Friday, October 16, 2015

फिर पत्तों की पाजेब बजी

महाराष्ट्र की पार्टी शिवसेना ने एक बार फिर से अपना फतवा जारी किया है। पहले वह फतवों का विरोध किया करती थी, अब वह फतवा जारी करती है। पहले वह क्रिकेट मैच के पहले पिच पर मोबिल डाल देती थी, विकेट को खराब कर देती थी। अब इस पार्टी को गानों पर फतवा जारी करना पड़ा। इस पार्टी ने मांसाहार पर बैन का विरोध किया था। अब यह पार्टी मुंबई में ग़ुलाम अली के गाने को बैन करना चाहती है।

बैन करना शिवसेना का शगल है। बहुत पहले इसने एक पत्रिका को, एक चित्रकार को, और कई फिल्मों को बैन किया है। बैन करने वाली इस पार्टी का एक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ भी है और एक फिल्म प्रभाग भी। इनको गाना तो पसंद है लेकिन पाकिस्तानी गायकों का गाना बिलकुल पसंद नहीं है।

इस पार्टी के सुप्रीमो पुराने और दिवगंत सुप्रीमो के पुत्र हैं। लेकिन यह पार्टी परिवारवाद का विरोध करती है। नए वाले सुप्रीमो के बेटे का भी राजतिलक होगा, ऐसा लोगों को अभी से लगता है। लेकिन पार्टी अभी भी परिवारवाद के खिलाफ है।

शिव सेना के नए वाले सुप्रीमो कमजोर हैं, ऐसा लोग मानते हैं। लेकिन जानकार उनके चचेरे भाई के मनसे को शिवसेना का वैचारिक प्रतिद्वन्द्वी मानते हैं। दोनों पार्टियों में बैन लगाने और हल्ला मचाने की भारी स्पर्धा है। लेकिन पार्टी के कमजोर कहे जाने वाले सुप्रीमो के पास एक फौज है, जिसको लोग शिवसेना कहते हैं। लोग उसे शिव की फौज नहीं कहते।

शिवसेना ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती जो उसकी बात नहीं मानती। दो सौ सालों की गुलामी के बाद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, ऐसा इतिहास की किताबें कहती हैं। लेकिन बाहर के लोगों को मुंबई नहीं आना चाहिए, ऐसा शिवसेना कहती है। महाराष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है और दुनिया के सभी बड़ी कंपनियों के दफ्तर हैं—ऐसा सरकारी वेबसाइट कहती है।

माइकल जैक्सन नामक एक महान गायक और नर्तक था। वह मराठी मानुष नहीं था। गैर-मराठी भी सम्मान के योग्य होते होते हैं,ऐसा भारत का संविधान कहता है। माइकल को महाराष्ट्र के मुंबई में बुलाया गया था। उसे शिव उद्योग सेना ने बुलाया था। शिव सेना को अमेरिकी गायकों से कोई उज्र नहीं है। पाकिस्तानियों से है।

तब के सुप्रीमो बाल ठाकरे को माइकल जैक्सन की नृत्यकला पसंद थी। विदेशों से लोग रोजाना मुंबई आते हैं ऐसा पर्यटन विभाग के आंकड़े कहते हैं। माइकल पहला ऐसा गैर-मराठी था जिसे बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र आने का न्योता दिया, ऐसा सभी कहते हैं। माइकल जैक्सन का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। माइकल को मराठी गीत नहीं याद थे। माइकल सुरक्षित अपने देश पहुंच गया था। ऐसा अखबारों की रिपोर्ट कहती है।

शिवसेना बंबई का नाम बदलकर मुंबई कराया। नामों का गलत उच्चारण शिवसेना को पसंद नहीं। शास्त्रों में भूल के लिए क्षमा करने को कहा गया है। शास्त्रों का मराठी अनुवाद अभी पूरा नहीं हुआ है। महाराष्ट्र के बाहर के लोग सुंदर नहीं होते, ऐसा शिव सेना कहती है। सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारत के लोगों ने बहुत कम बार खिताब जीता है, ऐसा गूगल कहता है। गैर-मराठियों को महाराष्ट्र से चले जाना चाहिए ऐसा शिव सेना कहती है।

