Tuesday, November 5, 2013

किताबः द लास्ट लिबरल एंड अदर एसेज़



किताबः द लास्ट लिबरल एंड अदर एसेज़

भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उदारवाद की तलाश कैसे करेंगे। रामचंद्र गुहा कि किताब द लास्ट लिबरल एंड अदर एसेज़ के निबंध आपको जानी-मानी हस्तियों से  लेकर फुटपाथ पर लगने वाली पुरानी किताबों की दुकान तक से परिचित करवाती है। अपने अपने तरीक़ों से धर्निरपेक्षता, उदारवाद, ईमानदारी और सामाजिक प्रतिबद्धता की मिसाल बने लोगों के जीवन पर रौशनी डाली गई है। लेकिन, सिर्फ प्रस्तावना को छोड़ दें, जिसमें नेहरू पर रामचंद्र गुहा का पक्षपात झलकता है तो बाकी के निबंध निर्द्वन्द्व होकर लिखे गए हैं।

किताब दो हिस्सों में है, पहला हिस्सा है लोग और जगहें। इसमें सेवाग्राम का जिक्र भी है और राजगोपालाचारी का भी। राजगोपालाचारी के बारे में लिखते समय रामचंद्र गुहा ने उनके परमाणु बम के बारे में विचारों को हवाला दिया है। निश्चित तौर पर एटम बम को लेकर सोचने वाले और उस पर भारतीय रूख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश करने वाले राजाजी पहले प्रामाणिक नेता थे। राजाजी एटम बम के विरोध में सेमिनारों में हिस्सा लेने अमेरिका गए, जहां उनकी मुलाकात राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी से भी होनी थी। वक्त मिला था 25 मिनट का। लेकिन केनेडी राजाजी से इस कदर प्रभावित हुए कि एक घंटे से ज्यादा वक्त तक बातें होती रहीं।


बाद में जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ निशस्र्तीकरण परिषद् में राजा जी के बारे में अमेरिकी प्रतिनिधमंडल के एक सदस्य ने वी शिवाराव से कहा कि निशस्त्रीकरण पर भारत का पक्ष रखने के लिए आप इस शख्स को जेनेवा क्यों नहीं भेजते? शिवाराव ने इस बाबत नेहरू को खत भी लिखा। लेकिन तब तक नेहरू और राजाजी के संबंध खराब हो चुके थे, और नेहरू ने राजाजी को जेनेवा नहीं भेजा।

चिपको के प्रणेता चंडी प्रसाद भट्ट पर भी बढ़िया जानकारी परक लेख है। लेकिन बंगाली भद्रलोकः देशी मुरगी विलायती बोल खटकता है। वी पी कोईराला पर लिखे गए लेख में कोईराला पर दिया गया ब्योरा कम है। लेख पढ़ने के बाद पूरी संतुष्टि नहीं हो पाती।

किताब का आखिरी निबंध महात्मा गांधी की मार्क्सशीटें हैं। इसमें गुहा स्थापित करते हैं कि स्कूलों में हासिल किए गए बढ़िया अंक मेधाविता का परिचायक नहीं होते। मिसाल उन्होंने कई दिए हैं, मुझे मशहूर वैज्ञानिक आइन्स्टीन का याद आ रहा है। कि वह नौ साल की उम्र में बोलना सीख पाए थे। कि, वह डिप्लोमा हासिल नहीं कर पाए थे। कि म्युनिख में वह ल्योपॉल्ड जिम्नेजियम में पिछड़ गए थे। रामचंद्र गुहा इसी तरह मैट्रिक परीक्षा में गांधी के मार्क्सशीट का हवाला देते हैं, जिसमें कुल 40 फीसद अंक गांधी को हासिल हुए थे।

इस लेख के बाद मुझे गुहा की मार्क्सशीट देखने की जरूरत महसूस हो रही है, और लग रहा है कि वह भी मेरे, गांधी और आइंस्टीन की कतार के ही हैं।

बहरहाल, इस किताब को पेंग्विन ने छापा है और इसका हिंदी अनुवाद आख़री उदारवादी और अन्य निबंध नाम से मनीष शांडिल्य ने किया है। अनुवाद बाकी जगहों ठीक है लेकिन वर्तनी की अशुद्धियां खटकती हैं। मिसाल के तौर पर वीपी कोईराला के भाई मातृका प्रसाद कोईराला को माितृका लिखा गया है।

किताब 291 पृष्ठो की है, पेपरबैक संस्करण का मूल्य 399 रूपये मात्र है। खरीद कर न पढ़ने की इच्छा रखते हों तो किसी लाइब्रेरी से हासिल करें। किताब अच्छी है।


1 comment:

अनूप शुक्ल said...

अच्छी समीक्षा!