Friday, May 27, 2016

धीमी लेकिन सधी शुरूआत

याद रखिए आज 26 मई है। यह दिन नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की ताजपोश का दिन है। उम्मीदों से भरी एक सरकार बनी थी और इस सरकार को हर उस आदमी ने वोट दिया था, जो कांग्रेस गठजोड़ की सरकार से ऊब चुका था।

क्या यह वक्त पीछे झांककर देखने का है? बिलकुल। क्योंकि पहले दो सार किसी भी सरकार के लिए वह वक्त होता है जब वह कड़े फैसले लेकर आती है, आ सकती है। नरेन्द्र मोदी ने इस वक्त को भारत की छवि बेहतर करने में बिताया है। यह भी एक तरह का निवेश है।

पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहली यात्रा सबसे नजदीकी भूटान के साथ की थी, जिसको पहले की सरकारों ने शायद ही इतनी अहमियत कभी दी हो। मैं भी उस वक्त भूटान गया था और वहां की जनता ने जो गर्मजोशी दिखाई थी, उसका नज़ारा मैंने खुद देखा है।

भूटान हमारी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए एक प्रॉडक्शन हाउस की तरह हो गया है। आज की तारीख में अगर चीन के भ्रामक आंकड़ों को छोड़ दें तो भारत की ग्रोथ रेट पिछले साल के 7.2 फीसद की तुलना में इस साल 7.65 फीसद है। यानी अर्थव्यवस्था के तौर पर पूरी दुनिया भारत को यूं ही चमकीली जगह (ब्राइट स्पॉट) नहीं कह रही है। भारत में निवेश आज उच्चतम स्तर पर है जो सिर्फ इस वित्त वर्ष में करीब-करीब 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

सरकार बनने के साथ ही मोदी ने कई ऐसे अभियान चलाए जिनका असर शायद कभी मनरेगा या किसानों के कर्ज माफी की तरह लोकलुभावन नहीं होगा और शायद कभी उन्हें कभी वोटबटोरू अभियानों में भी नहीं गिना जाएगा। मिसाल के तौर पर, बेटी बचाओ अभियान से आपको क्या लगता है कि जनता मोदी के पक्ष में वोट देगी? या फिर स्वच्छता अभियान से?

यह बात और है कि स्वच्छ भारत अभियान को स्वयंसेवा के मोड से निकाल कर सांस्थानिक रूप देने की जरूरत है, लेकिन ऐसे कुछ अभियानों के ज़रिए मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपनी छवि एक सुधारक और एक अग्रसोची नेता के रूप में की है।

नरेन्द्र मोदी की बेटी बचाओ अभियान को मैं जरूर श्रेय देना चाहूंगा कि जिस हरियाणा में बेटियों को पैदा होने से पहले ही मारने में महारत थी, जहां बाल लिंगानुपात 834 था वहां दिसंबर 2015 में यह संख्या 903 हो गई है। हरियाणा में 12 जिले ऐसे हैं जहां लिंगानुपात 900 से अधिक है और उनमें से सिरसा में तो यह 999 है। आंकड़े शायद अविश्वसनीय लग रहे हैं लेकिन यह मनोहर लाल खट्टर सरकार का दावा है। फिर भी इस बात से इनकार नही है कि बेटी बचाओ अभियान के बाद बेटियों के प्रति समाज में एक बराबरी का भाव आना शुरू हो गया है।

मोदी विज्ञान भवन से अगर आईएएस प्रशिक्षुओं से बात करते हैं तो उनसे भविष्य के बारे में पूछते हैं—क्या ऐसा नहीं हो सकता कि .... या अगर वह किसानों के बारे में कहीं बात करते है कि वहां कहते हैं कि क्या किसानों के लिए किसी अच्छी बीमा योजना नहीं बनाई जा सकती...? और फिर आनन-फानन में योजना बनती है।

यकीनन, प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना और प्रधानमंत्री सिंचाई योजना गांवों की तस्वीर बदलने में कामयाब हो सकते हैं। मैं तो मुद्रा योजना की भी तारीफ करना चाहूंगा जिसमें देश के कस्बों और गांवों से उद्यमी खड़े करने की सोच छिपी है। यह गुजरात से आया हुआ कोई नेता सोच सकता था, जहां कारोबार लोगों को घुट्टी में पिलाई जाती है।

