Friday, September 28, 2007

उम्मीद

एक बार फिर बातें करना,
ज़िंदगी की गर्माहट की,
ताकि कुछ तो जान सकें--
वह गर्म नहीं है।
पर वह गर्म हो सकती थी।
मेरी मौत के पहले
एक बार फिर बातें करना
प्यार की,
ताकि कुछ तो जान सकें,
वह था--
वह ज़रूर होगा।
फिर एक बार बातें करना,
खुशी की,
उम्मीद की,
ताकि कुछ लोग सवाल करें,
वह क्या थी, कब आएगी वह ?

मंजीत ठाकुर

No comments: