देना ही होगा, ठीक इसी तरह मै अगर किसी प्याज लहसुन ना खाने वाले परिवार के मकान मे किराये पर रहू तो मुझे इन चीजो से परहेज करना ही होगा. मै जबरद्स्ती उस आदमी को लहसुन की गंध सूघने पर विवश नही कर सकता. मुझे जैतून के तेल की गंध नही सुहाती , मै उसे सूघने के बाद कई दिन तक परेशान रहता हू अगर मेरा किरायेदार जैतून के तेल को नही छोड सकता उसे कही और रहने जाना ही होगा , मै तो अपना घर उसके लिये छोड कर कही और जाने से रहा लेकिन मेरे मुस्लिम और पढे लिखे सैकुलर लो शायद ये चाहते है कि मेरे कोई अधिकार ना हो तो यह मुशकिल है

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ कल मैंने एक सिरफिरे का ब्लॉग पढ़ा ओर दुःख हुआ कोई ऐसा कैसे लिख सकता है ?शबाना का इंटरव्यू मैंने देखा ओर हैरान हुआ ?पटौदी साहेब ने भी हैरान किया ......ये तो कोई नेता नही है ?जिन्हें अपने वोटो का डर हो ...जब आप एक शख्सियत हो जाते है तो जैसे शोहरत आपको मिलती है समाज के प्रति आपकी जिम्मेदारी ख़ुद -बखुद आ जाती है बल्कि एक आम नागरिक से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी बनती है .

Shambhu Choudhary said...
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Shambhu Choudhary said...

भाई साहब!
इस देश में जो भी व्यक्ति धर्मनिरपेक्षता का चोला पहन लेगा, उसे वे सभी बातें कहने का हक है जो शबाना जी ने कही है। कश्मीर में जब कश्मीरी पंडितों का घर उजाड़ा गया ,तो शबाना जी चुपी क्यों लगा जाती है। देश के मुसलमान का दोहरा आचरण हमें एक जगह नहीं कई जगह देखने को मिलता है। और हम सिर्फ और सिर्फ उनको दोषी ठहराने लगते हैं जो मुसलमानों के खिलाफ जरा सी भी बात बोलता है। क्या एक धर्म दूसरे धर्म की गलतियों की सिर्फ तरफदारी करे यही धर्मनिरपेक्षता है? देश ने आजादी के बाद अल्पसंख्यक शब्द का जन्म दे कर पहले से ही इस देश के मुसलमानों को अलग कर दिया। अब शबाना जी यदि चाहती हैं कि इस देश के मुसलमान भी भारती बने तो उनको सबसे पहले इन दो शब्दों का विरोध शुरू करना चाहिये 1. अल्पसंख्यक 2. धर्मनिरपेक्षता। ये दो शब्द हर हिन्दुस्तानियों के ज़ेहन में दर्द पैदा कर रहा है, जो इन दो संप्रदायों को मिलने के रास्ते के बीच दीवार बन के खड़ी है। यदि इस दीवार को गिरा सकती हैं तो बात करें, पहल करें। अन्यथा, विदेश में जाकर बस मन का भड़ास ही निकालेंगी और कर भी क्या सकती है। जब तक हमारे चरित्र धर्मनिपेक्षता की वकालत करता रहेगा, तबतक ये इसी भाषा में बोलते रहेंगें। ये देश के धर्मनिरपेक्ष लोग जो ठहरे।

Anonymous said...

dhnyabad....bahot sachhi hai apki post me...

मै क्या जानू said...

well said.... I stand by what gustakh has written

sushant jha said...

अरे गुस्ताख भाई...आप तो भगवावादी वाम की तरह लिखने लगे हैं।बहरहाल लेख अच्छा था, बधाई स्वीकार करें।

Anonymous said...

Today is virtuous indisposed, isn't it?