छोटे और मंझोले उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। सड़को के मामले में बहुत अच्छा काम किया जा रहा है। गांवो तक बिजली पहुंचाने के मामले में 18000 गांवो के लिए 1000 दिनों का लक्ष्य तय करके मोदी ने अपने नौकरशाहों को टारगेट देना शुरू किया है।

हालांकि सरकारी विज्ञापनों में जहां देश की तस्वीर सुनहरी दिखाई जाती है, वह तो मैं नहीं कहूंगा, लेकिन यूपीए-2 से तुलना की जाए तो मोदी सरकार का दो साल का कामकाज उम्दा लगता है। खासकर, दो साल के दौरान वित्तीय भ्रष्टाचार का कोई आरोप मोदी सरकार की टीम के किसी भी सदस्य पर नहीं लगा। असल में, खुद मोदी जब आगे बढ़कर लगाम को हाथ में लिए हुए हैं तो उनकी टीम को काम करना ही होता है।

मोदी ने दो साल पूरे किए हैं और उनका निर्णय वाला निवेश अधिकतर ऐसे मामलों में हुए हैं जिनके नतीजे आने में देर लगेगी। लेकिन कारोबार को आसान बनाकर नरेन्द्र मोदी ने एक बेहतर कल की थोड़ी धीमी लेकिन सधी हुई शुरूआत दी है। नतीजे आने में देर लगेगी, और उसके लिए हम सब उंगलियां क्रॉस करके बैठे हैं।

मंजीत ठाकुर

Sunday, May 22, 2016

अम्मा और दीदी और बीजेपी

विधानसभा चुनावों के नतीजे आए। एक्जिट पोल वालों ने तकरीबन सब बता दिया था। तमिलनाडु में किसी को पता नहीं था कि अम्मां दोबारा आएंगी। किसी को इल्म भी नहीं था कि पोएस गार्डन में लगातार दो नतीजों के बाद आतिशबाजी होगी।

ममता बनर्जी, सर्वानंद सोनोवाल, वी एस अच्युतानंदन, सबके बारे में एक्जिट पोल वालों ने सही बता दिया। अम्मां के बारे में चूक गए।

नतीजों पर जश्न मनाने के कुछेक दिन और रहेंगे लेकिन बात उस चुनौती की होगी, जो इस बड़ी जीत के साथ आई है।

ममता बनर्जी दोबारा सत्ता में ऐसे धमाकेदार वापसी करने वाली शायद पहली महिला मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनके लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी। चुनौती उन सर्वानंद सोनोवाल के लिए भी कम नहीं होगी, जो जीत तो गए हैं लेकिन उनके साथी हेमंत विस्व सरमा भी होंगे। भाजपी को असम में जिताने में विभिन्न कारकों के साथ हेमंत विस्व सरमा का बड़ा योगदान रहा है जो शायद तरूण गोगोई द्वारा गौरव गोगोई को आगे बढ़ाने वाले खानदानी राजनीति के खिलाफ कांग्रेस से निकले।

ममता बनर्जी ने चार दशक पहले सिद्धार्थ शंकर रे की अगुआई वाले कांग्रेस का रेकॉर्ड तोड़ा है। ममता ने अब पूरे बंगाल को जोड़ा फूल के रंग से रंग दिया है। लेकिन अब उन्हें चुनौतियों का भी सामना करना होगा। ममता बनर्जी अपने पहले कार्यकाल में सिंगूर का मुद्दा सुलझा पाने में नाकाम रही थीं। बंगाल में ठप होते उद्योग धंधे, कम होती नौकरियों का सवाल है और नारदा और सारदा ने भले ही उस चुनाव में कोई असर वोटरों के मनो-मस्तिष्क पर नहीं डाला हो। लेकिन, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना उनकी चुनौती होगी।

ममता बनर्जी को यह सुनिश्चित करना होगा कि जंगल महल में जो शांति उनके कार्यकाल में आई है, वह शांति न सिर्फ बरकरार रहे बल्कि उस इलाके में विकास की नई बयार बहे।

