Saturday, August 15, 2009

ये देश है तुम्हारा खा जाओ इसको तल के


पहले देश को, देशवासियों को, ब्लॉग जगत के लिक्खाडों को ज़श्ने-आजादी की मुबारकवाद, मुबारकबाद उन्हें जो आम हैं, खास नहीं। और ऐसे ही रहे ईमानदार वगैरह तो जिंदगी भर आम ही रहेगे। लेकिन असली अभिनंदन, उन भ्रष्टाचारियों का जो देश को बपौती का माल समझकर दीमक का अनुसरण किया करते हैं।


हे बेईमानी के मील के पत्थरों, आजादी की इस सालगिरह पर उन तमाम लोगों के दिलों पर गिरह लग गई होगी, जिन्होंने पता नहीं क्या सोचकर खून-पसीना वगैरह बहाकर, अंग्रेजो की गोलियां वगैरह खाई। तुम लोगों के गुरदे, जिगर दिल बेचो, शर्म और हया के साथ ईमान बेचो...स्वाईन फ्लू से बचाने वाले मास्क से लेकर दवा तक कालाबाजार के हवाले कर दो, खरीदने वालों की होगी औकात तो खरीदेंगे वरना न तो देश में लकडियों की कमी है ना कब्र के लिए ज़मीन की।

ट्रेन में बिना टिकट चलने वाले हे महासपूतों, टिकट लेकर चलना न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि धिक्कार है तुम्हारी मर्दानगी पर..। एक अदने से टिकट चेकर की यह औकात कि तुम जैसे वीर को टिकट लेने पर मजबूर करो। देश की हर रेल पर तुम्हारा अधिकार है। हर गाड़ी तुम्हारे ही पूज्य पिता की है, जब चाहों आंदोलन के नाम पर इसे फूंक दो।


और, हे उन पिताओं का सच्चे सपूतों, सुबह उठकर अपने मलमूत्र वगैरह सड़क के किनारे ही सादर समर्पित करो। इससे बरसात के इस मौसम में क्या ही मनोरम छटा पैदा होती है.. हरी-हरी घास पर पीला-पीला गू... मानो हरी चादर पर सुनहरे बेलबूटे...।


दाल, चावल आटा, गन्ना, चीनी, पेट्रोल. जो इच्छा हो जिस चीज़ की इच्छा हो, ब्लैक में बेचो। काला धन, धन के नस्लवाद को कम करता है, धन के रंग भेद के खिलाफ फतवा है।


हे आम आदमी, तुम चक्की में पिसने वाले घुन हो, तुम बलियूप की प्रतीक्षा में खड़े पाठा अर्थात् मेमने हो, तुम दड़बे में दुबक कर अपनी मौत का इंतजार कर रहे मुर्गी के नपुंसक संतान अर्थात् चिकन हो.. लेकिन यह भरोसा रखो कि तुम्हारे नेता भी तुम्हारी तरह हैं। ....ये बात और है कि कुछ लोग उन चिकनों को हेडलैस चिकन कह जाते हैं......उनका भरोसा करो.. वह भरोसा तो दिला ही रहे हैं और मंहगाई बढेगी, दाल-चीनी मंहगी होगी. मौत के दिन नजदीक आंगे..पानी कम बरसेगा...माटी और गरम होगी।


हे आम आदमी अगर तुम रैकेट नहीं चला सकते, ध्रुव के निकट नहीं जा सकते.. तो आम तो नहीं ही रहोगे अमरुद और शरीफे भी नहीं बन पाओगे।

अतः हे कापुरुषों अगर भ्रष्टाचार के अतिचार के संवाहक अर्थात् वैक्टर बनकर इस परंपरा के अंग नहीं बन सकते तो अपने अंग भंग के लिए तैयार रहो।
अतएव आजादी के इस पावन दिवस पर गुस्ताख की सीख मानो और िस गीत को गुनगुनाओ


'घोटालों की डगर पर बच्चों दिखाओ चल के...

ये देश है तुम्हारा खा जाओ इसको तल के। '

आमीन।

6 comments:

डा. अमर कुमार said...


चलता है.. गुस्ताख़ बाबू सब चलता है ।

डा. अमर कुमार said...


हमख़्याल पोस्ट

M VERMA said...

तीक्ष्ण स्वर -- सही है

वाणी गीत said...

हर सच्चे हिन्दुस्तानी के दिल की यही आवाज़ है ..भीतर सुलगते ख्यालों को आवाज़ देने के लिए बहुत आभार.
स्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें..!!

Anonymous said...

aap ko to isme koi aascharya nahi hona chahiye sir yehi to indistan hai na

shanti deep verma

mohit said...

har baar ham gubaar khaatey hai aur har baar dhaak ke teen paat...

ye wahi hindustani hai jo videsh jakar kooda bhi apni jeb me rakh leta hai,, aur apney desh me kahi bhi khada hokey moot deta hai,,, shayad apney desh se itna lagaav he iska karan hai.. sab chalta hai.. ham nahi sudhrengey,,, chahey azaadi ke 100 saal bhi kyu na ho jaye... maansikta nahi badal payegi..

fir bhi shaan se kehta hu...

mera desh mahan..