Thursday, June 7, 2012

सुनो! मृगांकाः रौशनदान

तुम्हारा नाम क्या है...? अभिजीत ने पूछा था। उसी सवाल के दौरान उसे मलाहिन मृगांका जैसी लग गई थी। अभिजीत उसके बाद खयालों में उतराने लगा था...क्या मैं पागल हो रहा हूं।

वह मलाहिन (मल्लाहिन) ठठाकर हंस पड़ी, "नाम..हमारा कोई नाम नहीं होता..घरवाले गामवाली कहते हैं..बच्चे माई कहते हैं, और बच्चे का बाप बच्चे की माई कहकर बुलाता है। नाम बचा कहां...?"

'लेकिन कोई तो होगा शादी से पहले का..'
'हां है ना.. हराही..'

'हराही.. औरत ने जोर देकर कहा। धूप की तेज़ रौशनी में उसका गहरा रंग और दिपदिपा गया। पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक आई थी। मोती जैसी चमकती हुई। मंत्री ने कड़क कर आदेश दिया,-- महाराज जो पूछ रहे हैं उसका ठीक-ठीक जवाब दो मलाहिन..

जी मालिक, मलाहिन का सिर झुक गया। कसा हुआ जवान शरीर। महाराज ने उसे गौर से देखा। एक नजर से देखा। लेकिन दरबारियों ने उसे देखा दूसरी नजर से। मंत्री शब्द तौल रहे थे, दरबार सजा था। दो नाईनें अभी आईँ थीं और महाराज के प्रौढ़ लेकिन युवा दीखते शरीर पर चंदन का उबटन रगड़ रही थीँ।

"बता दे हराही मलाहिन..जब चिलहौरिया (चील) तेरी टोकरी से मछली लेकर उड़ गई तो तू खिलखिलाकर हंस क्यों पड़ी..?"

"महाराज, उसे मछली लेकर उड़ते देखकर मैं नहीं हंसी थीं.."

"तो क्यों हंसी थी?"
"महाराज, उसने थोड़ी ही दूर जाकर मछली गिरा दिया था इसलिए हंसी थी"
"..
इसमें हंसी की क्या बात थी?"--मंत्री ने फिऱ दखल दिया।
"महाराजजान की छिमा.. नहीं बता सकती ये बात।"
"क्यों..?" महाराज की भृकुटियां तन गईं, मुखमंडल क्रोध से लाल हो गया। राजपुरोहित ने पल भर में स्थिति ताड़ ली। उन्होंने महाराज को कुछ संकेत किया। संभवतः शांति बरतने का, और हराही मलाहिन के पास गए।

"सुनो मलाहिन... जो कुछ भी तुम्हारा नाम है.." उनके स्वर में पर्याप्त नरमी थी। "... राजहठ और बाल हठ के बारे में तो तुमने सुना ही होगा..." राजपुरोहित सफेद कपडों और सिर पर लाल पाग के साथ भव्य दिख रहे थे। बिलकुल दिव्य..। मुंडित सिर, श्रीखंड चंदन से ललाट पर त्रिपुंड और उसमें सिंदूर का ठोप (बिंदी) एक संपूर्ण आकर्षक व्यक्तित्व..।

राजपुरोहित मलाहिन को इशारा कर किनारे ले गए।

"...देख मलाहिन, महाराज अब हठ पर उतर आए हैं। अगर तुम नहीं बताओगी तो उऩके एक आदेश से तुम्हारा सिर क़लम हो सकता है। तुम्हारा सारा परिवार संकट में आ जाएगा.."

राजपुरोहित समझाने की कोशिश कर रहे थे और उधर सारे दरबारी अदना-सी मलाहिन की हिम्मत पर हैरान थे। दो कौड़ी की मलाहिन और ज़िद ऐसी जैसे तिरहुत की पट्टमहिषी हो..। जिद भी किसलिए.. क्यों हंसी ये नहीं बताएगी। महाराज ने इन छोटे लोगों को इसतरह सिर पर बिठा लिया है। राजहित और राष्ट्रहित में कुछ भी निजी नहीं रहता..दरबारी भुनभुना रहे थे।

मलाहिन बोलती क्यो नहीं?

राजपुरोहित थोड़ी देर तक हराही मलाहिन से विमर्श करते रहे। अब तक राजा की उत्सुकता भी बढ़ गई थी। राजपुरोहित महाराज के पास आए, "महाराज। अभयदान की शर्त पर मलाहिन आपसे कुछ अर्ज़ करना चाहती है"-- राजा ने साधिकार हाथ उठाकर अभयदान दिया। मलाहिन विनीत आकर किनारे खड़ी हो गई,-" महाराज। अगर मैं सच बताती हूं तो मेरी जान जाएगी और नहीं बताती हूं तो राजकोप की भागीदार होऊँगी..."

राजा ने सहमति में सिर हिलाया। मलाहिन ने बेकरार सेनापति की ओर एक बंकिम दृष्टि फेंकी और राजा से कहा," महाराज। मैं अगर आपको अपनी हंसी का रहस्य बताती हूं तो मेरी तत्काल मृत्यु हो जाएगी। लेकिन तब मेरे छोटे-छोटे बच्चों का क्या होगा...?"

