Saturday, February 9, 2008

मिथ्या- बौद्धिक अय्याशी का वितंडा


बड़े संत कह गए हैं कि दुनिया में हर चीज़ मिथ्या है। हम कहते हैं कुछ भी मिथ्या नहीं, हर चीज़ का मतलब है, हर चीज़ का अर्थ है। हमारी फिल्मों के बारे में भी बात की जाए तो वर्चुअल रियलिटी होने के बावजूद चीज़े सिर्फ मिथ्या नहीं हैं।

सच है कि मुंबईया फिल्मों के दर्शक दुनिया में सबसे ज्यादा है। लेकिन यह भी सच है कि यहां के ज्यादातर निर्देशक दर्शकों को चूतिया या ऐसा ही कुछ समझते हैं। उन्हें लगता है कि बौद्धिकता के नाम पर लोगों के सामने वह जो अल्लम-गल्लम परोस देंगे, शालीन बच्चे की तरह दर्शक हर चीज़ निगल लेगा। वो भी बगैर पानी के? हुंह..।

मिक्स्ड डबल्स और भेजा फ्राई फिल्मों की कामयाबी के बाद रजत कपूर ने मान लिया कि अलद क़िस्म की फिल्मों के नाम पर उनके पास दर्शकों का एक समूह मौजूद है। जनाब यह सोच तो मिथ्या ही है।

बौद्दिकता के नाम पर कचरा फिल्म देखना एक अलग अनुभव होता है। शुरु में लगा कि अंडरवर्ल्ड को रजत ने किसी और एंगल से पकडा होगा। नसीर और सौरभ की मौजूदगी से यह आशा और बढ़ गई थी। लेकन दोनों के लिए ही इस फिल्म में कोई स्कोप नहीं था। गच्चा तो कल्लू मामा ने भी दे दिया, अपनी तरफ से एक्टिंग में कोई जान डालने की जरूरत न तो नसीर न कल्लू मामा ने महसूस की। अगर थोड़ी भी मलाई जमाई है तो रणवीर शौरी और बृजेंद्र काला ने। इस फिल्म पर इससे ज्यादा बात करने की यह फिल्म योग्य नहीं।

बाकी जगत तो मिथ्या है ही। रजत अगर दर्शकों की उम्मीद करते हैं तो उनकी यह उम्मीद भी मिथ्या ही होगी।

1 comment:

अभय तिवारी said...

बड़े गुस्ताख हैं आप! लेकिन हम भी कम नहीं.. देख कर ही आयेंगे..