Saturday, September 15, 2012

रजनी सेन की एक कविताः तेरी मेरी बात मिले

(रजनी सेन डीडी न्यूज़ में एंकर हैं, लेकिन उनके भीतर एक मखमली कवयित्री भी है। आज उनकी एक कविता आप लोगो ंके साथ शेयर कर रहा हूं)



न की दीवारें जब भी दरकीं
न थामने वाले हाथ मिले,
खुद में उलझे उलझे रहे वो
जब भी मेरे साथ मिले

                            भरी दुपहरी जब भी देखा
                             देखा अजनबी आंखों से
                             कहने को सपनों से उनके
                             सपने मेरे हर रात मिले

पूछती है दुनिया ये सारी कौन हूं मैं
और   कौन है  वो?
सुबह जिनके तकिये के सिहराने
मेरे भीगे जज़बात मिले

                      अफसानों का लंबा रस्ता
                      सफर अभी करना है बहुत
                       क्या जाने किस मोड़ पर फिर से
                       तेरी मेरी बात मिले।

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अत्यन्त प्रभावी अभिव्यक्ति..

Soumitra Roy said...

एक प्रतिभावान और ऊर्जा से लबरेज कवियित्री की भावुक कर देने वाली कविता। रजनी को तब से जानता हूं, जब वह माखनलाल में पढ़ती थी। नाजुक अहसासों को शब्‍दों में पिरोने की उसकी अद्भुत क्षमता से पहली बार वास्‍ता पड़ा है। मेरी शुभकामनाएं।

Anonymous said...

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