Wednesday, March 14, 2012

दास्तान-ए-नसरुद्दीन

दास्तान-ए-नसरुद्दीन!

आप पूछ बैठेंगे, कौन नसरुद्दीन, मैं तो उसे जानता तक नहीं।

तो आइए, खोजा नसरुद्दीन से आपकी मुलाकात करवा दें।

खोजा नसरुरद्दीन


खोजा नसरुद्दीन (बुखारा से यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही शायद यह नाम ख्वाजा नसरुद्दीन से खोजा नसरुद्दीन हो गया हो) बुखारा शरीफ का बाशिंदा था। उसेक खयालात, जो दहकती आग की मानिंद पाक थे, न मालूम क्यों बुखारा के पुराने अमीर को खतरनाक लगते थे। वह उसे आवारा, बागी, फूट व फसाद फैलानेवाला. न जाने क्या-क्या समझते थे। उनके चंगुल से बचकर खोजा नसरुद्दीन बुखारा से भाग निकला। लेकिन अमीर ने उसे बाग-बागीचों को तहस-नहस करवा दिया और उसके रिश्तेदारों को मौत के घाट उतार दिया।

दस साल तक बगदाद, तेहरान, बख्शी सराय और दूसरे शहरों में भटकने के बाद यही खोजा नसरुद्दीन अपने पाक वतन बुखारा लौटता है। उसके साथ है तो सिर्फ उसका गधा-उसका सच्चा और वफादार साथी, जो अपने मालिक के मिजाज और तौर-तरीको से वाकिफ है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा चालाक और शरारती गधा है।

खोजा नसरुद्दीन के बुखारा में कदम रखते ही अजोबोगरीब वाकयात शुरु हो जाते हैं।

अजीबोगरीब वाकयात की धुंध में से खोजा नसरुद्दीन की अजीम शख्सियत साफ उभरती है। नए अमीर ने जैसे ही बुखारा में आने की खबर सुनी वह चौंककर तख्त पर सीधे बैठ गए, मानो किसी ने उसके कांटा चुभा दिया हो।

बुखारा पहुंचते ही वह वहां के गरीब बाशिंदों-भिश्तियों, कुम्हारों, तांबागरो, लुहारों, वगैरा- का सच्चा दोस्त और मददगार बन जाता है। उसके नाम से बुखारा का वजीर बख्तियार खौफ खाता है क्यों कि खोजा नसरुद्दीन ने मजहब के नाम पर लूट बंद करा दी है। उसके नाम से सूदखोर जाफर को सांप सूंघ जाता है।

हां, इस सिलसिले में एक नाम आता है-गुलजान। यह हसीन दोशीजा खोजा नसरुद्दीन की होने वाली दुलहिन थी जिसे अमीर ने अपने हरम में कैद कर रखा है। बेशक, अमीर-उमरा, रईस, मुल्ला, सूदखोर-गरीबों को ठगनेवाले और लूटने वाले -सभी खोजा नसरुद्दीन से नफरत करते थे। इसकी वजह भी थी। खोजा नसरुद्दीन आदमी ही दूसरी किस्म का था।

आज के बाद किस्तों में मैं खोजा नसरुद्दीन की कहानी यानी दास्तान-ए-नसरुद्दीन पेश करुंगा। लेकिन इसके लिए आपको बार-बार गुस्ताख पर आना होगा।

दास्तान में उर्दू अल्फाज तो होंगे लेकिन उसके नीचे नुक्ते नहीं लगे रहेंगे।

एक शहर बुखारा का ज़िक्र बार-बार आएगा। पुराने जमाने का यह शानदार शहर आजकल उजबेकिस्तान नाम के देश में है।

दास्तान-ए-नसरुद्दीन मूल किताब लिखी है रुसी लेखक लियोनिद सोलोवयेव ने।

दास्तान ए नसरुद्दीनः "...यह कहानी हमने अबू-उमर-अहमद-इब्न-मुहम्मद से सुनी, जिन्होंने इसे मुहम्मद-इब्न-अली-इब्न-रिफा से सुना, जिन्होंने इसे अली-इब्न-अब्दुल-अजीज से सुना, जिन्होंने अबू-उबैद-अल-कासिम-इब्नसलाम का हवाला दिया, जिन्होंने इसे अपने बुजुर्ग उस्तादों के मुंह से सुना और आखिरी उस्ताद ने सुबूत में उमर-इब्न-अल-खत्ताब व उनके बेटे अब्दुल्ला--अल्लाह उन पर करम करे--का जिक्र किया..."

इब्नहज्म---"बत्तख का हार"

2 comments:

sushant jha said...

अगर मैं ठीक सोच रहा हूं तो यहीं नसरुद्दीन हैं न जिनका जिक्र रजनीश(ओशो) ने बार-बार किया है...?

प्रवीण पाण्डेय said...

इनके किस्से रोचक और प्रेरक होते हैं, प्रतीक्षा रहेगी।