Saturday, May 30, 2020

लॉकडाउन ढीला हो रहा है, पूजास्थलों में अब खैरियत मांगने का वक्त है

लॉकडाउन अब डाउन हो रहा है. कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, पर लॉकडाउन से सरकार का मन भर गया है. 

भैया, सरकार ने कोशिश की. सरकार ने कोशिश की कि ढाई महीने का लॉकडाउन लगाकर कोरोना के प्रसार को रोका जाए. अब नहीं रुका तो क्या किया जाए? मुझसे आप कहेंगे कि ठाकुर, नाम तुम्हारा मंजीत है, तो मंजीत बावा की तरह पेंटिग करके दिखाओ. हमने भी ट्राई किया था, पर

पेंटिंग पूरी हुई तो लगा किसी ने कैनवास पर पान खाकर पीक कर दिया हो. पर सचाई यह है कि मैंने कोशिश की थी. मेरी कोशिश पर किसी को कोई शक नहीं हो सकता. यह बात और है कि मुझे कूची पकड़नी नहीं आती थी. जैसे, मुझे यह भी नहीं पता था तैल रंग पानी में नहीं घुलते, उसी तरह शायद सरकार को लॉकडाउन जैसी हालत में व्यवस्था करना नहीं आता था.
टेस्ट होंगे या नहीं, कितने होंगे. किट कहां से आएगी. चीन वाली नहीं, जापान वाली, जर्मनी वाली. आइसीएमआर ने तो इतनी बार गाइडलाइन बदले कि जीएसटी की गाइडलाइनें याद आ गईं. कसम कलकत्ते की, आंखें गीली हो गई. हाय रे मेरा जीएसटी, कैसा है रे तू....लॉकडाउन में किधर फंस गया रे तू...
ट्रेन चलेगी, या नहीं चलेगी. किराया लिया जाएगा या नहीं लिया जाएगा. राज्य कितना देंगे. मजदूर कितना देंगे. देंगे कि नहीं देंगे...इतनी गलतफहमी तो सरकार में होनी ही चाहिए. भाई, सरकार है कोई ठट्ठा थोड़ी है.
दारू बेचकर राजस्व कमाने का आइडिया तो अद्भुत था. मतलब बेमिसाल. भाई आया, पर देर से आया. लोगबाग फालतूफंड में छाती पीटते रहे मजदूर-मजदूर. भाई मजदूर तो मजदूर है, कोई कनिका कपूर थोड़ी हैं कि पांच बार टेस्ट कराया जाए?
मजदूरों का क्या है, सरकार क्या करे. गए क्यों थे भाई? मुंबई, नासिक, सूरत क्यों गए थे? सरकार ने निमंत्रण पत्र भिजवाया था क्या? फिर गए क्यों... गए तो वहीं रहो. देशहित में काम करो, थोड़ा पैदल चलो. देश के लिए जान कुर्बान करने वालो. थोड़ा पैदल ही चलकर जान दो.
अच्छा ये बताइए, सरकार शुरू से रेल चला देती, बस चला देती, तो देश को ज्योति की कहानी कैसे पता चलती? कैसे पता लगता कि देश में पिता को ढोकर गांव तक 1200 किमी साइकिल चलाने वाली लड़की की दास्तान? लॉकडाउन की वजह से ही न.
यह लॉकडाउन नहीं था, यह राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा थी.
मैं सिर्फ केंद्र सरकार की तारीफ नहीं कर रहा, मेरी तारीफ के ज़द में राज्य सरकारें भी हैं, जो अपने पूरे राज्य में खून पसीना बहाने वाले कुछेक लाख मजदूरों को दो जून खाना खिलाने लायक नहीं है. अब नेता कोई अपनी अंटी से तो निकाल कर नहीं देगा न. क्यों देगा भला! 

और सरकार को कलदार खर्च करने होंगे तो उसके लिए तमाम खर्चे हैं भाई. विधायकों के लिए स्कॉर्पियो खरीदना है, मंत्रियों के लिए हेलिकॉप्टर जुगाड़ना है, अपनी सरकार की उपलब्धियों को अखबार में भरना है. उस पैसे को दो टके के मजदूरों के लिए खर्चना कोई बुद्धिमानी थोड़ी है!
तो महाराज, 8 जून से खुलेंगे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे-गिरजे. वहां जाकर टेकिए मत्था. अपने और अपने परिवार के लिए कुशलक्षेम की प्रार्थना कीजिए. सरकार को जो करना था कर लिया. जहान डूब चुका है, अब जान जाने की बारी है.

