Thursday, August 15, 2013

जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं...



शिकायत करना हम देशवासियों का शगल है। मैं कोई शिकायत करने नहीं जा रहा। हिलती-डुलती गाड़ी के एसी के दूसरे दर्ज़े में बैठा हूं। उड़ीसा जा रहा हूं। सामने की सीट पर एक बुजुर्गवार बैठे हैं। साथ में उनका घरेलू कामगार है, किसी उड़िया जनजाति का लड़का है। बच्चा ही है। बुजुर्गवार की पत्नी साथ में है

बुजुर्ग दंपत्ति के कपड़ों से लगता है काफी साधारण घरों के हैं। खादी का मोटा कुर्ता, धोती कभी सफेद रही होगी। गले में खादी का मोटा गमछा। रंग ताम्रवर्णी। बाल श्वेत हो चले। भौंहे तक सफ़ेद। बीवी के हाथों में कांच की चूड़ियां। बैंगनी रंग की साधारण सूती साड़ी। दोनों के पांव में हवाई चप्पलें हैं। नौकर के पैरों में जो हवाई चप्पल है उस पर फेसबुक लिखा है।

मैं भी गपोड़ हूं और शायद सामने बैठे बुजुर्गवार भी। हम दोनों के बीच आईटीओ पार करते ही बातचीत शुरू हो गई थी। अभी हम भद्रक पहुंचने वाले हैं पत्नी सारे रास्ते चुप बैठी है। एक गंवई पत्नी की तरह।

कोच अटेंडेंट आता है। मुझसे बात करते वक्त उसके एक वित्तीय आदर है। उस आदर में शाम को मेरे उतरने के वक्त मिलने वाली टिप की उम्मीद का बोझ है। वही अटेंडेंट आकर उनसे ऐसे बात करता है मानो बहुत दिनों से जानता हो। पूछता है, बहुत दिनों बाद आए।

मैं पूछता हूं, आप दिल्ली बार-बार आते हैं क्या। हां। इसके बाद बातचीत महंगाई, नक्सल, जनजातियों की समस्या, वेदांता, कोरापुट, नक्सल, राहुल गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह तक पहुंच जाती है। बुजुर्गवार को महीन जानकारियां हैं।

मेरे बारे में बहुत पूछताछ करते हैं। कहां के हो, कौन है घर में...लेकिन इस पूछताछ में एक बुजुर्गाना लाड़ और आह्लाद है। अब मैं पूछता हूं आप..? तब बताते हैं कि उनका नाम अनादिचरण दास है। पांच बार सांसद रह चुके हैं। आखिरी बार सन् 91 लोकसभा जीते थे। पहली बार 71 में जीते थे। अपने बारे में बस इतना ही बताते हैं।

मैं सादगी देखकर दंग हूं। अब तो हाल यह है कि पहली बार विधायक बनकर लोग खदानें खरीद रहे हैँ। पांच बार सांसद चुना जा चुका शख्स हवाई चप्पल पहन रहा है। एसी के दूसरे दर्जे में सफर कर रहा है। चेहरे पर दबंगई का कोई भाव नहीं है।

मैं सोचता हूं आजादी का जश्न पूरे भारत में मनाया जा रहा होगा। लेकिन, पटवारी से लेकर विभिन्न मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। वह बुझे मन से कहते हैं, किसी ने कहा है राज्यसभा की सीट सौ करोड़ में बिकती है। हामी भरने के सिवा कोई चारा नहीं है मेरे पास।

रात में गूगल किया था मैंने, अनादि चरण दास को खोजा गूगल पर। मिल गए। उड़ीसा के जाजपुर सीट से सन् 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ी, विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल गए, वहीं से दो बार 1989 और 1991 में चुनाव जीता। 1996 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जनता दल की आंचल दास से चार हजार वोटों से हार गए। फिर उम्र के तकाजे के साथ राजनीति छोड़ दी। जाजपुर-कोरापुट इलाके में अनादिचरण दास एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते थे। लेकिन, उनके पास आज दौलत के नाम पर कुछ नहीं।

कहते हैं कि हर महीने वंचितों, गरीबों, जनजातियों के आर्थिक उत्थान के लिए हर महीने योजना आयोग और सोनियां गांधी को चिट्ठी लिखते हैं। पता नहीं पढ़ी भी जाती है या नहीं। पेट्रोल के दाम बढ़ाने के पक्ष में हैं, कहते है इसका पैसा एससी-एसटी बच्चों की शिक्षा के लिए करना चाहिए।

गुरूदत्त की फिल्म प्यासा का एक गीत याद आ रहा है, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं....ईमानदारी को गूगल पर खोजता हूं। इसे खोजने में तो गूगल भी नाकाम है।

8 comments:

rashmi ravija said...

सचमुच ऐसे लोग अब भी होते हैं बुजुर्ग ही सही...विश्वास नहीं होता...आप खुशकिस्मत हैं ,उनके दर्शन का सौभाग्य मिला आपको .

कुमारी सुनीता said...

aapke madhayam se hum logo ko bhi pata chala.

shayad aise hi logo ne duniya k balance kiya hai.

behad khoobsurati se aapne xplain kiya hai.

अनुपमा पाठक said...

यात्रा कितना कुछ दे जाती है न...!
ऐसी सादगी आज भी है, यह जानना अपने आप में कितना सुखद है!

प्रवीण पाण्डेय said...

गर्व तो इस पर हो, न कि जमीनें इकठ्ठा करने वालों पर।

ram said...

ऐसे लोगों की वजह से ही ये चल रहा है.
नहीं तो नेताओं ने इसे कंगाल करने में कोई कसार नहीं छोड़ी है

ram said...

ऐसे लोगों की वजह से ही ये चल रहा है.
नहीं तो नेताओं ने इसे कंगाल करने में कोई कसार नहीं छोड़ी है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



पांच बार सांसद रह चुके अनादिचरण दास जी के साथ गाड़ी के एसी के दूसरे दर्ज़े के डिब्बे में हुई मुलाकात का रोचक चित्रण प्रस्तुत किया है आपने
बंधुवर मंजीत ठाकुर जी !

संतुष्टि इतनी भर है कि हैं अब भी ज़िंदा ईमानदारी और ईमानदार राजनीतिज्ञ !
प्रणाम है ऐसे लोगों को...

आभार आपका पठनीय प्रविष्टि के लिए...
:)

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार

PD said...

मुझे एक किस्सा याद आ गया. पटना में एक रिक्शा वाले ने मुझे पूरा दर्शन शास्त्र और इतिहास पढाया था रिक्शा चलाते-चलाते, बहुत पूछने पर वह बताये की सत्तर के दशक में पटना विश्वविद्यालय से PHd किये हुए हैं इतिहास विषय से. कभी किसी को एक पैसा घूस नहीं देने के एवज में अब यही काम पूरी इमानदारी से कर रहे हैं. शायद सन 2002 की बात है.