Thursday, November 12, 2015

आत्मदाह की किसान की फरियाद

आजकल हम छींकते भी हैं तो उसमे बिहार के चुनाव का शोर-सा सुनाई देता है। कसम कलकत्ते की, नीतीश-लालू के महागठबंधन और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने इस दफा घोषणापत्रों की बजाय विज़न डॉक्युमेंट्स जारी किए हैं। घोषणापत्र का फ़ैशन पुराना पड़ चुका है और मैनिफेस्टो कम्युनिस्टी लफ्ज़ मालूम पड़ता है। विज़न डाक्युमेंट सही है। नया है। चलेगा।

दोनों विज़न डॉक्युमेंट्स में किसानों के लिए कुछ कहा गया है। उस कुछ में से खास यह है कि कृषि के लिए अलग से बजट तैयार किया जाएगा। ठीक है। अलग से बजट तैयार करने वाले कर्नाटक में ही किसानों का क्या भला हो गया। बिहार में भी अलग से बजट पेश कीजिएगा। वैसे, सनद रहे कि बिहार के किसान आत्महत्या नहीं करते हैं। तमाम परिस्थितियां है आत्महत्या के मुफीद, लेकिन ढीठों की तरह जिए जाते हैं। ईंट ढोते हुए जिंदगी गुजार देते हैं, लेकिन आत्महत्या नहीं कर पाते।

आमतौर पर किसान आत्महत्याओं की खबरों में हम उम्मीद करते हैं कि यह खबर बुंदेलखंड या विदर्भ से होगी। या फिर आजकल आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बंगाल से भी आत्महत्या की खबरें आऩे लगी हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश आत्महत्या के मानक पर मुझे लगता था कि थोड़ा संपन्न है।

लेकिन, क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश, क्या मेवात, क्या बुंदेलखंड और क्या विदर्भ, देश भर में किसानों की हालत बदतर ही होती जा रही है। मुज़फ़्फ़रनगर से थोड़ी ही दूरी पर है शामली ज़िला। वहीं याहियापुर के दलित किसान हैं, चंदन सिंह।

चंदन सिंह ने भारत के राष्ट्रपति को अर्ज़ी भेजी कि उन्हें सपरिवार आत्मदाह की अनुमति दी जाए। बुंदेलखंड के उलट याहियापुर के इन किसान चंदन सिंह की आत्महत्या की कोशिश की एक वजह कुदरत नहीं है।

चंदन सिंह गरीबी और तंत्र से हलकान हैं।

हुआ यूं कि सन् 1985 में ट्यूब वैल लगाने के लिए चंदन सिंह मादी ने भारतीय स्टेट बैंक से 10,000 रूपये कर्ज़ लिए। वो कर्ज़ मर्ज़ बन गया। उस रकम में से चार किस्तों में चंदन सिंह ने 5,700 रुपये का कर्ज़ चुका भी दिया था।

लेकिन, इसी वक्त केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बन गई। यूपी में मुलायम मुख्यमंत्री बने। सरकार ने ऐलान किया कि दस हज़ार रूपये से कम के सार कृषि ऋणों की आम माफ़ी की जाएगी। चंदन सिंह का बुरा वक़्त वहीं से शुरू हुआ।

चंदन सिंह को लगा कि कर्ज माफी में उनका नाम भी आएगा। चंदन सिंह याद करते हुए बताने लगते हैं, कि किसतरह बैंक के लोगों ने उनसे दो हजा़र रूपये घूस के लिए मांगे थे। घूंघट की आड़ से उनकी पत्नी बताती हैं कि गांव का अमीन भी शामिल था। लेकिन, बहुत हाथ पैर मारने के बाद भी चंदन सिंह 700 रूपये ही जुगाड़ पाए।

जाहिर है, उनका नाम कर्ज माफी की लिस्ट में नहीं आ पाया।

चंदन सिंह इसके बाद किस्तें चुकाने में नाकाम रहे तो पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई। चौदह दिन तक जेल में भी बंद रहे। अनपढ़ चंदन सिंह को लगा कि जेल जाने से शायद कर्ज़ न चुकाना पड़े आगे।

लेकिन, अगले तीन साल तक कोई ख़बर नहीं आई।

सन् 1996 में, बैंक ने उनके 21 बीघे ज़मीन की नीलामी की सूचना उन्हें दी तो वो सन्न रह गए। फिर शुरू हुआ गरीबी का चक्र। कर्ज़ की रकम बढ़कर बीस हज़ारतक पहुच गई। 21 बीघे ज़मीन महज 90,000 रूपये में नीलाम कर दी गई।

भारतीय किसान यूनियन के स्थानीय नेता योगेन्द्र सिंह बताते है कि आत्महत्या के लिए गुहार का फ़ैसला बिलकुल सही है। अगर चंदन सिंह की जमीन उसे वापस ही नहीं मिली तो इसके 13 लोगों के परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा। ये क्या, इसके साथ तो हमें भी मरना होगा।'

चंदन सिंह की पत्नी भी कहती है, जमीन न रही तो बच्चे फकीरी करेंगे, फकीरी से तो अच्छा कि मर ही जाएं। गला रूंध आता है। आंखों के कोर भींग आते हैं। मैं कैमरा मैन से कहता हूं, क्लोज अप बनाओ।

चंदन सिंह का परिवार अब दाने दाने को मोहताज है। बड़े बेटे ने निराशा में आकर आत्महत्या कर ली, बहू ने भी। चौदह साल की बेटी दो सला पहले, कुपोषण का शिकार होकर चल बसी।

चंदन सिंह दलित किसान हैं। लेकिन दलितों की नेता मायावती के वक्त में भी उनकी नहीं सुनी गई। कलेक्ट्रेट में ही उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की थी। पखवाड़े भर फिर जेल भी रह आए, लेकिन सुनवाई नहीं हुई।

बाद में कमिश्नर के दफ्तर से उन्हें सत्तर हज़ार रूपये (नीलामी के बाद उनके खाते में गई रकम) की वापसी पर ज़मीन कब्जे का आदेश मिला। उन्होंने वो रकम वापस भी कर दी। लेकिन सिवाय उसकी रसीद के कुछ हासिल नहीं हुआ। कमिश्नर का आदेश भी कागजो का पुलिंदा भर है।

अब चंदन सिंह अपने हाथों में मौत की फरियाद वाले हलफ़नामे लेकर खड़े हैं। सूरज तिरछा होकर पश्चिम में गोता का रहा है। सामने खेत में गेहूं की फसल एकदम हरी है। लेकिन चंदन सिंह का मादी की निगाहें खेत को हसरत भरी निगाहों से देख रही है।

सूरज की धूप...पीली है, बीमार-सी।

क्या चंदन सिंह की कहीं सुनी जाएगी? यह मेरा सवाल भी है और फरियाद भी।

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