कुछ लोग शिवसेना की बात आसानी से समझ लेते हैं। कुछ नहीं समझते। भारत में बात मनवाने के लिए समझाने के अलावा एक और तरीका भी इस्तेमाल किया जाता है। महात्मा गांधी इसे हिंसा कहते थे। तमिल लोग लुंगी पहनते हैं। शिव सेना को लुंगी पहनना पसंद नहीं। तमिलनाडु भारत गणराज्य का एक प्रदेश है। तमिलनाडु के लिए मुंबई से कई सीधी ट्रेने हैं।

भारत में पहली रेल महाराष्ट्र में चलाई गई थी। भारतीय रेल का नेटवर्क दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। बिहार और यूपी महाराष्ट्र से रेलमार्ग से जुड़ा है। शिवसेना वालों का सामान्य ज्ञान औसत से बेहतर है। उत्तर भारतीय गंदगी फैलाते हैं ऐसा शिवसेना कहती है। मुंबई के विकास में उनका भी योगदान है—ऐसा उत्तर भारतीय कहते हैं। मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है, ऐसा विश्व बैंक कहता है। मुंबा देवी के मंदिर के आसपास बसी एक बस्ती की किस्मत बनाने में उत्तर भारतीयों ने अपना खून-पसीना लगाया है, ऐसा गूगल में पड़े रिपोर्ट कहते हैं। यह रिपोर्ट अंग्रेजी में है।

बाल ठाकरे के पूर्वज बिहार से थे, ऐसा दिग्विजय सिंह ने कहा। दिग्विजय सिंह पढ़े-लिखे हैं ऐसा संसद की वेबसाइट पर छपी उनकी प्रोफाइल कहती है। दिग्विजय सिंह एक किताब रखते हैं। किताब बाल ठाकरे के पिताजी ने संपादित की थी। ठाकरे परिवार बिहार से मध्य प्रदेश होता महाराष्ट्र आया, ऐसा किताब कहती है। यह दुष्प्रचार है ऐसा शिवसेना कहती है। महाराष्ट्र के बाहर से हजारों लोग रोजाना रेलगाड़ी से मुंबई आते हैं। शिवसेना इस पर क्रोध करती है।

शिवसेना के एक भी सराहनीय कार्य की चर्चा गूगल पर नहीं है। गूगल का मालिक मराठी मानुष नहीं है।

Wednesday, October 7, 2015

और अब जीएम सरसों

जीएम मतलब जेनेटिकली मॉडिफाइड। इस शब्द के ज़रिए हम उस टर्म से बावस्ता होते हैं जिनके जीन में कुछ बदलाव लाकर उन्हें कीट प्रतिरोधी, सूखा प्रतिरोधी, लवणता प्रतिरोधी या अधिक उत्पादक बनाया जाता है। पिछले कई हफ़्तों से हमलोग लगातार बिहार में गठबंधनों की बातें करते आ रहे हैं। बिहार के यह चुनावी गठजोड़ भी आनुवंशिक अभियांत्रिकी से बनाए गए हैं। आप सीधी ज़बान में, जोड़-तोड़ मान लें। बिहार चुनाव पर एकरस बातें हो रही हैं। मन उकता गया है। वोटिंग होने से पहले ही चुनाव से जी उकता जाना लोकतंत्र के लिए अच्छे आसार नहीं हैं।

बहरहाल, मैं इस बार जीएम सरसों की बात करना चाह रहा हूं क्यों पर्यावरण और वन मंत्रालय जीएम सरसों की एक किस्म डीएमएच-11 के व्यावसायिक उत्पादन को अनुमति देने जा रही है। साल 2010 में मंत्रालय ने बीटी बैंगन के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था, नहीं तो बैंगन आनुवंशिक रूप से परिवर्तित पहली फसल होती।

जीएम सरसों के पक्ष में तर्क यही है कि देश को हर साल 60 हज़ार करोड़ रूपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। अगर सरसों का देशज उत्पादन बढ़ जाएगा तो आयात का भार कम होगा। लेकिन इस तर्क में एक झोल है। असल में, इतनी भारी मात्रा में आय़ात की एक बड़ी वजह आयात शुल्क का 300 फीसद से घटकर शून्य तक आना है।

तथ्य यह भी है कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान देश में तिलहन टेक्नॉलजी मिशन की शुरूआत हुई थी। उस वक्त हमारे कुल जरूरतों का तकरीबन 50 फीसद खाद्य तेल आयातित हुआ करता था। लेकिन इस मिशन की वजह से नब्बे के दशक के मध्य तक भारत तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था। तो अब आयात का बिल इतना बड़ा कैसे हो गया?