Friday, May 15, 2020

देवघरः बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास और भूगोल भाग - 2

देवघरः बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास और भूगोल भाग - 2

बाबा बैद्यनाथ धाम यानी देवघर के श्रद्धा केंद्र बनने की और मानव शास्त्रीय जो ब्योरे हैं उनके बारे में बात की जाए, तो देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक रावणेश्वर महादेव का यह मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों महत्व का है. यहां से सुल्तानगंज करीबन 112 किलोमीटर है, जहां से गंगाजल लेकर कांवरिए सावन के महीने में शिवजी का जलाभिषेक करते हैं. दुनिया का यह सबसे लंबा मेला भी है. 

वैसे मिथिला के लोग सावन में जलाभिषेक करने नहीं आते, वे लोग भादों में आते हैं. ऐसा क्यों है इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे.

प्रसिद्ध इतिहासकार राजेंद्र लाल मित्रा, जिनके नाम पर देवघर के जिला स्कूल का नामकरण भी आर.मित्रा हाइस्कूल किया गया है और बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर है, ने 1873 में अपनी रिपोर्ट में देवघर के भूगोल का वर्णन करते हुए लिखा हैः

“यह एक पथरीले मैदान पर अवस्थित है, इसके ठीक उत्तर में एक छोटा-सा जंगल है, इसके पश्चिमोत्तर में एक छोटी सी पहाड़ी है और इसका नाम नंदन पहाड़ है. एक बड़ी पहाड़ी इससे करीब 5 मील पूर्व में है जिसको त्रिकूट पर्वत कहते हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा में जलमे और पथरू पहाड़ है, दक्षिण में फूलजोरी और दक्षिण-पश्चिम में दिघेरिया पहाड़ हैं. इन सबकी दूरी मंदिर से अलग-अलग है पर सब 12 मील की दूरी के भीतर हैं.”

हालांकि, आज के देवघर में बहुत कुछ बदल गया है और इस ब्योरे से मिलान करना चाहें तो आपको नंदन पहाड़ और त्रिकूट पर्वत के अलावा शायद ही कुछ मिलान हो सके, काहे कि सड़क और इमारतों ने भू संरचना को बदल कर रख दिया है.

हालांकि, जानकार लोगों ने बताया है कि मित्रा के ब्योरे मे थोड़ी तथ्यात्मक भूले भी हैं. मित्रा लिखते हैं कि देवघर के आसपास के सभी पहाड़ी इसके 12 मील की त्रिज्या के भीतर हैं, जबकि तथ्य यह है कि पथरड्डा और फुलजोरी पहाड़ियां शहर से 25 और 35 मील दूर हैं.

हां, मंदिर को लेकर मित्रा का विवरण सटीक है. मिसाल के तौर पर मित्रा का यह लिखना आज भी सही है कि
"बैद्यनाथ मंदिर शहर के ठीक बीचों-बीच है और यह एक अनियमित किस्म के चौकोर अहाते के भीतर है. इस परिसर के पूर्व दिशा में एक सड़क है, जो उत्तर से दक्षिण को जाती है और जो 226 फीट चौड़ी है, इसके दक्षिणी सिरे पर एक बड़े मेहराब के पास, ठीक उत्तर की तरफ हटकर एक दोमंजिला इमारत है जो संगीतकारों को रहने के लिए दिया जाता है. यह दरवाजा भी कुछ अधिक इस्तेमाल का नहीं है, क्योंकि इसका एक हिस्सा एकमंजिला इमारत की वजह से ब्लॉक हो गया है. दक्षिणी हिस्से में, जहां कई दुकानें हैं अहाते की लंबाई 224 फीट है. पश्चिम में लंबाई 215 फीट है और इसके बीच में एक छोटा दरवाजा है जो एक गली में खुलता है. पश्चिमोत्तर का बड़ा हिस्सा सरदार पंडा का आवास है, लेकिन पूर्वोत्तर की तरह एक बड़ा सा दरवाजा है, जिसके स्तंभ बहुत विशाल हैं. यही मंदिर का मुख्य दरवाजा है. सभी श्रद्धालुओं को इसी दरवाजे से अंदर जाने के लिए कहा जाता है. इस साइड की लंबाई 220 फीट है.’

बैद्यनाथ मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा 21 और भी मंदिर हैं जिनमें अलग-अलग देवी और देवताओं के विग्रह हैं. बैद्यनाथ मंदिर इस परिसर के केंद्र में है जिसका मुख पूर्व की तरफ है. अमूमन पुराने हिंदू मंदिरों के दरवाजे पूर्व की तरफ ही खुलते रहे हैं.

