Friday, November 6, 2009

अब कौन करेगा कागद कारे?

सुबह सुना, प्रभाष जी नहीं रहे। बॉस ने खबर दी, कोई बाईट ला सकते हो..मन खिन्न हो गया। पत्रकारिता के पितामह, हमारे समय के सबसे भरोसेमंद और क्रेडिबल पत्रकार बिना किसी सूचना के चला गया।

कल रात को भारत-ऑस्ट्रेलिया का मैच देख रहा था। सचिन को बेलौस खेलता देख रहा था, उसके छक्के और चौकों की बरसात देख रहा था। भतीजे मनीष ने भैया से कहा, अब कल अंकल जनसत्ता का पहला पैज फाड़कर लाएंगे। जिसमें प्रभाष जोशी सचिन तेंदुलकर के लिए पन्ने रंगे रहेगें।

सचिन ने ताबड़तोड़ १७५ रन बनाए.. लेकिन ...

आज जनसत्ता खाली-खाली सा था। उदास, पितृहीन बालक की तरह।

दफ्तर गया तो अरविंद चतुर्वेदी प्रभाष जी का पुराना इंटरव्यू लॉग कर रहे थे। सवाल था कि प्रभाष जी आप इस उम्र में देशाटन पर क्यों रहते हैं?

बकौल प्रभाष जी, वह देशाटन पर रहते हैं तो यमराज के दूतों को छकाते हैं। यमदूत दिल्ली आते हैं , तो वह भोपाल मे होते हैं, यमदूत भोपाल पहुंचते हैं तो वह कालाहांडी में होते हैं.....

आईआईएमसी में हमें पढाने आए ते प्रभाष जी तो उनने हमें जानपांडे बनने को कहा था। जानपांडे ऐसे लोग होते थे जो धरती के कंपन को महसूस कर यह जान लेते थे कि वहां कुँआं खोदने से पानी निकलेगा या नहीं। उनका कहना था कि हमें समाज का जान पांडे बनना होगा।

उनकी किताबों और आलेखों और पत्रकारिता के काम पर लिखने वाला उचित आदमी नहीं मैं। यह किसी बड़े आदमी के जिम्मे हो। हमारे लिए प्रभाष जी प्रकाश स्तंभ थे, जिनके ज़रिए हमें सही रास्ता दिखता था।

बहरहाल, उनके तमाम स्तंभों में हम क्रिकेटीय स्तंभ कासकर पढ़ते थे। भारतीय क्रिकेट के लड़कों के धुरंधर प्रशंसक, गोलंदाजों के गुण-अवगुण बताने वाले, और विदेशियों की बखिया उधे़ड़ने वाले, सचिन के पक्षधर प्रभाष जी का जाना पत्रकारिता के साथ क्रिकेट का बड़ा नुकसान है।

क्या सचिन को पता है कि उसका एक बड़ा प्रशंसक बौद्धिक दुनिया छोड़ गया?

3 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

सचिन को कहां खबर होगी

होगी भी तो दरबदर होगी।

विनम्र श्रद्धांजलि।

mohit said...

sawal ye hai ki ginati ke giney chuney he "" acchey patrakaar"" reh gaye hai..

ye fasal to ab kat rahi hai.. nayi fasal me wo baat kaha??

राज भाटिय़ा said...

्दुखद समाचार, हमारी तरफ़ सेभी उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि।