Tuesday, March 22, 2022

विश्व जल दिवसः 2030 तक बेरोकटोक बढती आबादी होगी 9 अरब, खाने और पीने का संकट होगा गहरा

अप्स्वडन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये देवा भक्त वाजिनः

ऋग्वेद की इस ऋचा में कहा गया है, “हे मनुष्यो! अमृततुल्य तथा गुणकारी जल का सही प्रयोग करने वाले बनो. जल की प्रशंसा और स्तुति के लिए सदैव तैयार रहो.”

दूसरी तरफ, इस्लाम धर्म में जल को ‘जीवन के रहस्य’ की प्रतिष्ठा दी गई है. कुरान में पानी को न सिर्फ ‘पाक’ करार दिया गया है बल्कि इसे अल्लाह की तरफ से मनुष्य के लिये एक नेमत बताया गया है. इस्लाम में पानी की बर्बादी की सख्त मनाही तो है ही; साथ ही मुनाफे के लिए इसके उपयोग को गुनाह करार दिया गया है. मनुष्य, जंतु, पक्षी और पेड़- पौधों के लिए पीने योग्य पानी के संरक्षण को इबादत का ही एक रूप कहा गया है और मान्यता है कि इससे अल्लाह खुश होते हैं.


आने वाले सालों में पानी का संकट बढ़ता जाएगा (फोटो सौजन्यः आवाज द वॉयस)

भला पानी के बारे में कौन नहीं जानता कि पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए इस बेहद सामान्य तरल की बहुत जरूरत होती है. जो हर जगह उपलब्ध है, और जहां उपलब्ध है लोग इसका बेजा इस्तेमाल करते हैं और जहां यह नहीं है वहीं के लोग इसकी अहमियत जानते हैं.

पानी जिंदगी के हर पहलू का संपर्क-सूत्र है. लेकिन आज की तारीख में दुनिया का हर दसवां इंसान स्वच्छ पेयजल से महरूम है. आंकड़ों के लिहाज से यह करीबन 77.1 करोड़ लोग होते हैं. 

बेशक, धरती पर इस्तेमाल लायक इतना पानी तो है ही कि मानवीय आवश्यकताएं पूरी की जा सकें. इस्तेमाल के लायक से अर्थ मीठे पानी से है, जिसे पिया जा सके और जिससे सिंचाई कर फसलें उगाई जा सके. पर, हम इस अनमोल तरल पानी से बहुत बेअदबी से पेश आ रहे हैं.

पानी के लिए संघर्ष गरीबों और अमीरों की खाई को चौड़ा करेगा (फोटोः सोशल मीडिया)

इधर, दुनिया की आबादी 7 अरब कब का पार कर गई. क्या हम वाकई ज़रूरत से ज्यादा हो गए हैं? खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट अनुसार, भुखमरी की शिकार दुनिया की आधी से अधिक एशिया में रहती है. एशिया में 41.8 करोड़ लोग भुखमरी से ग्रस्त हैं, जबकि अफ्रीका में 28.2 करोड़ लोग ऐसे हालात में गुजर-बसर कर रहे हैं. अफ्रीका में 21 प्रतिशत आबादी भुखमरी की शिकार है.”

भुखमरी के इस संकट से निबटने के लिए दुनियाभर के अधिकतक राष्ट्र अधिक अन्न उपजाने पर जोर देंगे. पर यह स्थिति चिंताजनक इसलिए है क्योंकि हमारी आबादी काफी तेजी से बढ़ रही है.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट, वर्ल्ड पॉप्युलेशन प्रॉस्पैक्ट्स के मुताबिक, दुनिया की आबादी ने 7 अरब का आंकड़ा अक्टूबर 2011 में पार किया था. इसी रिपोर्ट में कहा गया हैः “दुनिया की आबादी अगले 30 साल में दो अरब बढ़ जाएगी और मौजूदा 7.7 अरब से बढ़कर 2050 में यह 9.7 अरब हो जाएगी और अंदेशा है कि 2100 में यह करीबन 11 अरब हो जाएगी.”


अभी पानी के कुल खर्च का 70 फीसद खेती में लगता है.

संयुक्त राष्ट्र की ही यूएनईपी के इंटरनेशनल रिसोर्स पैनल (आइआरपी) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘मौजूदा जल उपभोग और प्रदूषण को अगर कम नहीं किया गया तो 2030 तक दुनिया की करीबन आधी आबादी गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होगी और करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा होगा.’

यह रिपोर्ट बताती है कि जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ती जाएगी, शहरीकरण भी बढ़ता जाएगा और उसके साथ जलवायु परिवर्तन भी. इसके साथ ही लोगों की खाने की आदतों में भी बदलाव आएगा और इन सबके मिले-जुले प्रभाव से भविष्य में पानी का मांग में जबरदस्त इजाफा होगा.

