Wednesday, April 29, 2020

स्मृतिशेषः तुम्हारी आंखें याद आएंगी इरफान

इरफान नहीं रहे. विश्वास नहीं हो रहा. इतनी तो बोलती आंखें थीं, चेहरे पर भाव चरित्र के मुताबिक आते थे. और अभिनय की क्या रेंज थी...आपको याद करना होगा दूरदर्शन के नब्बे के दशक के सीरियल चंद्रकांता को. जहां तक मुझे याद आता है, इरफान उस वक्त तक इरफान खान हुआ करते थे और उनके नाम एक अतिरिक्त आर भी नहीं जुड़ा था.

पर एक किरदार का नाम सोमनाथ था शायद. वह एक बालक के तौर पर याद रह गया था.

बाद में, उस ज़माने में जब मैं दूरदर्शन न्यूज़ में काम करता था और सालों भर भागदौड़ किया करता था. डीडी न्यूज़ में मेरी नौकरी के दौरान मुझे सिनेमा बीट दी गई थी और मैंने उसे शिद्दत से निभाने की पूरी कोशिश भी की थी. और 2006 से लेकर 2012 तक मैंने भारत का अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव भी कवर किया था. लगातार. अभिनेता इरफान तकरीबन हर साल मुलाकात हो जाती थी. मैं तब पत्रकारिता का नौसिखिया था.

पर, बाद में मैंने राजनीतिक और सामाजिक रिपोर्टिंग शुरू कर दी, तब मैंने गोवा के फिल्मोत्सव में जाना बंद कर दिया. पर उन दिनों डीडी में रिपोर्टिंग की मुखिया नीता प्रसाद थीं और उन्होंने मुझसे कहा कि आखिरी बार जाकर फिल्मोत्सव कवर कर आऊं.

2012 का साल था.

फिल्मोत्सव के उद्घाटन में मुझे एंकरिंग करनी थी और मेरे साथ को-एंकर जया सिन्हा थीं. करीब 45 मिनट तक रेड कार्पेट से एंकरिंग के बाद हमदोनों को यह कार्यक्रम अंदर टॉस करना था और वहां से कबीर बेदी कार्यक्रम का संचालन करते.

हमने अपना काम कर दिया और अंदर से कबीर बेदी ने अपनी एंकरिंग शुरू कर दिया था और नीला कुरता पहना मैं तब तक थककर चूर हो गया था. गोवा में उन दिनों का काफी ऊमस होती है. नवंबर में. बहरहाल, मैंने देखा, तब्बू और इरफान चले आ रहे हैं. वे दोनों थोड़ा लेट हो गए थे.

हमारे पास आकर इरफान अपने ही अंदाज में बोले, क्या भैया, हो गया चालू?

मैंने कहा, हां दस मिनट हो गए.

सादगीपसंद तब्बू ने इरफान को छेड़ा थाः अब डीडी वाले तुम्हारा इंटरव्यू नहीं लेंगे, तुम देर से आए हो.

मैंने झेंप मिटाते हुए कैमरा ऑन करवाया और पांचेक मिनट का एक छोटा इंटरव्यू कर डाला. तब तक इरफान मूड में आ गए, तब्बू से बोले, आपको अंदर जाना हो जाओ, मैं इधर हूं रहूंगा.

तब्बू अंदर गईं शायद और इरफान ने कला अकेडेमी में (जहां उद्घाटन हुआ था, पंजिम की कला अकादेमी का ग्राउंड है वो) जेटी की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया. जेटी मांडोवी नदी पर बनी हुई है. और निहायत खूबसूरत जगह है.

मैं भी उनके पीछे चल दिया तो इरफान ने मेरी तरफ देखा, अबे इधर आ रहे हो, मैं तो धुआं पीयूंगा...और हवा खाऊंगा.

मैंने खींसे निपोर दीं. उस समय तक शायद इरफान हाथ से बनाई सिगरेट नहीं पीते थे. पर इतने उम्दा कलाकार के साथ खड़ा रहना भी सौभाग्य था. मेरी छोटी गोल्ड फ्लेक देखकर उनने कहा था, ये ब्रांड पीते हो!

मैंने कहा, बस सर, आदत है. पुराने दिनों से.

इरफान का वो मुस्कुराना अब भी याद है. बड़ी-बडी आंखों में एक बहुत अपनापा उतर आया था. वो मुझे जानते नहीं थे. शायद उस घटना के बाद मैं उनसे दोबारा मिलता तो उनको याद भी नहीं रहता. पर उनका सिर्फ इतना कहना, बहुत बढ़िया.. मुझे छू गया था.

उस मुलाकात के बाद मैं इरफान से दोबारा उस तरह नहीं मिला, अब शायद मिल भी नहीं पाऊंगा. पर उनकी सादगी का कायल हो गया.

इरफान भाई इत्ती जल्दी नहीं जाने का था आपको.


***

2 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

एक सशक्त कलाकार की विदाई

nilesh mathur said...

श्रधांजलि।