"तुम्हारे बाल-बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी राज्य की होगी। लेकिन तुम फौरन से पहले अपनी हंसी का कारण बताओ और वातावरण को ज्यादा रहस्यमय मत बनाओ"... राजा अधीर हो रहे थे। उस वक्त जब नाईनें मेरी देह पर तेल मल रही थीं..और तू मछली लेकर नीचे राह से गुजर रही थी। तो एक चिलहौरिया (चील) तुम्हारे छिट्टा से मछली लेकर उड़ गई.. ये तो तुम्हारे लिए साफ-साफ घाटा था लेकिन उसके बाद तुम ठठाकर हंस पडी..सो क्यों यह तत्काल मुझे बताओ..."

दिल्ली, एक न्यूज़ चैनल का दफ्तर, शाम सात बजे...

मुझे बताओ कि इस सीरीज़ ब्लास्ट के लिए एंकर कौन है? तकरीबन गुस्से में फ्रेंच कट दाढ़ी वाले एडिटर-इन-चीफ ने पूछा। आउटपुट तैयार बैठा था। दिल्ली में सात जगहों पर ब्लास्ट हुआ है। अभी एक नई एंकर है, जो शुक्र ग्रह के सूर्य के सामने से आने वाले ग्रहण जैसी परिस्थिति पर आधे घंटे का विशेष कर रही है।

वो संभाल नहीं पाएगी। आज भारत की 12वीं योजना पर हमने बात करने के लिए प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार की एडिटर को बुलाया था, उसी को गेस्ट में बिठा लेना।

सर वो बोल पाएगी?--संशय में पड़े प्रोड्यूसर ने पूछा।
जब तक हमारे रिपोर्टर घटना स्थल पर नही पहुंच जाते, तबतक उनसे बात करते रहो। तब तक पुलिस कमिश्नर वगैरह को लाईनअप करो। पुलित्जर मिला है इन एडिटर साहिबा को...बोल जाएगी। ठीक नहीं बोला, तो आधे घंटे बाद बदल देंगे। पॉलिटिकल पार्टियों के रिएक्शन लो, होम मिनिस्टर की बाईट की कोशिश करो...

यस सर, असाइऩमेंट से आज्ञाकारी आवाज आई।
प्रोड्यूसर ने फिर पूछा, सर एंकर किसको लें।

मृगांका को ले लो। अभी उससे बेहतर एंकर हमारे पास नहीं है। उसे इऩ सब मामलों की बेहतर समझ भी है।

प्रोड्यूसर भुनभुनाने लगा। स्साला छह महीने पहले विदेश से आई है, आते ही खोपड़ी पर बैठ गई। दो-चार पुरस्कार जीत लिए, दो चार हिट प्रोग्राम ठोक दिए, बन गई स्टार। हुंह...।

आउटपुट हेड गया नहीं था...कुछ कहा तुमने तिवारी?

नो सर
अच्छा है, जाओ जल्दी..। हरी-अप।

ब्रकिंग की पट्टियां फुल स्क्रीन पर छा गई थीं...दिल्ली में सात ब्लास्ट। थोड़े बहुत विजुअल भी आ गए थे।


दरभंगा, बेला मोड़ के पास, शाम सात बजकर दस मिनट...

हराही मलाहिन के साथ चल रहा अभिजीत सिगरेट पीने के लिए जेब टटोलने लगा। देखा, तो उसके पॉकेट में लाइटर नदारद था..पास की दुकान पर माचिस लेने गया तो वहां मशहूर चैनल की लाल पट्टी पर सीरीज ब्लास्ट की खबरें आ रही थीं।

वह रुक गया, पूरे स्क्रीन पर शब्द छाए थे, तस्वीरें नहीं थी अभी। लेकिन आवाज़ उसे बहुत जानी पहचानी लगी। थोड़ी देर बाद स्क्रीन पर एंकर नमूदार हुई तो अभिजीत एकदम से चौंक ही गया। मृगांका....

दुकान वाले ने कहा, हां सर, मृगांका है। नई है। छह महीने से आ रही है टीवी पर, लेकिन जबर्दस्त है।

अभिजीत ने मलाहिन को थोडा़ इंतजार करने को कहा, वह कुछ देर और मृगांका को देख लेना चाहता था। इतने महीने, बल्कि साल गुज़र गए...मृगांका कहां बदली है।

मृगांका, उफ़...मृगांका।

4 comments:

Anonymous said...

कहानी ने लय पकड़ी......मृगांका की धमाकेदार एंट्री... अभिजीत की मृगांका अब सामने है.....ख्वाबों से निकलकर....जैसे जिंदगी को जीने की नई वजह मिल गई हो...

sushant jha said...

तुमने हराही और मृगांका की कहानी में जो तार जोरड़ने की कोशिश की है या फ्लैश में लाने की कोशिश की है वो लाजवाब है। दरभंगा का हराही पोखर याद आ गया जो उसी हराही के नाम पर बना है। साधुवाद।

प्रवीण पाण्डेय said...

दुनिया के पटल पर चित्रित मृगांका की कहानी।

दीपक बाबा said...

भूत ओर वर्तमान कहीं न कहीं टकरा ही जाते हैं,


रोचक.