Tuesday, May 13, 2014

बंगाल डायरीः बंगाल में भाजपा का आविर्भाव



2014 का चुनाव ऐसा रहा जिसने राजनीतिक सरहदों को चुनौती देना शुरू कर दिया है। इसकी मिसाल है बीजेपी की बंगाल में पैर जमाने की कोशिशें। और वह एक हद तक इसमें कामयाब दिखती है।

बहुत पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा था कि जिस दिन बंगाल में बीजेपी को सीटें मिलनी शुरू हो जाएंगी, केन्द्र में उसकी सरकार बननी तय है। इस दफा ऐसा दिख रहा है। बंगाल में बीजेपी का जनाधार नुमायां हो रहा है। वोट शेयर बढ़ेगा यह तय है। सीटों में कितनी तब्दील होंगी, यह कहना जल्दबाज़ी होगी।

ज्यादा दिन नहीं बीते, चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी और नरेन्द्र मोदी के बीच वाक्-युद्ध देखने को मिला। जबकि ठीक एक साल पहले, नरेन्द्र मोदी जब कोलकाता आए थे, तो उनने ममता के काम की तारीफ की थी और कहा था कि ममता को 34 साल के वाम मोर्चे के दौरान विकास के काम में पैदा हुए गड्ढे भरने का काम करना होगा। एक साल में हुगली में ऐसा कैसा पानी बह निकला?

यही सवाल मैंने जब माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृन्दा करात से किया तो उनका सहज उत्तर था, दोनों एक ही हैं, यह ज़बानी जंग महज नूराकुश्ती है।
लेकिन इस जवाब का एक और स्तर है। दरअसल, इस चुनाव में बीजेपी का वोटशेयर खासा बढ़ता दिख रहा है और इस बात की उम्मीद किसी को नहीं थी। ममता को तो कत्तई नहीं।

बीजेपी की तरफ बंगाल के उन वोटरों का झुकाव दिखा, जो तृणमूल कांग्रेस के विरोधी हैं लेकिन सीपीएम से निराश हैं।

अब इसको मोदी लहर कहिए या फिर कुछ और, बंगाल की कम से कम आठ सीटों पर बीजेपी कड़ी चुनौती पेश कर रही है। इन सीटों में, दार्जीलिंग, अलीपुर दुआर, हावड़ा और श्रीरामपुर शामिल हैं। साथ ही, आसनसोल और कृष्णानगर को भी जोड़ लीजिए। हाईप्रोफाइल कैम्पेन वाली वीरभूम सातवीं सीट मानी जा सकती है। बीजेपी इन सीटों पर जीत की उम्मीद लगाई बैठी है। कई साथी पत्रकार इनमें से चार पर बीजेपी की जीत पक्की मान रहे हैं।

लेकिन, मशहूर बांगला अभिनेत्री सुचित्रा सेन की बेटी, और खुद भी हीरोईन रह चुकी, राजनीति की नई नवेली खिलाड़ी मुनमुन सेन किसी लहर से इनकार करती हैं। मोदी लहर? वह किधर है...वह मुझी से पूछती हैं। कहती हैं, बंगाल में सिर्फ एक ही लहर है, ममता की।

मुझे भी इस बात से कहां इनकार है।

जिन आठ सीटों की बात मैंने की, उनमें  एक बात कॉमन है कि यहां की आबादी मिलीजुली है। 2009 में बीजेपी के खाते में सिर्फ एक सीट गई थी। दार्जीलिंग। तब उसे गोरखा पार्टियों का समर्थन मिला था। वह समर्थन इस बार भी मौजूद है।
दूसरी सीटों पर भी उसका एक छोटा सही लेकिन जनाधार तो मौजूद है ही। इस बार उस जनाधार में गैर-बंगाली, वाम-विरोधी और तृणमूल से मोहभंग हुए लोगों का तबका भी आ जुड़ा है।

खासकर, सेलिब्रिटी उम्मीदवारो ने बीजेपी का दावा थोड़ा और मजबूत कर दिया है। श्रीरामपुर में बीजेपी की सभाओँ में वहां के मौजूदा तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी की सभाओं से अधिक भीड़ जुटती है। हालांकि, यह वोटों की संख्या का सुबूत नहीं होता।

आसनसोल में बाबुल सुप्रीयो पर हथियार रखने का इलजाम सहानुभूति की तरह काम कर गया। इस सवाल पर सुप्रीयो कहते हैं, ममता ने मुझे फंसाने की कोशिश की है, इसी से मेरी उम्मीदवारी की गंभीरता का पता चलता है। जबकि मैंने आजतक कोई आर्म यूज़ नहीं किया, सिवाए अपने लेफ्ट और राइट आर्म के। बाबुल मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ दिखाते हैं।

हावड़ा में बीजेपी ने वेटरन एक्टर जॉर्ज बेकर को और वीरभूम में मशूहर जात्रा एक्टक जॉय बनर्जी पर दांव लगाया था।

इन सीटों पर बीजेपी कितनी जीतती है, यह सवाल पेचीदा है। लेकिन 2009 के मुकाबले उसके वोटों में सबस्टेंशियल बढोत्तरी होगी, यह तय है।

लेकिन, पश्चिम बंगाल में बीजेपी का यह उदय, बंगाली जनमानस में पैठे हुए उस सेल्फ-परेशप्शन पर सवाल खड़े करता है, जो कहीं न कहीं श्रेष्ठता भाव लिए था। जो कहीं न कहीं, बौद्धिकता और विमर्श आधारित राजनीति करने का दम भरता था। क्योंकि बंगाल की राजनीति में भी चमक-दमक और ग्लैमर का बढ़ता असर दिख रहा है, हालांकि यह एक अलग किस्म के बहस का विषय है।

फिलहाल, बीजेपी को एक नए राज्य में अपने बढ़ते वोटबैंक से खुश होना चाहिए।

जारी...

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