सुदूर दक्षिण में, केरल की लड़ाई में 93 साल के बुजुर्ग वी एस अच्युतानंदन ने इस बार कस कर खम ठोंका था और पी विजयन के साथ उनके पुराने विवाद शायद चुनावो से ऐन पहले थोड़ी देर के लिए भुला दिए गए थे। केरल में यूं भी वैकल्पिक यूडीएफ और एलडीएफ की सरकार बना करती है। वह ट्रेंड इस दफा भी बरकरार रहा और एलडीएफ की सरकार बनी।

लेकिन केरल में ही एक और नई बात हुई। वह थी बीजेपी को एक सीट मिलना। बीजेपी को बीडीजेएस नाम की एक संस्था का समर्थन हासिल था, जिसके अनुयायी है इझावा समुदाय के लोग। केरल मे इनकी आबादी तकरीबन 28 फीसद है। इनके समर्थन ने केरल में बीजेपी का खाता खुलने में मदद की। इसके दूरगामी परिणाम होंगे यह लिख लिया जाए, ताकि सनद रहे।

तमिलनाडु में अम्मां की जीत एक नया इतिहास लिखने के लिए मजबूर करती है। अम्मां के राजनीतिक गुरू रहे हैं एम जी रामचंद्रन। एमजीआर ने 1977 से लेकर 1984 तक लगातार तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था। उसके बाद से कबी तमिलनाडु में कोई सत्तासीन पार्टी दोबारा सत्ता में नहीं आई।

करूणानिधि भी 93 साल के हो चुके हैं और मुमकिन है, और वह कह भी चुके हैं, कि यह उनका आखिरी चुनाव है। उनके उत्तराधिकारी एम के स्टालिन ने राहुल गांधी की तर्ज पर चुनाव प्रचार किया था। जींस टीशर्ट पहनी, दलितों के घर रात को रूके, खाना खाया। लेकिन कुछ काम न आया।

असम को छोड़कर केरल, बंगाल या तमिलनाडु, कहीं भी बीजेपी के लिए खोने लायक कुछ नहीं था। बिहार की हार के बाद जो पार्टी हतोत्साहित दिख रही थी वह बंगाल में तीन सीट केरल में एक सीट और असम की पूरी सत्ता पाकर फूली नहीं समा रही होगी।

कांग्रेस ने भले ही बंगाल में अपने सहयोगी से अधिक सीटे हासिल कर लीं हैं, लेकिन उसके पास 29 राज्यों में से महज 6 राज्यों की सत्ता रह गई है। इनमें भी बड़े राज्य के नाम पर सिर्फ कर्नाटक है।

शायद इसलिए नतीजे के दिन बीजेपी नेता कांग्रेसमुक्त भारत का जुमला उछालते हुए फूले नहीं समा रहे थे। लेकिन दिलचस्प होगा यह देखना कि इन चुनावों का उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य पर क्या असर होगा। क्या मायावती रणनीति बदलेंगी? क्या मायावती कांग्रेस का दामन थामेंगी? बिहार की हार के बाद असम की जीत ने बीजेपी में फिर से दम भर दिया है। जाहिर है, यूपी के चुनाव पहले से और भी ज्यादा दिलचस्प होने वाले हैं।

मंजीत ठाकुर

Monday, May 16, 2016

पानी का धंधा-पानी

जिस तरह से देश में पानी का संकट बढ़ता जा रहा है, वह खतरे की घंटी है। इससे पहले भी मैं इसी स्तंभ में कह चुका हूं कि पानी का आय़ात कोई बेहतर विकल्प नहीं है और हर इकोसिस्टम को अपने लिए पानी खुद बचाना चाहिए, और वहां रहने वाले लोगों को पानी की मात्रा के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना चाहिए।

फिर भी, जिस तेज़ी से आबादी बढ़ी है और उसी तेज़ी से पानी कम हुआ। (क्योंकि हम ने पानी बचाना नहीं सीखा) जैसे दृश्य बोलीविया में, चिली में हैं वैसे ही भारत के मराठवाड़ा-बुंदेलखंड में। ट्रेन से कब तक पानी पहुंचाते रहेंगे आप?

