Monday, January 16, 2017

सही वक़्त पर सही फ़ैसले का नाम धोनी

यह बात और है कि हम भारतीय पर्याप्त नाशुक़रे हैं और अपने नायकों को तभी तक याद रखते हैं जब तक उनमें चमक रहती है। लेकिन कुछ ग़लती तो हमारे इन नायकों की भी रही ही है। सौरभ गांगुली हों या कपिल देव या फिर कोई भी और मिसाल ले लीजिए, उन्होंने तब तक संन्यास की घोषणा नहीं की, जब तक उनका करिअर घिसता रहा।

लेकिन, धोनी तो अपवादों की मिसाल हैं।

याद कीजिए कि साल 2014 में बीच श्रृंखला में धोनी ने टेस्ट की कप्तानी और टेस्ट मैचों से संन्यास की घोषणा की थी। टी-20 और एकदिवसीय मैचों की कप्तानी छोड़ने का ऐलान भी उसी बेसाख़्ता अंदाज़ में हुआ है।

ऐसा नहीं है कि लोगों ने कप्तानी छोड़ने के उनके इस फ़ैसले के कयास नहीं लगाए थे, लेकिन तटस्थ होकर कहें तो धोनी का फ़ैसला बिलकुल सही वक़्त पर आया है।

इस वक्त जब बल्ले से भी और कप्तानी में भी विराट कोहली जगमगा रहे हैं, धोनी ने खेल के सभी फ़ॉर्मेट में कप्तानी उनके हवाले करके अपनी निस्पृहता का सूबूत भी दिया और सटीक फ़ैसले लेने की अपनी क्षमता का भी। अभी कोहली शानदार रंगत में हैं और उनके फ़ैसले भी सही साबित हो रहे हैं। विराट कोहली की कप्तानी में भारत की जीत का प्रतिशत 63 फीसद से अधिक का है। 18 मैचों से भारत अजेय रहा है और बल्ले से भी विराट ने अच्छे हाथ दिखाए हैं। वह तीन दोहरा शतक बनाने वाले भारत के एकमात्र कप्तान भी हैं।

विराट कोहली ने सचिन तेंदुलकर और उनसे पहले से चले आ रहे उस विचार और आशंका को भी खत्म कर दिया है कि कप्तानी का भार निजी प्रदर्शन पर असर डालता है। हालांकि, कैप्टन कूल धोनी के कप्तानी का अंदाज़ दूसरा था और विराट का अलहदा। विराट आक्रामक कप्तानी करते हैं और धोनी चतुर लोमड़ी की तरह मौके का फायदा उठाते थे, दांव लगाते थे।

सिर्फ हम भारतीय ही नहीं, पूरी दुनिया धोनी की कप्तानी सूझबूझ की कायल रही है। लेकिन सिर्फ कप्तानी के दम पर आप टीम में हमेशा नहीं बने रह सकते। धोनी की पहचान बना हेलिकॉप्टर शॉट खो गया है। मैच फिनिशर की उनकी विश्व-प्रसिद्ध पहचान भी संकच में है। वनडे मैचों में धोनी की रनों की रफ्तार भी साल-दर-साल धीमी पड़ती गई है। धोनी ने 2012 में करीब 65 की औसत से बल्लेबाज़ी की थी जो अब 2016 में करीब-करीब 29 के आसपास है। टी-20 में धोनी का औसत करीब 47 है।

यह औसत धोनी की हैसियत के आसपास भी नहीं ठहरता। इसी के बरअक्स विराट कोहली ने वनडे में 92 और टी-20 में 106 की औसत से रन कूटे हैं। यानी, विराट अपने सबसे बेहतरीन दौर में हैं और धोनी की करिअर ढल रहा है।

सबसे अच्छी बात वैसे यह है कि धोनी ने सिर्फ कप्तानी छोड़ी है और अभी संन्यास नहीं लिया है। उनमें कम से कम दो साल का क्रिकेट बचा हुआ है, और अब जब वह विपक्षी टीमों के खिलाफ रणनीतियां बनाने के दवाब से दूर रहेंगे तो शायद हमें वह धोनी वापस मिल जाए जिसका बल्ला, बल्ला नहीं तोप था, और जिसकी धमक से गेंदबाज़ों के पसीने छूट जाते थे।

पैरलल छक्के, और शानदार चौकों (हेलिकॉप्टर शॉट तो बहुत चर्चा में हैं, तो वह तो उम्मीदों की लिस्ट में है ही) की बरसात एक बार फिर शुरू हो, यह दर्शक भी चाहेंगे और खुद धोनी भी।

धोनी की शख्सियत का कमाल है कि आठ साल तक भारतीय क्रिकेट के शीर्ष पर रहने, कप्तानी करने और साथी खिलाडियों को डांटने-डपटने से परहेज़ नहीं करने वाले कैप्टन कूल अपने से जूनियर खिलाड़ी के मातहत खेलने को तैयार हैं।

वक्त के साथ, नायक बदल जाते हैं, बस ईश्वर नहीं बदलते। सचिन की जगह कोई नहीं ले सकता, लेकिन धोनी ने सचिन का नायकों वाला रुतबा हासिल कर लिया था। यह ताज अब कोहली के सिर है। अच्छी बात यह कि इसे धोनी ने जल्दी मान लिया।



मंजीत ठाकुर

3 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन और ओपी नैय्यर में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आदमी को संन्यास तब लेना चाहिए जब दुनिया उससे पूछे कि आप संन्यास क्यों ले रहे हैं, न कि उस समय जब दुनिया कहे कि आप संन्यास क्यों नहीं ले लेते. हमारी टीम का दुर्भाग्य यही रहा कि सभी शीर्षस्थ खिलाड़ियों ने बहुत छीछालेदर के बाद संन्यास लिया. धोनी का फैसला बहुत अच्छा रहा.

रश्मि शर्मा said...

बहुत सही लिखा