Saturday, September 17, 2011

क़िस्सा कहानी-दाल बिरयानी उर्फ धर्मात्मा सेठ जी

एक थे सेठ जी। जैसा कि आमतौर पर कहानियों में होता है, सेठ जी बड़े दयालु थे और प्रायः पुण्य इत्यादि करने के वास्ते हरिद्वार वगैरह जाते रहते थे। एक बार वह गंगासागर की यात्रा पर गए। कहते हैं, सब धाम बार-बार, गंगासागर एक बार। 
ये भी मान्यता है कि गंगासागर जैसी पवित्र जगह में अपनी एक बुरी आदत छोड़कर ही आना चाहिए। इस बाबत सेठ जी अपने दोस्त से बातें कर ही रहे थे, और उसे बता रहे थे कि इस बार वह अपने बात-बात में गुस्सा हो जाने की आदत को गंगासागर में ही छोड़ आए हैँ।

सेठ जी का दोस्त बड़ा खुश हुआ, हमेशा की तरह सेठानी भी मन ही मन नाच उठी कि अब तो सेठ जी उसे हर बात पर नहीं डांटेंगे। जैसा कि आमतौर पर होता है, सेठ जी लोगों का एक नौकर होता है और आमतौर पर उसका नाम रामू ही होता है। इन सेठ जी के भी नौकर का नाम भी रामू ही था।

तो, उसी मुंहलगे रामू से सेठ जी ने पीने के लिए पानी मंगवाया। रामू ने सेठ जी के लिए पानी का गिलास रखते हुए सेठजी और उनके दोस्त के बीच में टांग अडाई और पूछा, "सेठ जी आप गंगासागर में क्या छोड़कर आए ?" सेठ जी जवाब दिया- गुस्सा छोड़ आया हूं। रामू पानी रखकर चला गया।
फिर छोड़ी देर बाद जब वह ग्लास उठाने आया तो उसने फिर पूछा, "सेठ जी, आप गंगासागर में क्या छोड़कर आए ?" सेठजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "गुस्सा छोड़ कर आया हूं।"

कुछ देर और बीता रामू फिर सवाल लेकर आ गया- सेठ जी आप गंगासागर में क्या छोड़कर आए ? सेठ जी थोड़े झल्लाए तो सही लेकिन उन्होंने अपने-आपको जब्त करते हुए कहा कि मैं गंगासागर में गुस्सा छोड़कर आया हूं।

फिर रात के खाने का वक्त आया। रामू फिर खुद को रोक न पाया, पूछ ही बैठा- सेठ जी आप गंगासागर में क्या छोड़कर आए ? अब तो सेठ जी का पारा गरम हो गया। जूता उठा कर दौड़े और नौकर को पटक दिया। लातों से उसे दचकते हुए उन्होंने कहा, हरामखोर। तब से कहे जा रहा हूं कि गुस्सा छोड़कर आया हूं तो सुनता नहीं? हर जूते के साथ सेठ जी कहते सुन बे रमुए, गुस्सा छोड़ कर आया हूं, गुस्सा। गुस्सा। गुस्सा।

इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? 
पता नहीं आपको क्या शिक्षा मिली, मुझे तो ये मिली कि नंबर 1- किसी सेठ के यहां नौकरी मत करो।
२- नौकरी करनी ही पड़ जाए तो सेठ के दोस्तों के साथ बातचीत के दौरान मत उलझो, वह नौबत भी आ जाए तो सवाल मत पूछो और नियम पालन करो कि सेठ एज़ आलवेज़ राइट
३- कभी किसी सेठ की बात का भरोसा मत करो, चाहे वह गंगासागर से ही क्यों न आया हो।

2 comments:

shanti deep said...

बेहद उम्दा गुरुदेव. ब्लागियाते रहिये....

Rahul Singh said...

सहमत नहीं हूं, यह जोड़ना चाहूंगा कि हर बात आवश्‍यक नहीं कि मनसा, वाचा, कर्मणा हो.