Sunday, November 27, 2011

फलक- फेसबुक लघु कथाएँ उम्दा रचनाएँ

मेट्रो मुहब्बतः

कुलदीप मिश्रा
कथाकारः कुलदीप मिश्रा

(कुलदीप मिश्रा दैनिक भास्कर में चंडीगढ़ में सह-संपादक हैं। आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई कर चुके कुलदीप सीएऩईबी टीवी चैनल में भी काम कर चुके हैं)
शंका, उम्मीद, एक्साइटमेंट। कुछ कॉकटेल सा था दोनों के मन में। फर्स्ट टाइम मिलना बड़ा अजीब होता है। बाइ गॉड। सोचते हुए वो पीतमपुरा मेट्रो पहुंच गई। ये भी शमशेर बहादुर पढ़कर तैयार हुआ। कटवारिया का मुंशी प्रेमचंद पीतमपुरा की लेडी गागा से मिलने वाला था। बीच की कहानी रिकॉर्ड में नहीं है।

वो कुर्ते और चप्पल पर भड़की थी और ये उसके भड़कने पर।

आठ बजे की दिल्ली। सड़कों पर धुंधली रौशनी थी। दिल्ली के ऑफिस वालों के साथ लौट रहे थे दोनों। ख़्यालों के कॉकटेल से लबालब।



2. रोना  
विनायक काले
कथाकारः विनायक काले

( विनायक काले हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढाते हैं, और फेसबुक लघुकथा मंच के सक्रिय सदस्य हैं)

 उसने कहा,
“किसी के मृत्यु पर
रोते क्यों नहीं तुम?”
मैंने कहा,
“ब्रेकींग न्यूज़ देखकर उब गया हूँ मैं।”

3. सेल

कथाकारः विनायक काले
सने कहा,
“सुनामी के समाचारों के बीच आते
साबुन और कंडोम के ऐड के बारे में क्या कहोगे तुम?”
मैंने कहा,
“बाजार में इन्सान खोज रहा हूं मैं"



4. वफादारी

कथाकारः मंजीत ठाकुर

दोपहर को भयंकर गरमी थी। जोरों की लू चल रही थी। मैं एक बाईट के चक्कर में कांग्रेस दफ्तर गया। वहां मीडिया सेंटर वाले कमरे में कुरसी पर बैठे नेता ने जोरों से हवा देते पंखे का रुख अपनी बजाय, सोनिया गांधी की तस्वीर की ओर कर रखा था.

7 comments:

अनुपमा पाठक said...

सटीक लघुकथाएं... लघु होकर भी सुदीर्घ बातों का संकेत लिए!

Rahul Singh said...

कुलदीप मिश्रा के नाम के साथ का चित्र तो 'कोलावेरी' वाला है.

दीपक बाबा said...

तीनों ही जबरदस्त...

अंतर्मन said...

सटीक तीनो की तीनो, शब्दों की फिजूलखर्ची नहीं है गुरुदेव....

vinayak kale said...

मैं हैदराबाद विश्‍वविद्यालय में पढाता नहीं हूँ....शोधार्थी हूँ।

Anand Patil said...

भाई विनायक जी ने 'रोना' के माध्यम से जहाँ एक ओर सनसनीखेज ख़बरों के ज़रिए बाज़ार भुनने और टीआरपी बढ़ाने वाले मीडिया की अच्छी ख़बर ली है, वहीं 'सेल' में मीडिया और बाज़ार की संवेदनहीनता की सही माय़ने में शिनाख़्त की है। 'कंडोम' तो बाज़ार का एक 'रूपक' मात्र है, जो विनायक जी ने गढ़ा है। विनायक जी की इन लघु और सारगर्भित रचनाओं में जो मर्म छिपा है, वह जनता समझ जाए... ये मीडिया और बाज़ार के 'कंडोम' आपको 'खंड-खंड' में 'होम' करेंगे।... इन बीमारियों का निवारण होना चाहिए। - आनंद पाटील

Anand Patil said...

भाई विनायक जी ने 'रोना' के माध्यम से जहाँ एक ओर सनसनीखेज ख़बरों के ज़रिए बाज़ार भुनने और टीआरपी बढ़ाने वाले मीडिया की अच्छी ख़बर ली है, वहीं 'सेल' में मीडिया और बाज़ार की संवेदनहीनता की सही माय़ने में शिनाख़्त की है। 'कंडोम' तो बाज़ार का एक 'रूपक' मात्र है, जो विनायक जी ने गढ़ा है। विनायक जी की इन लघु और सारगर्भित रचनाओं में जो मर्म छिपा है, वह जनता समझ जाए... ये मीडिया और बाज़ार के 'कंडोम' आपको 'खंड-खंड' में 'होम' करेंगे।... इन बीमारियों का निवारण होना चाहिए। - आनंद पाटील