डब्ल्यूटीओ के मानको के हिसाब से हम 300 फीसद तक आयात शुल्क लगा सकते हैं लेकिन शून्य क्यों है यह समझ के परे है। वैसे, बताते चलें कि साल 2010-11 में देश में तिलहन का 81.8 लाख टन रेकॉर्ड उत्पादन हुआ था। यह भी मौजूदा खेतिहर परिस्थितियों में। अगर सरकार खेती में लागत की कमी को थोड़ा प्रोत्साहन दे तो परिस्थितियां और बेहतर हो सकती हैं। उत्पादन के बाद तिलहन खरीद की स्थिति कितनी बदतर है राजस्थान इसकी मिसाल है। जहां जरूरत से अधिक उत्पादन और गिरती कीमत की वजह से नाफेड स्थिति संभालने के लिए आगे आती है।

अब जीएम सरसों के पक्ष में दावा यह किया गया है कि सरसों की यह नई किस्म पारंपरिक नस्लों के बनिस्बत 20-25 फीसद अधिक पैदावार देती है और इससे निकले तेल की क्वॉलिटी भी बेहतर होगी। मैं निजी तौर पर अधिक उत्पादन वाली नस्लों के पक्ष में हूं। आखिर हमें अपने सवा सौ करोड़ देशवासियों का पेट भरना है। तथ्य यह है कि जब बीटी बैंगन के पक्ष में हवा बनाई जा रही थी तब यह तर्क दिया जा रहा था कि बैंगन की फसल को एक खास किस्म का कीट नुकसान पहुंचाता है। इससे किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है।

लेकिन बीटी बैंगन ऐसे किसी भी नुकसानों के मद्देनज़र किसानों का तारणहार साबित होने वाला था। बीटी बैंगन नहीं आया, और पिछले पांच साल से हमने भी बैंगन उत्पादक किसानों के किसी संकट के बारे में भी नहीं सुना।

तो नया उत्पाद लाने के मामले में बीटी बैंगन जैसे दावे भी सात हफ्तों में गोरा बनाने वाली क्रीम जैसा ही फर्जी लग रहा है। वैसे भी तेल की गुणवत्ता मे सुधार उसके पौधे मे सुधार लाने से अधिक उत्पादन की मशीनरी और प्रक्रिया से जुड़ा मसला है। इस तरफ खाद्य प्रसंस्करण महकमे को ध्यान देना चाहिए।

सरसों का तेल शब्द से हम जैसे मिथिलावासी उसमें तले जाते रोहू माछ का ध्यान ही करते हैं। लेकिन इसे आप बिसराए जा चुके ड्रॉप्सी से भी जोड़ सकते हैं।

बहरहाल, जीएम कपास और बैंगन के बाद सरसों की बारी है। अधिक उत्पादन का लालच हमें अपनी खींच जरूर रहा है लेकिन आनुवांशिक अभियांत्रिकी से बने सरसो, मक्के और चावल का मानव शरीर पर क्या असर होगा इसका अध्ययन होना बाकी है। या अगर अध्ययन हुआ होगा भी, तो वह कितना संपूर्ण होगा यह पता नहीं।

मैं तो बड़ी दिलचस्पी से बिहार के चुनावी गठबंधनों और जीएम फसलों के परिणाम की ओर ध्यान लगाए बैठा हूं। आखिर, दोनों के जीन में कुछ बदलाव तो लाया ही गया है। क्य पता बड़े शानदार परिणाम हों? या शायद टांय-टांय फिस्स? देखते हैं।