अभी स्थिति यह है कि आजादी के समय सन् 1947 में 6042 क्यूबिक मीटर पानी हर व्यक्ति के हिस्से का था। यह मात्रा सन् 2011 में घटकर 1545 क्यूबिक मीटर रह गया। आज की तारीख में, 1495 क्यूबिक मीटर पानी हर व्यक्ति के हिस्सा का है।

विकसित हो रहे देशों के कतार में भारत ही दुनिया का एक ऐसा देश है जहां पानी के प्रबंधन का कोई विचार नहीं है। कम से कम ठोस विचार तो नहीं ही है। इस्तेमाल में लाए जा चुके 90 फीसदी पानी को नदियों में उड़ेल दिया जाता है। सीधे शब्दों में आप इसे शहरों का सीवेज और उद्योगो का अवशिष्ट मानिए। पर्यावरण को और खुद नदी को कितना नुकसान होता है यह अलग मामला है। फिर कोई सरकार गंगा और यमुना को बचाने की कोशिशों में जुट जाती है।

आंकड़े बताते हैं कि देश की बरसात का 65 फीसदी पानी समुद्र में चला जाता है। खेती, खेती के लिए सिंचाई, सिंचाई में अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल, कीटनाशकों का छिड़काव यह सब मिलकर पीने लायक पानी को भी प्रदूषित कर देते हैं और उसे पीने लायक नहीं छोड़ते।

एक मिसाल है कानपुर का। गंगा नदी के ठीक किनारे, कानपुर में गंगा की डाउनस्ट्रीम में जाजमऊ से आगे शेखुपूर समेत दो दर्जन गांव ऐसे हैं जहां का पानी पीने लायक नहीं है।

पानी को लेकर भारत का रास्ता एक ऐसी दिशा में बढ़ रहा है, जहां खेती की अर्थव्यवस्था भी ढह जायेगी और थर्मल हो या हाइड्रो पावर सेक्टर भी बिजली पैदा करने लायक नहीं रह पाएगा।

लेकिन, ऐसा नहीं है कि इस घटके पानी से और खराब होते पानी से किसी को फायदा नहीं है। इस संकट में भी धंधा है। आप को एक विज्ञापन याद तो होगा, एक मशहूर कंपनी का ठंडा वैसी जगह पर भी मिलता है जिस वीराने में हैंडपंप तक नहीं। जी हां, हैंड पंप हो न हो, बोतलबंद पानी हर जगह मिल जाएगा। इसमें वैसे बोतलबंद पानी निर्माता भी हैं जो नल का पानी भरकर आपको उसी कीमत पर देते हैं जिस पर बड़ी कंपनियां। बहरहाल, वो मुद्दा अलग है और उनकी औकात कोयले की खदान से साइकिल पर कोयला लाद कर ले भागे मजदूरो से अधिक नहीं।

आज की तारीख में बोतलबंद पानी का कारोबार डेढ़ सौ अरब का है। पानी का संकट बरकरार रहा या और बढ़ा (उम्मीद है कि बढ़ेगा ही) तो यह रकम भी 200 अरब पार कर जाएगी।

भारत जैसे देश में पानी का संकट मुनाफे के धंधे में बदलता जा रहा है। आज की तारीख में यही विकास की अविरल धारा है।

साल 2002 में नैशनल वॉटर पॉलिसी में सरकार ने पानी को निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया। इसके तहत जल संसाधन से जुड़े प्रोजेक्ट बनाने, उसके विकास और प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता खुला और उसके बाद पानी के बाज़ार में नफा कमाने की होड़ लग गई।

आज भी साढ़े सात करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध ही नहीं है। विज्ञापन कहता है कि एक खास आरओ ही सबसे शुद्ध पानी देता है। लेकिन सच यह भी है बोतलबंद पानी में भी कीटनाशक मौजूद हैं। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की रिसर्च में सामने आई है।