मुख्य मंदिर परिसर. फोटोः जोसेफ डेविड बेगलर, 1972-73 साभारः एएसआइ


मंदिर पत्थरों का बना है और इसकी ऊंचाई 72 फीट की है. इसकी सतह को चेक पैटर्न में उर्ध्वाधर और क्षैतिज रूप से काटा गया है. मंदिर का मुख्य गर्भगृह 15 फुट 2 इंच लंबा और 15 फुट चौड़ा है जिसका दरवाजा पूर्व की तरफ है.

इसके बाद एक द्वारमंडप है जिसकी छत नीची है और यब 35 फुट लंबा और 12 फुट चौड़ा है और यह दो हिस्सों में बंटा है. इसमें 4 स्तंभों की कतार है. कहा जाता है कि यह बाद में जोड़ा गया हिस्सा है. दूसरा द्वारमंडप या बारामदा थोड़ा छोटा है और इसे और भी बाद में बनाया गया.



बैद्यनाथ धाम परिसर का एक दूसरा मंदिर. फोटोः जोसेफ डेविड बेगलर. 1872-73 फोटो साभारः एएसआइ

गर्भगृह के अन्य तीन साइड खंभों वाले बारामदों से घिरे हैं. जिसमें ऐसे श्रद्धालु आकर टिकते हैं जो धरना देने आते हैं.

मंदिर में अपनी मन्नत मांगने के लिए लोग कई दिनों तक धरना देते हैं और यह बाबा बैद्यनाथ मंदिर की खास परंपरा है. गर्भगृह में काफी अंधेरा होता है और गर्भगृह के सामने का द्वारमंडप भी गर्भगृह जैसा ही है. जिसकी फर्श बैसाल्ट चट्टानों की बनी है.

गर्भगृह के प्रवेश द्वार के बाईं तरफ एक छोटा सी अनुकृति उकेरी हुई है. आप खोजेंगे तो पूरे मंदिर परिसर में आपको 12 ऐसी अनुकृतियां दिख जाएंगी. यही अनुकृतियां खासतौर पर बैद्यनाथ मंदिर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी के स्रोत हैं और इन्हीं के आधार पर पूरे संताल परगना के इतिहास की भी झलक मिलती है.

जारी...


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Joseph David Beglar c.1872-73 and forms part of the Archaeological Survey of India Collections.

Sunday, May 10, 2020

देवघरः बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास और भूगोल

देवघर के बाबा मंदिर का इतिहास-भूगोलः भाग एक

मेरे मधुपुर का जिला होता है देवघर. देवघर जिला तो बहुत बाद में बना है पर इसका इतिहास बेहद पुराना है. पहले यह संताल परगना का हिस्सा था और उससे भी पहले वीरभूम का. उसकी चर्चा आगे की किसी पोस्ट में करुंगा, पर अभी चर्चा देवघर की उन वजहों से, जिसका लिए यह धाम मशहूर है. बाबा बैद्यनाथ. महादेव के इस मंदिर की गिनती बारह ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. हालांकि, इससे मिलते जुलते नामों वाले शिवमंदिरों ने अलग दावा जताया है, मसलन महाराष्ट्र में वैद्यनाथ और उत्तराखंड में बैजनाथ महादेव ने. लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण तो रावणेश्वर बैद्यनाथ के पक्ष में ही जाते हैं.



देवघर के बाबा मंदिर का परिसर. फोटो सौजन्य कन्हैया श्रीवास्तव

इस लिहाज से, हालांकि मानव विज्ञानी अलग ढंग से इसकी व्याख्या करेंगे और शायद इतिहासकार अलग ढंग से. पर, जब हम देवघर और आसपास के इलाकों फैले तीर्थस्थानों की ठीक से, और बारीकी से विवेचना करेंगे तो इसमें इतिहास और मानव विज्ञान के साथ अलग-अलग दृष्टिकोणों को एकसाथ मिलाकर देखना होगा.

शायद देवघर की चर्चा करते समय, हमें भारत विज्ञानियों, प्राच्यशास्त्रियों और मूर्तिकला विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करना होगा. क्योंकि वे हमें हिंदू तीर्थों की महत्ता को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने का नजरिया प्रदान करते हैं. इनमें भारत विज्ञानी (इंडोलजिस्ट) और प्राच्यशास्त्री (ओरिएंटलिस्ट) खासतौर पर पौराणिक या लिखित उद्भव, इतिहास, मान्यताओं और मिथकों की तरफ ध्यान दिलाते हुए इसका ब्यौरा देते हैं. इसी तरह मूर्तिकला के विशेषज्ञ शिल्प शास्त्र की बारीकियों के जरिए कथासूत्र पकड़ने की कोशिश करते हैं.

