Tuesday, March 31, 2009

जोरा-जोरी चने के खेत में

हमने बहुत से गाने सुने हैं, जिनमें चने के खेत में नायक-नायिका के बीच जोरा-जोरी होने की विशद चर्चा होती है। हिंदी फिल्मों में खेतों में फिल्माए गए गानों में यह ट्रेंड बहुत पॉपुलर रहा था। अभी भी है, लेकिन अब खेतों में प्यार मुहब्बत की पींगे बढ़ाने का काम भोजपुरी फिल्मों में ज्यादा ज़ोर-शोर से हो रहा है। उसी तर्ज पर जैसे की एक क़ॉन्डोम कंपनी कहीं भी, कभी भी की तर्ज पर प्रेम की पावनता को प्रचारित भी करती है।

या तो घर में जगह की खासी कमी होती है, या फिर खेतों में प्यार करने में ज्यादा एक्साइटमेंट महसूस होता हो, लेकिन फिल्मों में खेतो का इस्तेमाल प्यार के इजहार और उसके बाद की अंतरंग क्रिया को दिखाने या सुनाने के लिए धडल्ले से इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

एक बार फिर वापस लौटते हैं, जोरा-जोरी चने के खेत में पर। प्रेम जताने के डायरेक्ट एक्शन तरीकों पर बनी इस महान पारिवारिक चित्र में धकधकाधक गर्ल माधुरी कूल्हे मटकाती हुई सईयां के साथ चने के खेत में हुई जोरा-जोरी को महिमामंडित और वर्णित करती हैं। सखियां पूछती हैं फिर क्या हुआ.. फिर निर्देशक दर्शकों को बताता है कि जोरा-जोरी के बाद की हड़बड़ी में नायिका उल्टा लहंगा पहन कर घर वापस आती है।

अब जहां तक गांव से मेरा रिश्ता रहा है, मैं बिला शक मान सकता हूं कि गीतकार ने कभी गांव का भूले से भी दौरा नहीं किया और गीत लिखने में अपनी कल्पनाशीलता का जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल कर लिया है।

ठीक वैसे ही जैसे ग्रामीण विकास कवर करने वाली एक टीवी पत्रकार ने मुझे बताया कि धान पेड़ों पर लता है। धान के पेड़ कम से कम आम के पेड़ की तरह लंबे और मज़बूत होते हैं। मेरा जी चाहा कि या तो अपना सर पीट लूं, या कॉन्वेंट में पढ़ी उस अंग्रेजीदां बाला के नॉलेज पर तरस खाऊं, या जिसने भी रूरल डिवेलपमेंट की बीट उसे दी है, उसे पीट दूं। इनमें सबसे ज़्यादा आसान विकल्प अपना सिर पीट लेने वाला रहा और वो हम आज तक पीट रहे हैं।

बहरहाल, धान के पेड़ नहीं होते ये बात तो तय है। लेकिन चने के पौधे भी इतने लंबे नहीं होते कि उनके बीच घुस कर नायक-नायिका जोरा-जोरी कर सकें। हमें गीतकारों को बताना चाहिए कि ऐसे पवित्र कामों के लिए अरहर, गन्ने या फिर मक्के के खेत इस्तेमाल में लाए जाते या जा सकते हैं।

लेकिन गन्ने के खेत फिल्मों में मर्डर सीन के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं। उनमें हीरो के दोस्त की हत्या होती है। या फिर नायक की बहन बलात्कार की शिकार होती है। उसी खेत में हीरो-हीरोइन प्यार कैसे कर सकते हैं? उसके लिए तो नर्म-नाजुक चने का खेत ही मुफीद है।

हां, एक और बात फिल्मों में सरसों के खेतों का रोमांस के लिए शानदार इस्तेमाल हुआ है। लेकिन कई बार यश चोपड़ाई फिल्मों में ट्यूलिप के फूलों के खेत भी दिखते हैं। लेकिन आम आदमी ट्यूलिप नाम के फूल से अनजान है।

उसे यह सपनीला परियों के देश जैसा लगता है। अमिताभ जब रेखा के संग गलबहियां करते ट्यूलिप के खेत में कहते हैं कि ऐसे कैसे सिलसिले चले.. तो गाना हिट हो जाता है। अमिताभ का स्वेटर और रेखा का सलवार-सूट लोकप्रिय हो जाता है। ट्यूलिप के खेत लोगों के सपने में आने लगते हैं, लेकिन यह किसी हालैंड या स्विट्जरलैंड में हो सकता है। इंडिया में नहीं, भारत में तो कत्तई नहीं।

फिर कैमरे में शानदार कलर कॉम्बिनेशन के लिए सरसों के खेत आजमाए जाने लगे। लेकिन यह जभी अच्छा लगता है, जब पंजाब की कहानी है। क्योंकि सरसों के साग और मक्के दी रोटी पे तो पंजावियों का क़ॉपीराईट है। फिर दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के बाद सरसों के खेत का इस्तेमाल करना भी खतरे से खाली नही रहा। सीधे लगता है कि सीन डीडीएलजे से उठा या चुरा लिया गया है।

बहरहाल, मेरी अद्यतन जानकारी के मुताबिक, चने के पौधों की अधिकतम लंबाई डेढ फुट हो सकती है, उसमें ६ फुटा गबरू जवान या पांच फुटी नायिका लेटे तो भी दुनिया की कातिल निगाहों से छुपी नहीं रह सकती। इससे तो अच्छा हो कि लोगबाग सड़क के किनारे ही प्रेमालाप संपन्न कर लें। यह भी हो सकता है कि हमारे यशस्वी गीतकार गन्ने या मक्के के खेत की तुकबंदी न जोड़ पा रहे हों।


हमारी सलाह है राष्ट्रकवि समीर को कि हे राजन्, गन्ने और बन्ने का, मक्के और धक्के का तुक मिलाएं। अरहर की झाड़ी में उलझा दें नायिका की साड़ी फिर देखें गानों की लोकप्रियता। एक दो मिसाल दे दिया है.. क्या कहते हैं मुखड़ा भी दे दूं..

चलिए महाशय सुन ही लीजिए-

गांव में खेत, खेत में गन्ना, गोरी की कलाई मरोड़े अकेले में बन्ना,
या फिर,

कच्चे खेत की आड़, बगल में नदी की धार,

धार ने उगाए खेत में मक्का,

साजन पहुंच गए गोरी से मिलने

अकेले में देऽख के मार दिया धक्का..


एक और बानगी है-

हरे हरे खेत मे अरहर की झाडी़,

बालम से मिलने गई गोरी पर अटक गई साड़ी


अब ब़ॉलिवुड के बेहतरीन नाक में चिमटा लगा कर गाने वाले संगीतकारों-गायकों से यह गाना गवा लें। रेटिंग में चोटी पर शुमार होगा। बस ये आवेदन है कि हे गीतकारों, सुनने वालों को चने की झाड़ पर मत चढ़ाओ... गोरियों से नायक की जोरा जोरी कम से कम चने के खेत में मत करवाओ हमें बहुत शर्म आती है।

3 comments:

आलोक सिंह said...

वाह बहुत खूब विश्लेषण किया और गाना तो जबरजस्त हिट है
"हरे हरे खेत मे अरहर की झाडी
बालम से मिलने गई गोरी पर अटक गई साड़ी"

डॉ .अनुराग said...

फ़िलहाल तो हम गुलाल का "एरोप्लेन" सुन रहे है जी......

manika said...

hahahahaha.... bahut khoob vishleshan par sabse zyda zabardast aakhir mein likhe gaane rahe...