वैसे भी भारत में मानकों से किसी का कोई लेना-देना होता नहीं। सुना है जॉनसन बेबी पाउडर में भी कुछ भारी धातु मिले हैं। बोतलबंद पानी के मामवे में पिछले साल मुंबई में 19 ऐसी कंपनियों पर रोक लगाई गई थी। सूखे के बीच ही एक और कड़वा सच कि एक लीटर बोतलबंद पानी तैयार करने में पांच लीटर पानी खर्च होता है।

इसलिए सूखे पर रणनीति तैयार खुद अपने स्तर पर तैयार कीजिए। खुद आगे बढ़िए, अपने पड़ोसी और गांववालों को आगे लाइए।

नौकरशाह जब यह तय करते हैं कि वह अलां जगह ट्रेन से पानी भेजेंगे और फलां राज्य के नौकरशाह उसे लेने से मना कर देते हैं तो उस फैसले की घड़ी में उनके सामने बोतलबंद पानी ही होता है।



मंजीत ठाकुर

Monday, May 9, 2016

हेलिकॉप्टर घोटाला तो चिंदीचोरी है जनाब!

अच्छा, मेरे प्यारे पाठकों, आप तो अखबार पढ़ते ही होंगे। अखबार न पढ़ते हों, तो टीवी देखते ही होंगे क्योंकि यह एक ऐसा काम है जिसके बिना गुजारा नहीं अपने देश में। खबरों में चीख-चीखकर बताया जा रहा है कि देश के सबसे कुलीन व्यक्तियों के लिए पिछली सरकार ने हेलिकॉप्टर खरीदने का फरमान जारी किया था। अब हेलिकॉप्टर खरीदने की प्रक्रिया में घोटाला कर दिया गया।

अब सरकार के पास यह दस्तावेज़ हाथ लगे है कि इटली की खास कंपनी को ठेका देने के लिए हेलिकॉप्टर खरीद की जरूरी शर्तों, मसलन वह कितनी ऊंचाई तक उड़ सकता है, उसकी ऊंचाई कितनी होनी चाहिए, जैसी बातों में एक-एक करके छूट दी गई। फिर, खरीद के बाद कुछ ढाई सौ करोड़ रूपये की दलाली दी गई।

बताइए आप ही, नई बात है यह?

अब खरीद-फरोख्त के मामले में लोग दलाली नहीं खाएंगे तो क्या यज्ञ-हवन में खाएंगे? और दुनिया में बहुत सारे काम भविष्य सुरक्षित करने के लिए भी तो किए जाते हैं। कुछ लोग बचत करते हैं, कुछ बीमा करवाते हैं, कुछ अपने बेटे-बेटियों, नाती-पोतो के लिए घोटाले कर लेते हैं।

और सवाल भी कितनी रकम का? 3600 करोड़ रूपये के सौदे में महज 256 करोड़ रूपये?

यह तो सरासर नाइंसाफी है जनाब। इतने पैसे तो रेज़गारी के बराबर हैं। चिंदीचोरी जैसी बात है यह, और इस पर आप होहल्ला मचा रहे हैं। शराफत तो छू भी नहीं गई आपको! मधु कोड़ा को देखिए, उन पर 4000 करोड़ के घोटाले का आरोप है, लालू प्रसाद का चारा घोटाला तक 800 करोड़ का था।

ज़रा तुलना कीजिए। कुछ आंकड़े बता रहा हूं। आजादी के साठ बरस हुए अपने देश के, और तब से लेकर आज तक, भ्रष्टाचार की भेंट हुई रकम है, 462 बिलियन डॉलर। जी, यह रकम डॉलर में है। चूंकि हम हर बात पश्चिम से उधार लेते हैं, सो यह आंकड़ा भी उधर से ही है।

वॉशिंगटन की ग्लोबल फाइनेंसियल इंटीग्रेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी के बाद से ही भ्रष्टाचार भारत की जड़ों में रहा है, जिसकी वजह से 462 बिलियन डॉलर यानी 30 लाख 95 हजार चार सौ करोड़ रूपये भारत के आर्थिक विकास से जुड़ नहीं पाए।

