Wednesday, September 7, 2011

ये सोना, वो सोना

सोकर उठा तो सुना कि सोना 28 हजार रुपये तोला हो गया। पहले तो डर लगा, सोना इतना मंहगा !  जबकि सोना मेरा शगल है। जैसे ही मौका मिलता है, सो लेता हूं। मेरे सोने के कई रुप हैं...पॉवर नैप, झपकी, तंद्रा, उबासियां, नींद..गहरी नींद।...और मेरे नींद का एक अपररुप ऐसा भी है जिसमें मै प्रायः मरा हुआ मान लिया जाता हूं।

लेकिन इन सबका सोने से क्या लेना देना..। है लेना देना है। ऐसी ही एक सुबह जब मैं सोकर जगा तो मेरे मां के गले में पड़ा रहने वाला सोने का हार गायब हो चुका था। फिर एक-एक कर सारे गहने गायब हो गए। सोना फिर हमने अपने घर में कभी नहीं देखा। उस पीले सोने के साथ रात को चैन से सोना भी जाता रहा।

लेकिन मां लौह-महिला थीं। हम तीन भाईयों को पढा-लिखा दिया। दीदी की शादी भी हो गई, बड़े को नौकरी हुई..। फिर, हम सोने लगे। मैं गरमी की दुपहरों में अपने यायावर स्वभाव के अनुकूल ही इमली के पेड़ के नीचे भटकते रहने को अभिशप्त था, मां को कुछ चैन का सोना नसीब हुआ। (सोने की चेन अब भी नहीं मिली थी)
सर्वेगुणाःकांचनमाश्रियन्ति, सोने में हैं सारे गुण

फिर मुझे चस्का लगा सिनेमा देखने का। घर में हम लोग बेहद सस्ता वाला बिस्किट ही खाते थे। और हमारे घर में शाम की चाय के साथ बिस्किट कुतरने का चलन शुरु नहीं हुआ था। बिस्किट हम बस बीमार होने पर ही खाते थे। मैं प्रायः बीमार रहा करता था, बिस्किट भी मेरे ही हिस्से में ज्यादा आते थे। धीरे-धीरे मुझे बिस्किट से नफरत होने लगी। अपनी बीमारियों के दौरान मैं बेहद लंबी नींद लिया करता था। मेरे भाई को कई बार लगता था कि मैं मर गया हूं। सोने का वह मृत्यतुल्य आनंद आज खोजे से भी नहीं मिलता।

लेकिन, अचानक एक दिन मुझे ज्ञात हुआ कि बिस्किट महज मैदे या आटे के ही नहीं हुआ करते। बिस्किट अब सोने के भी होते थे। जिनके कंसाइऩमेंट को किसी जूहू या बोरीबंदर से अमिताभ तस्कर बन कर दूसरे तस्करों से छीन लाया करते, या खुद पुलिसवाले होते फिर भी तस्करों से छीन ही लाते।
हमने सीखा बिस्किट सोने के भी होते हैं

सोने के इन बिस्किटों से नायक विजय अर्थात् अमिताभ ने अपनी मां के लिए कई इमारतें खरीद दीं, या अपनी भाभी के लिए सुख-सुविधाओं और देवरानी का इंतजाम कर लिया। उस दिन हमने जाना कि बिस्किटें महज नफरतों के लायक नहीं होतीं। चैने से सोने के लिए सोने का होना बहुत जरुरी है।

फिर, जीवन की आपाधापी में सोने के लिए रात के सोने की कुरबानियां देनी पड़ी। पेशा ऐसा अपना लिया कि 10 जनपथ के सामने फुटपाथ पर रात गुजारनी पड़ जाती है। वहां भी सोना नहीं, गोल्ड फ्लेक की पूरी डिब्बी फूंक कर।
साठ-सत्तर के दशक में सोने की तस्करी को नए आयाम दिए


मेरी पसंदीदा सिगरेट का हिंदी तर्जुमा भी स्वर्ण फलक (गोल्ड फ्लेक) ही है। इसमें भी सोना..सोना बहुत अहम है। जीवन का दर्शन सोना है। संस्कृत वांगमय कहता भी है-सर्वेगुणाः कांचनमाश्रियान्ति, सभी गुण सोने में ही हैं।

हां, सभी गुण सोने में ही हैं। कल रात जब सोनिया गांधी महामाई के इंतजार में हम रात भर 10 जनपथ के सामने पहरा देते रहे...महामाई आवें..हम उनकी एक झलक को कैमरे में कैद करें...देशवासियों को उनकी वही झलक दिखलावें, देशवासी दिन भर कृत-कृत्य होते रहें।

क्या गजब, सोनिया के नाम में भी सोना है, सोनी के नाम में भी। बहरहाल, रात भर जागने के बाद जब झपकियां आने लगीं, तब पता चला सोने का सही अर्थ।

हमारे बिजनेस रिपोर्टरों ने एक दिन शिलाजीत के महत्व की तरह सोने का महत्व समझाया। कहा, कच्चे तेल की कीमत गिरती है, तो सोने की कीमत बढ़ती है। काला सोना बनाम पीला सोना। यहां भी सोना।
टीवी के एक क्राइम शो का एंक चीख-चीख कर चैन से सोने के लिए जाग जाने का आह्वान किया करता है।

यह तो टीवी का ही महात्म्य है कि सोने की आसमान की तरफ उछलती कीमतों से घरवाली कभी भी गहनों की मांग नहीं करती। वरना मेरी नींद पर डाका डलता।

मेरी नजर में तो तकिए पर सिर रखकर सोना एक बेहद कीमती एहसास है, वरना हमने तो वेंटिंग रुम में बिना तकिए के कई रातें गुजारी हैं। सोने के दौरान आप करवट बदल सकते हैं, खर्राटे मार सकते हैं, सपने में जिसे चाहे उसे बुला सकते हैं। कालकवलित हो चुकी डायना से लेकर किसी डायन तक को, मधुबाला से लेकर कैटरीना कैफ तक। आप कई क्विंटल सोना खर्च कर दें, मधुबाला से तो नहीं मिल सकते..लेकिन तकिए पर सोना सब मुमकिन कर देता है।....तो बताइए कौन ज्यादा बेहतर है, 28 हजार रुपये तोला या नरम गद्दे पर तकिए पर सिर टिका कर, खर्राटायुक्त सोना..।


बहरहाल, रात गहराती जा रही है मेरे लिए 28 हजार रुपये तोला से

3 comments:

Rahul Singh said...

सोना कितना सोना है या कनक कनक ते सौ गुनी, जैसी टिप्‍पणी से तुक मिल जाए लेकिन पोस्‍ट के सुर से संगत नहीं बैठेगी.
सोना-सोना, सोना उठना-गिरना. ऋण सोना, धन सोना, धन्‍य सोना.
आपका सोना सलामत रहे.

Vartika said...

बहुत ही रोचक लेख, बल्कि पूरा का पूरा ब्लॉग ही। ताजगी है इसमें और बांधने की भरपूर क्षमता भी। पत्रकार, कार्टूनिस्ट और कवि - तीनों का जोड़। शानदार।

sushant jha said...

मंजीत, अद्भुत लेख है। मुझे लगता है कि आपको फीचर राईटिंग में जाना चाहिए। साधुवाद।