Thursday, March 3, 2016

हिन्दी खड़ी बाज़ार मेंः भाग दो

हाल ही मैं मॉस्को गया था। हवाई अड्डे पर स्थानीय टैक्सी वालों ने मुझे नमस्कार किया। जी हां, हिन्दी में नमस्कार बोलकर। 

रूस में राज कपूर के बाद मिथुन चक्रवर्ती की फिल्मों का दौर रहा। आजकल वहां सलमान लोकप्रिय हैं। वहां कई विद्वान हैं जो अपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाते हैं। उनमें से कईयों के साथ बातचीत का मौका मुझे हासिल हुआ। सर्गेई बंगला, हिंदी और संस्कृत के जानकार है। और अपने जीवन के कई बहुमूल्य साल उन्होंने बनारस में बिताए हैं। भारतीय इतिहास पढ़ाने वाली नतालिया ने मुझसे कहा कि जब वह भारत से लौटकर वापस रूस गईं तो उनके छात्रों ने उनसे पहला सवाल यही किया कि क्या वह भारत मे सलमान खान से मिलीं?

मैं इन मिसालों के ज़रिए हिन्दी फिल्मों की महिमा का गुणगान नहीं कर रहा बल्कि आपको बताना चाहता हूं कि बॉलिवुड ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

आजादी के बाद जब टकसाली और रघुवीरी हिन्दी, या फिर जिसे हम एतद् द्वारा वाली हिन्दी कहते हैं का बाज़ार गरम था तब भी सिनेमा ने उसे आसान बनाने की प्रक्रिया को तेजी दी थी। भारतीय जनसंचार संस्थान में हमारे अध्ययन के दिनों में सबसे पहला पाठ जो हमें बताया जाता था वह था आसान हिन्दी लिखने का।

कुछ हिन्दीप्रेमी मित्र उन दिनों भी शिक्षकों से भिड़ जाते थे कि कभी किसी ने आसान अंग्रेजी लिखने के लिए तो नहीं कहा लेकिन हमेशा आसान हिन्दी ही क्यों लिखने पर जोर दिया जाता है? लेकिन यह बात माननी होगी कि हिन्दी को संस्कृतनिष्ठ बनाने पर हम उसके लिए कुछ भला नहीं कर पाएंगे। खासकर दृश्य-श्रव्य माध्यमों में। 

प्रिंट मीडिया में या किताबों की भाषा में शायद हम यह छूट ले पाएं लेकिन सिनेमा या खबरिया चैनलों की भाषा या फिर टीवी में धारावाहिको की भाषा को हम जितना आसान बनाएंगे उतना ही उसका प्रसार होगा। दर्शक तो हर उम्र और हर पृष्ठभूमि का होता है।

शायद यही वजह है कि कलर्स जैसे चैनलों पर आ रहा ऐतिहासिक धारावाहिक चक्रवर्तिन् सम्राट अशोक हो या फिर सिया के राम, या ऐसा ही कोई और पौराणिक धारावाहिक आसान भाषा लिखना बड़ी चुनौती बनी। इसमें आमफहम भाषा का इस्तेमाल तो किया जा रहा है लेकिन वह हिन्दी ही होती है। अभी भी हमारी मानसिकता ऐसी है कि हम शिव के मुंह से उर्दू के लफ्ज सुनना पसंद नहीं करेंगे।
लेकिन सिनेमा ने हिन्दी को जो संजीवनी आजादी के पहले और बाद में दी वह आसान भाषा के जरिए ही दी।
मंजीत ठाकुर

1 comment:

Pratham Dwivedi said...

ये तो सही कहा, हिन्दी जितनी सरल और आसान लिखी जाए उतना ही अच्छा है।