Sunday, November 23, 2008

फिल्म समारोह में बिमल रॉय की याद

बिमल राय दो बीघा जमीन, बंदिनी और सुजाता जैसी कालजयी फिल्मों के निर्देशक बिमल राय हिंदी सिनेमा में रोमांटिक यथार्थवाद के जनक थे। यूरोपीय नवयथार्थवादी फ़िल्मों से प्रेरित बिमल राय की फ़िल्मों की छाप है.


12 जुलाई 1909 को ढाका में जन्मे बिमल दा की फिल्मों में एंट्री बतौर कैमरामैन हुई। वह कैमरामैन के तौर पर न्यू थिएटर्स प्राइवेट लिमिटेड में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने 1935 में प्रदर्शित हुई पीसी बरुआ की फिल्म देवदास और 1937 में प्रदर्शित मुक्ति के लिए फोटोग्राफी की।

लेकिन बिमलदा ने बहुत अधिक समय तक कैमरामैन के तौर पर काम नहीं किया और 1944 में उन्होंने उदयेर पौथे नाम की बांग्ला फिल्म का निर्देशन किया। बतौर निर्देशक यह उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म का हिंदी रीमेक बाद में हमराही नाम से 1945 में प्रदर्शित हुआ।

न्यू थिएटर के पतन के बाद बिमल दा मुंबई आ गए और यहां उन्होंने 1952 में बांबे टाकीज के लिए मां [1952] का निर्देशन किया। लेकिन बिमल दा को असली कामयाबी दो बीघा जमीन से मिली। इटली के नव-यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित बिमल दा की दो बीघा जमीन एक ऐसे गरीब किसान की कहानी है जो शहर चला आता है। शहर आकर वह रिक्शा खींचकर रुपया कमाता है ताकि वह रेहन पड़ी जमीन को छुड़ा सके। गरीब किसान और रिक्शा चालक की भूमिका में बलराज साहनी ने जान डाल दी है।
व्यावसायिक तौर पर दो बीघा जमीन भले ही कुछ खास सफल नहीं रही लेकिन इस फिल्म ने बिमल दा की अंतरराष्ट्रीय पहचान स्थापित कर दी। इस फिल्म के लिए उन्होंने कान और कार्लोवी वैरी फिल्म समारोह में पुरस्कार जीता।

बांग्ला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर फिल्में बनाने के मामले में बिमल दा सबसे आगे रहे। उन्होंने परिणीता के समेत बिराज बहू और देवदास जैसे उपन्यासों पर भी फिल्में बनाईँ। देवदास ने तो अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को रातोंरात ट्रेजेडी किंग बना दिया।

इसके बाद बिमल राय ने 1958 में पुनर्जन्म पर आधारित मधुमति तथा यहूदी फिल्म का निर्देशन किया। दोनों ही फिल्में जबर्दस्त हिट रहीं। संगीतकार सलिल चौधरी ने मधुमति के लिए ऐसी धुन रचीं कि उसके गाने आज भी लोगों की जुबां पर हैं।

बिमल दा की सर्वाधिक यादगार फिल्मों में बंदिनी का नाम लिया जा सकता है। यह फिल्म हत्या के आरोप में जेल में बंद एक महिला की कहानी है। इस फिल्म में अभिनेत्री नूतन ने शानदार भूमिका अदा की है। इस फिल्म के एक गीत मेरा गोरा रंग लई से आज के मशहूर गीतकार और फिल्मकार गुलज़ार के फिल्मी जीवन की शुरुआत मानी जाती है। बिमल दा की खासियत ही देखिए कि गीतकार शैलेंद्र से उन्होंने यभाई बहन पर बंदिनी में ए क ऐसा गीत डलवाया जिसके बोल आज भी दिल को छू जाते हैं।

यह गीत शुभा खोटे पर फ़िल्‍माया गया था। इस गाने का अंतरा कितना भावुक है देखिए- (('बैरन जवानी ने छीने खिलौने, और मेरी गुड़िया चुराई।.....।' ))

बिमल दा का सफर इसके बाद तो और भी ज़ोर पकड़ता गया, छूआछूत की समस्या पर आधारित सुजाता में एक बार फिर उन्होंने नूतन को अभिनेत्री के तौर पर लिया।
बिमल राय ने 1960 में साधना को लेकर परख नाम की फिल्म बनाई, इसके अलावा 1962 में प्रेम पत्र नाम की फिल्म का निर्देशन किया।

बिमल दा ने सात बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्म फेयर पुरस्कार जीता। उन्हें यह पुरस्कार 1954 में दो बीघा जमीन, 1955 में परिणीता, 1956 में बिराज बहू, 1959 में मधुमति, 1960 में सुजाता, 1961 में परख तथा 1964 में बंदिनी के लिए यह पुरस्कार मिला। 1940 और 1950 के दशक में समानांतर सिनेमा के प्रणेता रहे बिमल दा के प्रोडक्शन की आखिरी फिल्म रही बेनजीर [1964]। इसका निर्देशन एस खलील ने किया था। लंबी बीमारी के बाद आखिरकार सात जनवरी 1966 को बिमल दा का निधन हो गया और इस तरह हिंदी सिनेमा को नई ऊंचाई देने वाले एक रत्न को फिल्म जगत ने खो दिया।

No comments: