Sunday, February 9, 2014

भोजपुरी को अश्लील किसने बनाया?

कॉमिडी नाइट्स विद कपिल देख रहा था। आज यानी 8 फरवरी के एपिसोड में भोजपुरी सिनेमा की तीन हिट शख्सियतें, मनोज तिवारी, रवि किशन और निरहुआ आए थे। यों कपिल शर्मा सबका मजाक बनाते हैं, लेकिन भोजपुरी को लेकर उनके मजाक-भाव में हास्य कम, एक किस्म का उपहास-भाव अधिक था। इस उपहास भाव को बारीकी से देखने की जरूरत है। कईयों को पता नहीं चला होगा, लेकिन मुझे खल गया।

कपिल शर्मा के शो में मजाक बहुतों का बनाया जाता है, कभी खलता नहीं क्योंकि वह कॉमिडी सर्कस की कॉमिडी की तरह सेक्स कॉमिडी या भोंडा नहीं होता। लेकिन, यही कपिल शर्मा जब मीका को बुलाते हैं, तो मीका प्राहजी के साथ सिद्धू को मिलाते हैं और खुद को उसमें जोड़कर पंजाबियत का गुणगान करते हैं। 

यही नहीं, सलमान या अजय देवगन या सोहेल खान को शो में बुलाने पर कपिल का व्यवहार अलग होता है। एक आदर भाव...हंसाते तो हैं कपिल तब भी, लेकिन संभल कर। 

कपिल शर्मा के शो का रेगलर दर्शक हूं, तकरीबन हर शो देखता हूं, इसलिए इस अंतर को बहुत बारीकी से देख पा रहा हूं।

कपिल शर्मा के मन में निरहुआ जैसे अदाकारों को लेकर संभवतया इसलिए अश्रद्धा का भाव था क्योंकि उनकी फिल्मों का बजट, कपिल शर्मा के शो इतना ही होता होगा। या फिर इसलिए क्योंकि भोजपुरी हिन्दी पट्टी के आर्थिक रूप से सबसे कमजोर तबके की भाषा है। लेकिन शायद कपिल शर्मा नहीं जानते हैंशायद तभी उन्होंने अपने शो में इसका जिक्र भी नहीं कियाकि मनोज तिवारी देश के एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जिनपर नीदरलैंड्स में डाक टिकट जारी हुआ है।

भोजपुरी को लेकर लोगों के मन में एक अश्लीलता की छवि है। यह सवाल मुझसे मेरे एक युवा संपादक मित्र ने भी किया। हालांकि महेश मिश्रा खुद यूपी से हैं, लेकिन भोजपुरी पर उनका सवाल था, और शायद जायज़ भी था। तब मैंने उन्हें बताया, कि भोजपुरी में अश्लीलता का पुट तो गुड्डू रंगीला जैसे बाजार के रसियों ने भरा है। वरना यह भाषा भिखारी ठाकुर की रवायत से फली-फूली है, जिन्होंने बिदेसिया जैसा लोकनाट्य दिया। इस भाषा में महेन्दर मिसर (महेन्द्र मिश्र) की परंपरा है, जिनकी गायन शैली से आज भी बिरहा गाए जाते हैं।

भाषा की छवि भी शायद बाजार ही तय करने लगा है, इसलिए अमिताभ ने अवधी को नायको की भाषा बना दिया वहीं, दक्षिण भारतीय फिल्मों की डबिंग में विलेन की आवाज़ें भोजपुरी में बदल जाती हैं। नायक खड़ी बोली बोलते हैं, विलेन भोजपुरी। एक फिल्म याद आ रही है (मिसाले सैकड़ो में हैं वैसे) राउडी राठौड़। जिसमें भी घटिया किस्म की भोजपुरी (क्योंकि खुद निर्देशक साउथ से हैं) बोलने वाला खलनायक पटना के पास किसी पहाड़ी जगह देवघर से हैं।

सवाल यही है कि क्या, मलयालम में सिर्फ अडूर गोपलाकृष्णन ही फिल्में बनाते हैं या वहां भी शकीला का बाज़ार पर कब्जा है, क्या बांगला में सिर्फ मृणाल सेन हैं या वहां भी प्रसेनजीत हैं क्या मराठी में सिर्फ श्वास बनती है या दादा कोंडके वहीं के हैं?

भोजपुरी को लेकर यह तो दूसरों का नज़रिया है, जिसे जबरिया बदला नहीं जा सकता। लेकिन भोजपुरी सिनेमा के आधार पर भोजपुरी भाषा के प्रति अपना दृष्टिकोण मत तय कीजिए। निश्चय ही, मराठी, मलयालम, कन्नड़ या बांगला में जैसा सिनेमा रचा जा रहा है, वैसा भोजपुरी में बना नहीं अभी तक। लेकिन भोजपुरी सिनेमा की उमर भी तो देखिए। क्या स्कूल के बच्चे की नीयत खुला छोड़ देने पर बंक मारने की नहीं होती?

इधर, भोजपुरी को लेकर जनमानस में बने नज़रिए की बात करें, तो यह आरोप सीधा गुड्डू रंगीला जैसे लोगों पर जाएगा, जिन्होंने फौरी फायदे के लिए भोजपुरी के लोकसंगीत  को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। होली के हुड़दंग में निश्चय़ ही कुछ मजाकिया और श्रृंगारिक लोकगीत हैं, लेकिन समाज में उसको मान्यता मिली है। उस कुदरती रंग में रासायनिक जहर मिला कर दाम कमाया जा रहा है। निरहुआ सटल रहे जैसे गाने अश्लीलता के आरोपों को पुष्ट करते हैं।

लेकिन, यह गलती भोजपुरी भाषा की नहीं है। यह गलती तो सिनेमा और बाजारू कैसेट उद्योग की है। कपिल शर्मा ने जिसतरह फिल्मों के नाम भोजपुरी में पूछे, कभी पंजाबी वालों से पूछा? कभी बांगला वालों से...और मराठी से?

कपिल शर्मा, मजाक करते और डिंपल वाले गालों के साथ आप बड़े मनमोहक दिखते हैं, टीवी पर दिखने वाला आपका परिवार भी अच्छा है। सिद्धू जी आप मजाक करते बड़े अच्छे दिखते हैं, लेकिन कृपया किसी भाषा को ऐसे अंदाज़ में न छेड़ें, जिसकी बारीकी को कोई महसूस कर जाए।


Thursday, February 6, 2014

धीरेन्द्र पुंडीर की एक ज़रूरी कविता

यह कविता सुशांत झा के माध्यम से मिली है, धीरेन्द पुंडीर की लिखी है, पढ़ा तो अच्छा लगा, शेयर करने का लोभ संवरण नहीं कर पाया--गुस्ताख

ताक़त में कुछ भी ग़लत नहीं होता।

मैं तुमको यहां नीचे खड़ा दिखता हूं,
नीचा नहीं हूं मैं यहां खड़ा होकर भी।

हां, मेरे फैसले अब मैं नहीं ले रहा,
लेकिन फ़ैसले ले रहे हैं जो,

उन्हें जानता हूं मैं।

मेरी ही कुछ उल्टी चालो ने,
यहां, 
ला पटका है मुझे

वरना तो कम नहीं थी
सत्ता के शतरंज की
मेरी समझ

मैंने कुछ ग़लतियां की,
कुछ छोटी, कुछ बड़ी

अपनो को धोखा दिया
अजनबियों को जी भर कर लूटा

बेसहारों को दोनों हाथों लपेटा
भीड़ में नारे लगाए, उनका भविष्य बेचते हुए
मौका मिलते ही धक्का दिया आगे वाले को

मैं समझता रहा,
ये बड़ी ग़लतियां की हैं मैने।

नहीं बदले शब्द
बॉस के कहने पर

हां कई बार झूठ तो लिखा
सच की ही तरह

लेकिन उसमें नुक्ते डाल दिए अपनी समझ से

वो जताते है ंऐसे जैसे
महज देह भर है लड़कियां, औरतें

चादर तौलिए और कपड़े बदलते हैं जैसे
ऐसे ही बदली जाती हैं औरतें

यह अच्छी बात नहीं है, कह बैठा कई बार मैं
हो सकता है ये उतना गलत नहीं होता

अगर मैंने कहा होता अकेले में
मैंने बक दिया भीड़ में

जिसकी इच्छा नहीं है
उसको नौकरी-तरक्की के नाम पर

बिस्तर पर बिछाना ठीक नहीं
सोचा ये छोटी गलतियां है मेरी
यूंतो सब कुछ ठीक करने की कोशिश की मैंने
अपने झूठ को नया समय
लालच को जरूरत, लूट को मजबूरी
बॉस के पैरों में लोटने को एक्सरसाईज कह कर छिपाया

हर किताब खरीदी मैंने
जो बड़े लोगों की शेल्फ में थी

फोन में थे ताकतवर लोगों के नाम-नंबर
समझ में ठीक था

ताकत की तुला के इशारे सही समझता था
हवा के बदलने से पहले बदल लेता था पाला

किस्मत के मारों को नाकारा
भीख मांगते लोगों को काहिल

भूख के खिलाफ आवाज उठाते आदमियों को
ढोंगी ग़द्दार विदेशी एजेंट लिख सकता था

खूबसूरत वंदना को बदल सकता था निंदा में
समझ में थोड़ी सी बस गड़बड़ हो गई

जिसे मैं समझता था बड़ी गलतियां वो तो गुण थे
जिसे समझता रहा छोटी
वो बड़े अवगुण थे

समझ के इस फेर से 
फिर गया मेरा समय

मैं फैसले देता था जिनके बारे में
उठाकर फेंक दिया गया मुझे उसी भीड़ में

समझ गया हूं मैं
हर वक्त हाथ चलने थे

दूसरों के गले पर और जेब पर
नारो और नींद दोनों में करनी थी

ताकत की पूजा
ताकत में कुछ भी गलत नहीं होता
ताकत से कुछ भी गलत नहीं होता।।