Thursday, November 27, 2008

ओरु पेन्नम रंदानम यानी अ क्लाइमेट फॉर क्राइंम

ओरु पेन्नम रंदानम यानी अ क्लाइमेट फॉर क्राइंम अडूर गोपाल कृष्णन की एक बेहतरीन फिल्म है। ११५ मिनट की इस फिल्म की कहानी दूसरे विश्वयुद्ध के आसपास बुनी गई है। लडाई में उलझे ब्रिटेन की मुश्किलों की छाया भारत पर भी पड़ने लगती है, और खाने पीने से लेकर रोज़मर्रा की चीज़ो की कमी होने लगती है।

इन्ही हालातों में बेरोज़गारी बढ़ जाती है, वंचित कमजोर तबके के पास इन बुनियादी चीजो और जिंदगी बचाने के लिए अपराध की ओर मुड़ना ही एक आखिरी रास्ता बचा रहता है। कुलीन और शालीन कहा जाने वाले तबके के पास भी कुलीनता छोड़ने के सिवा कोई और चारा नहीं होता।
पिछले साल फिल्म समारोह में दिखाई गई अडूर की ही फिल्म नालू पेन्नूगल में भी चार अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि की महिलाओं की चार कहानियां थीं, इस फिल्म मे भी एक साथ चार कहानियां चलती है।
पहली कहानी एक चोर की है जिसमें उसका बेटा अपनी मां से उसके बुरे रास्ते को छुड़वाने का वायदा करता है लेकिन दो साल के बाद वह देखता है कि उसाक पिता ग़रीबी की वजह से ही अपनी पुरानी आदत पर वापस आ गया है।
दूसीर कहानी एक पुलिस वाले की है , जो अपना अपराध एक गरीब रिक्शेवाले पर डाल देता है। रिक्शेवाले पर चोरी का आरोप लगता है लेकिन ्गर वह अपने लिए वकील करता है तो उसकी सारी जिंदगी की कमाई उसी में खत्म हो जाएगी, और अगर वह अपराध कुबूल करता है तो उसे दस दिनों के लिए जेल तो जाना ही होगा।
तीसरी कहानी एक छात्र और उसके घर में काम करने वाली लड़की के प्रेम की कहानी है। सामाजिक बंधनों और अपनी चिंताओं से लड़ने की यह कशमकश बेहतरीन हिस्सा है फिल्म का।
चौथी कहानी में एक खूबसूरत महिला की कहानी है, जिससे हर कोई शादी करना चाहता है लेकिन उसकी कहानी में प्रेम त्रिकोण बन जाता है।
पूरी फिल्म में कैमरा शानदार तरीके से वही दिखाता है, जिसकी कहानी को ज़रूरत होती है। ज्यादा मूवमेंट किए बिना कैमरे में यथार्थवादी तरीके से किस्सागोई की गई है। अडूर का समांतर सिनेमा सोकॉल्ड बड़े फिल्मकारों की सोच से मीलों आगे है। और जो लोग अच्छी फिल्मों के दर्शकों के टोटे का रोना रोते हैं, उनके लिए तो अडूर एक सबक हैं।

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