Thursday, February 27, 2020

हवा को बांधने वाले उत्साही लड़के की कहानी द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड

द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड मलावी के एक ऐसे गांव को बचाने वाले लड़के की कहानी है जहां भुखमरी है और भयानक सूखा है. उम्दा अभिनय, शानदार पटकथा और बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी इस फिल्म में दर्शक को अंत तक बांधे रखती है. यह फिल्म एक राजनीतिक टिप्पणी भी है

कुछ फिल्मों को सिर्फ इसलिए भी देखना चाहिए क्योंकि उनमें एक ऐसा संदेश होता है, जो मुश्किल वक्त में भी इंसान को जिंदा रहने की वजहें देती हैं. लेकिन अगर किसी फिल्म में एक मजबूत और प्रेरणास्पद कथाक्रम के साथ ही, शानदार सिनेमैटोग्राफी और बेजोड़ संपादन और उम्दा अभिनय भी हो तो बात ही क्या!

किसी को पता नहीं था कि लेखक-निर्देशक चिवेटेल ज्योफोर अपने पहले ही शाहकार में ऐसा कमाल कर गुजरेंगे. ऐसी कहानी, जिसमें राजनीतिक टिप्पणी है, पर वह लाउड नहीं है, ऐसी कहानी जिसमें त्रासदी है, भूख है, पर वह इंसान को बेचारा साबित नहीं करती. बल्कि तमाम बाधाओं के बीच प्रतिभा के विस्फोट और संसाधन जुटाने की चतुराई के साथ एक पिता और पुत्र के पीड़ाओं के बीच एकदूसरे के साथ खड़े होने की कथा कहती है.

फिल्म में कमाल की किस्सागोई है जिसमें संवेदनशीलता और सहानुभूति दोनों भावनाएं गजब तरीके से पिरोई गई हैं. कहानी में प्रवाह है.

फिल्म द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड का वीडियो ग्रैब


असल में, ज्योफोर ने मलावी नाम के देश के एक इंजीनियर विलियम कंक्वाम्बा की असली कहानी को रूपहले परदे के लिए ढाला है और इस कहानी में परत दर परत आप गरीबी, सूखा, गृहयुद्ध और भुखमरी को उघड़ता देखते हैं. मलावी में कथित तौर पर लोकतंत्र आने के बाद राजनैतिक नेतृत्व का रवैया भी उधेड़ा गया है.

फिल्म की शुरुआत एक ऐसे लॉन्ग शॉट से होती है जहां हरी फसल के फोरग्राउंड में मलावी के आदिवासी कबीलों के पारंपरिक वेषभूषा में आते दिखते हैं. इनकी मेहमानवाजी कबीले के सरदार के जिम्मे है. अगले शॉट में मक्के की पकी फसल है जिसकी कटाई के दौरान ही नायक विलियम के दादाजी की मौत हो जाती है. गरीबी से जूझ रहे गांव में हर तरफ सूखा और गरीबी है और निर्देशक आहिस्ते से अपनी बात को शॉट्स के बेहतर संयोजन से बता जाते हैं. विलियम अपने गांव में रेडियो के लिए छोटे विंड टरबाइन के जरिए बिजली का इंतजाम करते हैं. यहां निर्देशक ज्योफोर थोड़ी रचनात्मक छूट लेते हैं, पर ज्योफोर की रचनात्मकता इस सृजनात्मक छूट का औचित्य साबित भी करती है, जो कहानी को दृश्यात्मक बनाने के लिहाज से जरूरी भी थी कि सूखे ग्रस्त गांव में कुआं सूखा नहीं था और उसका पानी खेतों तक पहुंचाने के लिए बड़े पवनचक्की की जरूरत होती है.



हालांकि बड़ी पवनचक्की बनाने के वास्ते विलियम को अपने पिता की एकमात्र पूंजी साइकिल की जरूरत है. और यहीं नायक के साथ पिता के रिश्तों में तनाव आता है. पिता इस नए प्रयोग के लिए न जाने क्यों अपनी साइकिल देने से मना करता है और यह जाने क्यों पुत्र के साथ उसकी प्रतिस्पर्धी भावना है.

इस फिल्म में निर्देशक-लेखक ज्योफोर ने खुद ट्राइवेल (विलियम के पिता) का किरदार निभाया है. यह ऐसा चरित्र है जो एक किसान और पिता के तौर पर दहशत के साए में जीता है. उनके अभिनय में गजब की गहराई है. उनकी आंखों में उनका किरदार दिखता है. उनके पुत्र विलियम के किरदार में मैक्सवेल सिंबा हैं और वह इस फिल्म की जान हैं.

फ्रेम दर फ्रेम आप बगैर किसी संवाद से जबरिया सुझाए बिना जानते जाते हैं कि विलियम का यह गांव गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है. यहां भी जमीन के मालिकान जमीनों के सौदे करने की कोशिश करते हैं. सियासी लोग हमेशा की तरह सनकी, हिंसक और भ्रष्ट दिखाए गए हैं जो एक हद तक सही भी है.

इन सबके बीच विलियम के भीतर तकनीक को लेकर कुदरती रुझान है और स्कूली शिक्षा को सरकार की मदद के अभाव में स्कूल दर स्कूल बंद होते हैं और वहां विलियम स्कूल की लाइब्रेरी की मदद लेता है. वहीं एक किताब से उसे लगता है कि बिजली की मदद से वह गांव को बचा ले जाएगा.

सिंबा अपने अभिनय में परिपक्वता से उभरे हैं और वह बतौर अभिनेता कहीं भी ज्योफोर से उन्नीस नहीं बैठते. फिल्म में हर फ्रेम की लाइटिंग चटख है और आपको बांधे रखती है. सिनेमैटोग्राफर डिक पोप ने रंगों का खास खयाल रखा है.

यह फिल्म हाल ही में नेटफ्लिक्स पर भारतीय दर्शकों के लिए उपलब्ध है. और पूरी फिल्म की कहानी में उतार-चढ़ाव के बीच, हालांकि आपको लगता है कि विलियम आखिर में कामयाब होंगे ही, पर साइकिल के पहिए की मदद से बनी पवनचक्की जब हवा के साथ तेज घूमती है तो आपकी दिल की धड़कनें बढ़ती हैं और कुछेक सेकेंड के सिनेमैटिक साइलेंस के बाद जब कुएं पर लगा और विलियम के बनाए मोटर की पाइप से पानी आने लगता है तो फिल्म के किरदारों के साथ आपका मन में रोमांच में कूदने लग जाने का करने लगेगा.

इस फिल्म की यही कामयाबी है.

हिंसा, भूख, त्रासदियों के दौर में अ बॉय हू हार्नेस्ड द विंड सपने देखने और उन्हें साकार करने की गाथा है.

फिल्मः द बॉय हू हार्नेस्ड द विंड

निर्देशकः चिवेटल ज्योफोर

कहानीः विलियम कम्कवम्बा

पटकथाः चिवेटल ज्योफोर

अभिनेताः मैक्सवेल सिंबा, चिवेटल ज्योफोर

***

1 comment:

'एकलव्य' said...

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'