पर जाहिर है मानव विज्ञानी बस्तियों की बसाहट और परंपराओं के बारे में लिखकर पड़ताल करते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि झारखंड के देवघर के बैद्यनाथ मंदिर के बारे में विभिन्न स्रोतों से (और कथाओं से) हासिल सूत्रों को इकट्ठा कर आपके सामने रखूं.

दिलचस्प यह होता है कि ऐसे तीर्थस्थलों के बारे में पढ़ते और लिखते समय आपको ऐसे सूत्र मिलते हैं कि आप इन केंद्रों को सभ्यता के विशद केंद्रों के बारे में जानते हैं. खासकर मेरा जुड़ाव देवघर से इसलिए भी अधिक रहा है क्योंकि तीसेक किलोमीटर दूर शहर मधुपुर मेरी जन्मस्थली है और देवघर का मंदिर हमारा साप्ताहिक आने-जाने का केंद्र रहा.

देवघर जैसे धार्मिक आस्था के केंद्रों की खासियत रही है कि इसने सदियों से लोगों को जाति, नस्ल, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक दूरी और भाषायी दूरियों से परे आसपास के लोगों को जोड़ने का काम किया है. एस. नारायण और एल.पी. विद्यार्थी जैसे मानव शास्त्रियों ने देवघर के पुण्य क्षेत्र को विभिन्न जोन, सब-जोन और खंडों में बांटा है. इसमें कई मंदिरों के समूह भी हैं. नारायण ने बैद्यनाथेश्वर क्षेत्र को दो सब-जोन में बांटा हैः बैद्यनाथ और बासुकीनाथ.

दोनों ही महादेव मंदिरों ने अपने आस-पास के इलाकों में अपने स्वतंत्र श्रद्धा तंत्र विकसित कर लिए हैं. परंतु जानने वाले जानते हैं कि इस इलाके में श्रद्धा के केंद्र हैं, इसमें तीसरा केंद्र अजगैवीनाथ हैं. इन इलाकों को पुनः सब-क्षेत्रों में बांटा जा सकता है. हालाकि विद्यार्थी के अध्ययन में इससे छोटे खंडों और मंदिर समूहों की भी चर्चा है. उनके अध्ययन में 1969-71 के बीच इस इलाके में 95 मंदिर समूह पाए गए हैं. अगर हम इस जोन में सुल्तानगंज को भी जोड़ लें तो मंदिर समूहों की संख्या और अधिक बढ़ जाएगी. हालांकि, कांवर यात्रा के मार्ग के हिसाब से वर्गीकरण किया जाए ( गंगातट पर सुलतानगंज (बिहार) से लेकर बाबाधाम और बासुकीनाथ तक) तो अलग मंदिर समूह और जोन उभरकर आएंगे.

सुल्तानगंज में गंगा का जल लेकर चले कांवरिया देवघर में वह जल चढ़ाते हैं और उनमें से कुछ लोग थोड़ा गंगाजल बचाकर बासुकीनाथ तक जाते हैं और वहां जाकर उनकी यात्रा पूरी होती है. इस संदर्भ में, यह मंदिर क्षेत्र सुल्तानगंज से बासुकीनाथ तक माना जा सकता है. हालांकि बैद्यनाथ, बासुकीनाथ और अजगैवीनाथ मंदिरों का अपना स्वतंत्र श्रद्धा क्षेत्र है पर उनको सांस्कृतिक दृष्टि से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि पौराणिक दृष्टि और सांस्कृतिक परंपराओं क लिहाज से यह एक जैसे ही हैं. सभी कांवरिया सुल्तानगंज (अजगैवीनाथ) से जल उठाते हैं और बैद्यनाथ और बासुकीनाथ पर उनको चढ़ाया जाता है.

पर यहां पर थोड़ा अंतर है. ऐसे श्रद्धालु जो बासुकीनाथ आते हैं उन्हें बैद्यनाथ जाना ही पड़ता है. पर बैद्यनाथ आने वाले बासुकीनाथ भी जाएं ऐसी कोई धार्मिक बाध्यता नहीं है. अगर भौगोलिक दृष्टि से बात करें तो इस पवित्र सर्किट में, बुढ़ै, काठीकुंड, चुटोनाथ (दुमका के पास), मालुती, पाथरोल, बस्ता पहाड़ और पथरगामा में योगिनी स्थान शामिल हैं. और इस पूरे सर्किट में बैद्यनाथ धाम देवघर का महादेव मंदिर केंद्रीय स्थान रखता है.




जारी...