देश में गोवा से लेकर झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उडीसा तमाम राज्यों मे घूमा हूं। हर राज्य की अपनी अलग खूबसूरती है..लेकिन अरुणाचल में जिस जगह का उल्लेख मैं कर रहा हूं, वह दिल के बहुत करीब है।
मेरी सलाह है कि साहित्यकार बंधु उस जगह जा सकते हैं और बहुत महान साहित्य की रचना कर सकते हैं।
नीचे की तस्वीर को ध्यान से देखिए, इस नदी के किनारे मैं अपनी झोंपड़ी बनाऊंगा। दिन भर मछली मारूंगा और दिन ढले घर आऊंगा, मछली-भात खाऊंगा।
नदी का पानी कांच की तरह साफ था। इतना कि इसकी तली के पत्थर भी साफ दिखते थे। गुस्ताख तो भई, दिल से गया इसे देखकर..इस नदी के दूसरी तरफ तत्व-सेवन की भी व्यवस्था है। सस्ते दामों में खुदा बोतलों में बंद होकर मिलते हैं। दारुबाज़ मित्रों के लिए आनंद का उत्तम प्रबंद होगा।
तेजू शहर की कुल 211 दुकानों में से 47 लिकर शॉप थीं..।
माछ-भात खाने को आप सभी आमंत्रित हैं...शाकाहारियों के लिए भी व्यवस्था की जाएगी।
3 comments:
बना लो तो एड्रेस भेजना...वहीं आकर गपियायेंगे और मछली के साथ एक एक जाम भी लगायेंगे.
मैं भी समीर जी के साथ आऊंगा !
सुभानाल्लाह .............. नैसर्गिक सुन्दरता ...............आपके वर्णन ने इस जगह को देखने की इच्छा को बलवती कर दिया ...........इच्छा है की कंकरीट के जंगलों को छोड़ कर इस जगह पर सुकून से रहा जाये .
आप अपनी फोटोग्राफी पर स्वम ही मंत्रमुग्ध नहीं बल्कि पाठक भी अपना सुध बुध खो रहे है .
कमाल की फोटोग्राफी और सुध बुध खोने वाला वर्णन ............
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