तो भ्रष्टाचार और घूसखोरी की हमारी इस अमूल्य विरासत पर, जो हमारी थाती रही है, आप सवाल खड़े कर रहे हैं? देखिए, मायावती जी को, उन्होंने राज्यसभा में कहा कि सीबीआई से जांच कराइए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में। कांग्रेस के शासन में सीबीआई जांच में सुप्रीम कोर्ट की निगहबानी की जरूरत नहीं थी। पता नहीं क्यों बीजेपी के शासन में है।

जब भी मैं भ्रष्टाचार की अपने देश की शानदार परंपरा का जिक्र करता हूं, हमेशा मुझे नेहरू दौर के जीप घोटाले से लेकर मूंदड़ा घोटाले, इंदिरा के दौर में मारुति घोटाले से लेकर तेल घोटाले, राजीव गांधी के दौर में बोफोर्स, सेंट किट्स, पीवी नरसिंह राव के दौर में शेयर घोटाला, चीनी घोटाला, सांसद घूसकांड, मनमोहन के दौर में टूजी से लेकर कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला याद आता है। यह एक ऐसी फेहरिस्त है, जिसको इतिहास हमेशा संदर्भ की तरह याद रखेगा।

संयोग देखिए, राज्यसभा में जब, बुधवार को, हेलिकॉप्टर घोटाले पर चर्चा चल रही थी, उस वक्त आखिर में, विजय माल्या के इस्तीफे को मंजूर करने की घोषणा भी हुई। विजय नाम से याद आया, एक विजय था, जिसको ग्यारह मुल्कों की पुलिस खोज रही थी और दूसरा विजय है जिसको देश के बैंक प्रबंधक खोज रहे हैं।

बहरहाल, मेरा मानना है कि घोटालों पर संसद में चर्चा कराना टाइम खोटी करना है। आजादी के बाद से संसद में 322 घोटालों पर चर्चा हो चुकी है, नतीजा क्या निकला, मैं आज भी जान नहीं पाया हूं।

बड़ा ही दिलचस्प हो गया है मामला। किसने कितनी कमीशन खाई? क्या इसमें सोनिया गांधी का नाम है? राज्यसभा में बहस हो रही थी और सारे बुढाए खुर्राट नेता मौजूद थे। क्यों न रहें, मामला पैसे का था, क्यों न रहेंगे? कोई किसान आत्महत्या पर बहस हो रही थी क्या, कि उनके आने-न-आने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

यकीन मानिए, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस देश में 400 लोगों के पास चार्टड विमान हैं, 2985 परिवार अरबपति से भी अधिक हैं, देश के किसानों पर ढाई हज़ार करोड़ का कर्ज है और वह आत्महत्या करते हैं तो देश के 6 हजार उद्योगपतियों ने सवा लाख करोड़ का कर्ज ले रखा है। उनमें से कोई आत्महत्या नहीं करता।

पाठकों, घोटाले हुए हैं। यकीनन हुए हैं। इटली की अदालत में साबित हुआ है कि घूस दिया गया है। यह पता नहीं है कि लिया किसने है? और पता चल भी जाए तो क्या होगा? एक मिसाल भर देना चाहता हूं, बिहार नाम के राज्य में लालू चारा घोटाले में दोषी साबित हुए। जेल गए। चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन उनका बेटा राज्य का उप-मुख्यमंत्री है और वह खुद किंगमेकर।

संविधान और न्यायपालिका पर भरोसा रखिए। बाकी जो है सो तो हइए है।

मंजीत ठाकुर

Sunday, May 8, 2016

इक शहर की हसरतें- मेरा मधुपुर

"मैं इक शहर हूं
मेरी भी कुछ हसरतें हैं
कभी मुझसे भी पूछकर तो देखो
कि मैं चाहता क्या हूं !"
----(उत्तम पीयूष)

क्या मधुपुर उस तांगेगाडी की तरह नहीं है जो हमारे कहने पर हांका जाता है पर न तो हम गाडीवान की इच्छाएं जान पाते हैं और न गाडी खींचने वाले घोडे की ख्वाहिशें ही समझ पाते हैं।