मौजूदा चलन के हिसाब से देखा जाए 2030 तक जल की मांग में करीबन 40 फीसद की वृद्धि होगी और धारा के विरुद्ध (अपस्ट्रीम) जलापूर्ति के लिए सरकारों को करीबन 200 अरब डॉलर सालाना खर्च करना होगा. इसकी वजह यह होगी कि मांग जलापूर्ति के सस्ते साधनों से पूरी नहीं हो पाएगी. वैसे, बता दें अभी दुनिया भर में कुल मिलाकर औसतन 40 से 45 अरब डॉलर का खर्च जलापूर्ति पर आता है.

इसी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेश एशिम स्टीनर कहते हैं, “टिकाऊ विकास के लिए स्वच्छ जल का विश्वसनीय स्रोत होना बेहद जरूरी है. जब स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होगा, तो दुनिया की गरीब आबादी को अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा इसे खरीदने में खर्च करना होगा, या फिर उनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा इसको ढोने में खर्च हो जाएगा. इससे विकास बाधित होगा. ”

लेकिन स्टीनर की एक बात गौर करने वाली है. वह कहते हैं, “पूरी दुनिया में ताजे पानी के एक फीसद का भी आधा हिस्सा ही मानवता और पारितंत्र (इकोसिस्टम्स) की जरूरतों के लिए उपलब्ध है.” जाहिर है, हमें कम मात्रा में इसका इस्तेमाल बेहतर तरीके से करना सीखना होगा. मिसाल के तौर पर, दुनिया भर में ताजे पानी का खर्च का 70 फीसद हिस्सा कृषि सेक्टर में इस्तेमाल में लाया जाता है. दुनिया भर में आबादी बढ़ने के साथ ही, कृषि क्षेत्र भी जल संसाधनों पर दबाव बढ़ाने लगेगा.


जलवायु परिवर्तन का असर खाद्य असुरक्षा और जल संकट में बदलेगा


आबादी के बेतहाशा बढ़ते जाने से कृषि सेक्टर पर अधिक अन्न उपजाने का दबाव और पशुपालन क्षेत्र पर अधिकाधिक मांस उत्पादन का दबाव होगा.

कृषि क्षेत्र में रोजाना करीबन 2.37 करोड़ टन खाद्यान्न उपजाया जाता है और इससे 2.5 अरब लोगों को रोजगार मिलता है और गरीबों और ग्रामीण आबादी के लिए यह आय और रोजगार का सबसे बड़ा साधन है. विकासशील देशों में, कृषि जीडीपी का करीबन 29 फीसद और रोजगार का 65 फीसद हिस्सा वहन करता है.

साल 2030 तक, धरती पर 1.5 अरब खाने वालों की अतिरिक्त संख्या बढ़ जाएगी, जिनमें से 90 फीसद लोग विकासशील देशों में रह रहे होंगे. विश्व की आबादी 2050 तक बढ़कर 9 अरब हो जाएगी और उनका पेट भरने के लिए दुनिया को अपनी कृषि की उपज को 60-70 फीसद तक बढ़ाना होगा.

पर इस लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में रोड़ा साबित हो सकता है जलवायु परिवर्तन. बेशक, आप इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पूरी तरह महसूस नहीं कर रहे होंगे, लेकिन 2022 की होली (यानी मार्च के दूसरे पखवाड़े) के आसपास ही उत्तर भारत में गर्म हवाओं को लू के थपेड़ों को इनकार नहीं कर पाएंगे. 

जलवायु में बदलाव को दर्ज किया जा सकता है और जानकारों के मुताबिक, 2022 में जल्दी आई गरमी का प्रभाव गेहूं के उत्पादन पर पड़ेगा. मार्च और अप्रैल के महीने तक गेहूं की पछैती (बाद में कटाई वाली फसल) फसल की कटाई नहीं हुई होती है, बल्कि उसके दाने तैयार ही हो रहे होते हैं. 

दैनिक भास्कर में छपी खबर में राजस्थान के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामगोपाल वर्मा ने इस जल्दी आई गरमी की वजह से गेहूं की पछैती फसल को ’10 से 15 प्रतिशत तक नुक्सान’ का आकलन किया था. कृषि विभाग के मुताबिक, यह करीबन 5 लाख मीट्रिक टन गेहूं का नुक्सान था.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का बारिश की मात्रा की निगरानी करने वाला विभाग, ग्लोबल प्रेसिपिटेशन मेजरमेंट का जलवायु मॉडल बताता है कि तापमान में बढोतरी से धरती के जल चक्र में गहनता आएगी. सीधे शब्दों में समझिए कि वाष्पोत्सर्जन बढ़ेगा. इसके बढ़ने से बारबार और गहनता वाले तूफान आएंगे, लेकिन साथ ही कुछ इलाकों में पानी की कमी बढ़ती जाएगी. 

नतीजतन, तूफान प्रभावित क्षेत्रों में बारिश बढ़ेगी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा लेकिन तूफान की जद से दूर रहने वाले इलाकों में बारिश की मात्रा कम होती जाएगी और वहां सूखे के अंदेशे बढ़ते जाएंगे.

पानी ऐसे खत्म होता जाएगा तो हम पिएंगे क्या और खाने के लिए उपजाएंगे कैसे?

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