Saturday, October 18, 2008

अच्छी है शूट ऑन साइट, चलेगी कर्ज

पौराणिक गाथाओं से बाहर निकालेगी चींटी-चींटी बैंग-बैंग

हम पहले से ही कर्ज़ (सुभाष घई वाली) के बारे में जानते हैं। तीन दशकों के बाद भी फिल्म लोगों को याद है यह पुराने वाले कर्ज की खासियत ही कही जाएगी। सुभाष घई ने हॉलिवुड की रिइनकार्नेशन ऑफ़ पीटर प्राउड का मुंबइय़ा संस्करण बडी़ खूबसूरती से तैयार किया था और फिल्म का कारोबार भी ठीक रहा था। स बार भी सतीश कोशिख ने घई की लीक पर चलना ही ठीक समझा है, और एक हद तक कामयाब भी रहे हैं।


लेकिन तमाम बातों के बावजूद पुराने कर्ज़ से नए कर्ज़ की तुलना हो रही है। हिमेश-ऋषि, उर्मिला-सिमी हर स्तर पर तुलना की गुंजाइश है। संगीत के सत्र पर भी लक्ष्मी-प्यारे बनाम हिमेश। हिमेश तीन मोर्चे पर हैं, अदाकीर, गायिकी ौर संगीत। निर्देशक सतीश कौशिक ने कर्ज़ में कहानी के स्तर पर कुछ ट्विस्ट दिया तो है, लेकिन फिल्म मे सबसे अहम बात है हिमेश रेशमिया की अदाकारी।


पिछली बार यानी आपका सुरुर में हिमेश ने खुद का किरदार किया था , लेकिन कर्ज मे उन्हें मोंटी का किरदार निभाना था और आप शायद अंदाजा भी न लगा पाएं वे अदाकारी के लिहाज से खरे उतरे हैं। मुकाबला करने वालो और कला पक्ष पर चिंतित होने वालों को ये जानना चाहिए कि ये मसाला फिल्म है। क्राफ्ट की उम्मीद करना बेकार है।


पुनर्जन्म की अविश्वनीय कहानी पर आधारित फिल्म में कला के लिहाज से और फिल्मी क्राफ्ट के हिसाब से कुछ भी उल्लेखऩीय नहीं है लेकिन लोकप्रिय संगीत और संपूर्ण मनोरंजन की वजह से फिल्म बडी़ हिट हो सकती है। जनता के बीच हिमेश की लोकप्रियता का फायदा फइल्म को मिलेगा, फिल्म का ठीक संगीत भी प्लस पॉइंट है। लेकिन पिछले सप्ताह की फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर घटिया औरगया-गुजरा प्रदर्शन कर्ज के लिए राहें खोल सकता है।


वैसे मुझे बड़ा ताज्जुब होता है कि क्यों लोग हिमेश के पीछे पड़े हुए हैं। मानता हूं कि न वह चोटी के संगीतकार गायक या अदाकार नहीं है। लेकिन जनता का एक बड़ा तबका उन्हें पसंद करता है। और जनता की पसंद पर अपरनी पसंद थोपने का अधिकार किसी कथित समीक्षक को नही है। कला के इन महान पुजारियों ने तो पिछली कर्ज को भी फ्लॉप करार दे दिया था। लेकिन रिजल्ट क्या हुआ था आप सबको पता है। वैसे, तय ये है कि फिल्म को हिमेश अपने कंधे पर ढो लेंगे।


रिलीज़ हुई दूसरी फिल्म है शूट ऑन साइट। निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा ने फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ओम पुरी और गुलशन ग्रोवर जैसे मंझे हुए कलाकारों को कास्ट किया है, ऐसे में एक्टिंग के लिहाज से निश्चिंत हो जाइए।


ये फिल्म लंदन में हुए हमले पर आधारित है, फिल्म में हमले के बाद स्कॉटलैंड यार्ड के मुस्लिम पुलिस अधिकारी बने नसीर की जिदगी में आई उथल-पुथल को दिखाया गया है। निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा इससे पहले भी सामाजिक विषयों पर फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। शूट ऑन साइट कुल मिलाकर फिल्म तो अच्छी है लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कुछ कर पाएगी इसमें संदेह है।


रिलीज़ हुई तीसरी फिल्म है एक एनिमेशन फिल्म चीटी-चींटी बैंग-बैंग। फिल्म को निलॉय कुमार दे ने निर्देशित किया है और फिल्म में आशीष विद्यार्थी, अंजन ॽीवास्तव, महेश माजरेकर और असरानी ने अपनी आवाजे दी हैं।


पिल्म का टारगेट ऑडियंस बच्चे ही हैं, लेकिन बड़ो में पसंद की जा सकती है। कम से कम भारत में एनिमेशन फिल्मों के पौराणिक गाथाओं से बाहर निकलने की अच्छी शुरुआत है।


मंजीत ठाकुर

2 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

अच्छी तहरीर है...बधाई...

kumar Dheeraj said...

जेट एयरवेज कमॆचारियो के निकाले जाने से बाजार के लोगो के ही प्राण पखेरू उड़ गए । शायद किसी ने सोचा नही होगा कि ऐसी स्थिति का सामना जेट एयरवेज के कमॆचारियो को करना पड़ेगा । बाजार के पैरोकार ही बाजार में भीख मांगते नजर आए । कल तक लोगो को पैसे की कीमत और अपने मांडलिंग के जरिए आम लोगो को लुभाने वाले ये कमॆचारी इस कदर अपनी दलील देते नजर आए । ऐसा पहले कभी सोचा नही गया था । एक क्षण में ही पता चल गया कि बाजार क्या होता है । खैर अब भारतीय भिखारियो को भीख मांगने में शमॆ महसूस नही होगी । दरअसल आथिॆक मंदी की मार से कोई अछूता नही है । समाजवाद का धुर-विरोधी अमेरिका समाजवाद की गोद में जाने को तैयार है । शायद यह समाजवाद की जीत भी है । कल तक निजीकरण का हवाला देने वाला अमेरिका बाजार के विफल होने के बाद सरकार की शरण में आ गिरा है । अब अमेरिका के अनेक वित्तीय संस्थानो में बाजार का पैसा नही बल्कि सरकार का पैसा लगा होगा । यानी अथॆव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली उंचाईयों पर बाजार का नही सरकार का कब्जा होगा । औऱ यही तो समाजवादी व्यवस्था में होता है । आज स्थिति यह है कि जो अथॆव्यवस्ता पर ज्यादा आधारित है वह उतना ही ज्यादा संकट में है । जिसका असर न केवल अमेरिका बल्कि भारत में भी दिख रहा है । भारत का तकदीर इस मायने में अच्छा है कि यहां पूणॆ ऱूप से निजीकरण सफल नही हो पाया है बरना जेट एयरवेज जैसे कई कम्पनियो के कमॆचारी सड़क पर गुहार लगाते मिलते । औऱ अपनी चमक पर स्व्यं पदाॆ डालने की कोशिश करते । यही तो बाजारवाद है ।