आज पता नहीं क्यों ऐसा लगने लगा है कि फिर से एक ऐसी पीढी -एक ऐसा जेनरेशन आया है जो मधुपुर की संवेदनाओं से बावस्ता है।फिक्र है मधुपुर की।आये दिन मैं देखता हूं कि मेरे कई नौजवान दोस्त अपनी चिन्ताएं,अपना प्यार और अपनी जिग्यासाएं जो मधुपुर से जुडी होती हैं -वे पोस्ट करते रहते हैं।यह अच्छा शगुन है इजहार ए इश्क का।यह शुभ लक्षण है मित्रो।

मधुपुर को लेकर यदि कोई शहरी भावुक न हो, इमोशनल न हो तो चिंता होती है। पर यह भावुकता महज किसी आरोप-प्रत्यारोप के लिए नहीं, मधुपुर के हाल-ए-दिल को अहसास करने के लिए हो तो बेहतर होगा। हमारी चिन्ताओं का रेंज सदियों का हो तभी कुछ नया गढा जा सकेगा।आपको शायद पता हो कि हमारे इंजीनियर्स जब नदियों पर पुल बनाते हैं तो यह भी आकलन करते हैं कि इस नदी में सौ साल में कब ,कितना, किस हाईट तक पानी आया था और आगे के दशकों में इसकी क्या संभावनाएं हैं।

मधुपुर को गढने /बनाने वालों ने भी मधुपुर को पहले अपने तसव्वुर में बसाया था,ख्वाबों में संजोया था ।एक चालू विग्यापन की तर्ज पर कहें तो-"यूं ही नहीं मैं मधुपुर हो जाता हूं।"

द मेकिंग आफ मधुपुर की कथा जब जब समय मिला आप दोस्तों से शेयर करता जाऊंगा। पर, इस वक्त मैं चाहता हूं कि हम सभी जो मधुपुरी हैं और अपने अपने तरह से अपनी 'मधुपुरियत ' की फिक्र करते हैं,जगह जगह चाय की चुस्कियों के साथ चिन्ता करते हैं-कुछ बेहतर करना चाहते हैं,अपने शहर को सुन्दर ,हसीन और आत्मीय बनते देखना चाहते हैं -कुछ रचनात्मक -कुछ क्रियेटिव करना चाहते हैं तो थोडा करीब आईए -अरे एकदम पास। अरे हां,मनोज जी,मंडल जी,यादव जी या स्टेशन की इस्पेशल चाय पिला रहा भाई पर क़रीब तो आईए।एक बात बोलूं ?? अपने शहर से अकेले में पूछिए -वह आपके कान में कुछ कहना चाह रहा।इसीलिए तो कह रहे जरा करीब आईए।यह करीब होना भी जरूरी है।

मधुपुर शहर कह रहा जरा धीमी जुबान से ही सही -पर कह रहा-"भईया। एक ठो हमारा भी "जन्मदिन" मना दो न। कितना अच्छा लगता है जब सबका "हैप्पी बर्थ डे"मनता है।पार्टी होती है,खुशियां आती है,लोग बधाईयां देते हैं और गिफ्ट भी देते हैं।मुझे भी मन करता है अपने जन्म का केक काटूं और आपलोगों को खिलाऊं।"
लीजिए,गरमागरम चाय भी आ गयी।मुझे लगता है शहर ए मधुपुर की बात सुननी /समझनी चाहिए।वो जो जिन्दा है जमाने से हमारी खिदमत में /उसके लिए कुछ ऐसा करें यह तो फर्ज है।

मधुपुर का जन्मदिन मनाना दरअसल मधुपुर का पुनर्उद्भव जैसा कुछ होगा।हम मधुपुर के इतिहास से जुडेंगे,उसे महसूस करैंगे और इतिहास को आने वाली नस्लों में रोपैंगे।यह दिन मधुपुर का होगा।मधुपुर के प्रत्येक नागरिक का होगा।सब खुश होंगे और सब अपने अपने तरीके से कुछ न कुछ कंट्रीब्यूट करैंगे।यह हम सबका उत्सव होगा।

जो इतिहास में था उस चेतना,उस संवेदना,उस जज्बात का यह "नया जन्मदिन"होगा।

--उत्तम कुमार पीयूष