Monday, October 1, 2007

सुपर्ब, फैंटास्टिक, माइंडब्लोइंग...चौथा क्या था...

सुपर्ब, फैंटास्टिक, माइंडब्लोइंग...चौथा क्या था... चौथा विशेषण जो एक रियलिटी शो के माननीय जज इस्तेमाल में लाते हैं वह खुद अपने लिए ही इस्तेमाल करें तो बेहतर। वैसे ज़ी टीवी का यह शो उसके मक़ाबले में खड़े दूसरे चैनलों की बनिस्पत ठीक है, लेकिन महोदय क्या ऐसे शो सचमुच टैलेंट यानी प्रतिभा की खोज कर सकते हैं।

जानकारों का (कु)तर्क होगा कि ऐसे ही एक शो की वजह से श्रेया घोषाल और कुणाल गंजावाला जैसी प्रतिभाएं आज लोगों की नज़र में आई हैं। अजी हजरत, उन शोज़ के जज कौन थे यह ग़ौर किया है कभी आपने? पं जसराज ौर रविशंकर जैसे संगीत के जानकार। वैसे हम ये भी नहीं मानते कि दुनिया का सबसे अच्छा संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत ही है, न ही हम ये मानते हैं कि पश्चिमी संगीत में कोई खामी है। लेकिन बड़ी संजीदगी से हम ये मानते हैं कि संगीत जैसी कठिन विधा के लिए रियाज़ की बहुत ज़रूरत होती है। ये सत्रह-अठारह साल के लौंडे कल .. माफ कीजिएगा आज ही इतने मशहूर हो गए हैं कि आज के बाद तो उन्हें लाइव कंसर्ट से फुरसत नहीं मिलेगी। रियाज़ कब करेंगे?

बहरहाल, बात जजों की...। ज़ी टीवी की बात पहले क्यों कि उसका शो टीआर पी रेंटिंग में मेरी जानकारी के मुताबिक अव्वल नंबर पर है। इसके जजेज़ थे, बप्पी लाहिरी, विशाल-शेखर, इस्माइल दरबार, हिमेश बाबा... जिनने अस्सी की दशक के फिल्मी संगीत को सुना है, उनको खयाल होगा कि भारतीय खासकर हिंदी फिल्मों में संगीत के स्तर पर गंद मचाने का सेहरा बप्पी दा के सिर पर ही सजेगा। धुन चोरी के उस्ताद। फिल्में अब कोई देता नहीं.. गुरु उनसे बड़े धुन चोर आ गए हैं इंडस्ट्री में ..ऐसे में कौन पूछेगा उनको? सो अब इन शोज़ के ज़रिए अपनी दुकान फिर सजाने की फिराक में हैं। अस्तु..

इस्माइल दरबार.. बाल बड़े कर लेने से कोई संगीतकार हो जाता तो हमारे गांव का फेंकू भी संगीतकार है। हारमोनियम पर जब दिल ही टूट गया पिछले चौदह साल से बजा रहा है। बाल उसके इस्माइल दरबार से भी बड़े हैं। दाढी भी बढी हुई है। जिस निंबूड़ा-निंबूड़ा गाने को अपना बना कर दरबार ने इंडस्ट्री में अपनी गोटी फिट कर ली है, वह राजस्थान की बहुत लोकप्रिय धुन और लोकगीत है। आने वाली फिल्म सांवरिया का संगीत भी उनने ही दिया है। टाइटस सांग तो साधारण ही लग रहा है मुझे।

विशाल-शेखर संगीत के मामले में इन सबके मुक़ाबले बेहतर हैं. लेकिन यह जज बनने की उनकी योग्यता साबित नहीं करता। बचे हिमेश बाबा.. घर पर चिमटा भूल आएं. तो जनाब से गुनगुनाया भी ना जाए। उनके संगीत को बेहद लोकप्रिय माना जाता है। है भी। लेकिन ज़्यादा नहीं.. ठीक तीन साल बाद उनके गाने कितने लोगों को याद रहेंगे.. हम भी देखेंगे। आप भी देखिएगा।

बचे प्रतियोगी। इन रि.यलिटी शोज़ ने उन्हें लोकप्रिय बेशक बनाया है। अलबत्ता, ये लोकप्रियतता कितने दिन कायम रहती है, ये देखना दिलचस्प होगा। क्या आपको पहले इंडियन आइडल का नाम याद है? और जो रनर अप रहा था उसका? इंडियन आइडल- द्वितीय के विजेता और रनर अप का? नहीं ना? तो इन लड़कों को भी उसी कतार में शामिल हुआ मान लीजिए। रियाज़ का कोई विकल्प नहीं। कामयाबी का कोई शार्टकट नहीं होता। आप परदे से गायब हुए और जनता बिसरा जाएगी उसको। देश के लिए जान देने वाले गांधी को भूलने में देर नहीं करती है हमारी जनता तो बीकानेर के राजा और लखनऊ के गुटखा साईज़ पावर प्लांट पूनम यादव को कौन याद रखेगा? हम तो नहीं...।

No comments: